Saturday, May 5, 2012

चार पैसे की भूख, एक आने की प्यास


शायद दूध का पैकेट ही खरीद कर दे देना बेहतर होता। एक पैकेट कितने का आयेगा, इसका अंदाज़ा उसे बिल्कुल नही था। महीने भर पहले ही पढ़ाई खत्म हुई थी उसकी। एक तरफ़ तो अफ़सर की नौकरी  शुरू होने वाली थी, वहीं इसका एक पहलू ये भी था कि अब उसे अब ज़रा आटा-दाल का भाव पता चलेगा। पर इसके आसार ज़्यादा थे की  वह किसी पी.जी. मे ("पी.जी. मे" कहना या लिखना व्याकरण के हिसाब से गलत है पर बोलचाल की भाषा यही है) अपने चंद दोस्तों के साथ रहेगा, कोई कुक वगैरह होगा और आगे भी कुछ साल गुज़ारा चलता रहेगा बिना आटा दाल का भाव जाने। पर यहाँ मुद्दा उठा था दूध के पैकेट के भाव का।

भिखारियों के प्रति हमेशा ही उसके मन मे एक कोमलता रहती  थी। ऐसा नही कि हर बार उनसे सामना होने पर वो अपनी जेब हल्की करता, अक्सर मना भी करता था, पर मना भी करता तो बड़ी शालीनता से, प्यार से। कभी कभी बस आलस मे बटुआ जेब से ना निकालता और भीख मे बस मुस्कुराहट ही देकर वो आगे बढ़ जाता। रोज़मर्रा सी ही बात थी जब एक भिखमंगी बच्ची से सड़क पर सामना हुआ प्रथम का। उसने चेंज देनेके इरादे से बटुआ निकाला तो बच्ची ने कहा - "दस रुपये दे दो छोटी बहन समझके, बच्चा भूखा है,एक दूध का पैकेट लूँगी उसके लिये" छोटी बहन के रिश्ते से उसे खास आपत्ति नही थी। वो तो अनायास जोड़े इस रिश्ते के बदले मे बस दस रुपये मांग रही थी, प्रथम जानता था उसकी तो उम्र गुज़रेगी ऐसे लोगो से घिरे हुये जो इससे कहीं बड़े फ़ायदे के लिये उसको अपना रिश्तेदार बनायेंगे और बतायेंगे। परेशानी की बात यहाँ थी उस बच्ची के बच्चे का ज़िक्र,इस नन्ही सी बच्ची का एक बच्चा हो सकता है, इस कल्पना मात्र से प्रथम घबरा गया।
"तुम्हारा बच्चा भूखा है?"
"मेरा छोटा भाई है, सुबह से कुछ खाया नही है। छोटी बहन के नाते दस रुपये दे दो"
एक छोटी बहन बड़े भाई का वास्ता देकर छोटे भाई के लिये गुहार लगा रही थी। प्रथम बटुआ निकला ही चुका था, पहले उसका इरादा था दो-एक रुपये देने का, पर अब दस के नोट की मांग थी, सो पूरी करनी थी।
"तुम्हरा भाई है कहाँ?"
"घर पे है, भूखा है सुबह से"
"घर पे अकेला है?"
"हाँ"
माँ बाप नही है तुम्हारे?"
"नही"
"भाई को अकेला क्यों छोड़ दिया, वो तो बहुत छोटा होगा?"
सवाल-जवाबों के इस सिलसिले मे प्रथम को अचानक ख्याल आया, उसकी ये बहन भी तो बहुत छोटी है उसके सामने।। पर वो भी तो अगले ही पल उसे अकेला छोड़कर आगे बढ़ जायेगा। वैसे भी इस धूप मे वो एक भूखे बच्चे को लेकर कहाँ भटकती, प्रथम ने सोचा। तकरीबन ग्यारह बज रहे थे, प्रथम को ज़रा जल्दी भी थी। इन्हीं ख्यालों मे  खोया हुआ वो दस का नोट उस बच्ची को  पकड़ा आगे निकल गया। तभी उसने सोचा था - शायद दूध का पैकेट खरीद कर दे देना ही बेहतर होता। पर एक पैकेट कितने का आयेगा, इसका अंदाज़ा उसे बिल्कुल नही था।

कुछ अधिक का ही होगा, क्योंकि  वह बच्ची अब भी  सड़क पर भटकती, और लोगो  से पैसे इकठ्ठे करती  रही। प्रथम  भी सड़कों पर भटक ही रहा था, और उसे जल्दी भी तो थी। उसे आज अपनी गर्लफ़्रेंड को 'सी-औफ़' करना था और उसके लिये जल्द ही आस-पास किसी दुकान से कोई तोहफ़ा लेना था। प्रथम आगे बड़ रहा था की उसके कदम दो पल के लिये ठिठक गये। उसकी एक बुरी आदत थीयूँ तो उसे इसकी बुराई का औचित्य  कभी समझ ना आया था, पर लोगो की मान्यता के आधार पे उसने भी मान लिया  था की उसकी ये आदत बुरी है। एक  खूबसूरत सी लड़की सड़क के दूसरी ओर से गुज़र रही थी, तो प्रथम की नज़र ज़रा उसपे ठहर गयी। पाठक इस व्यवहार को अजीब समझेंगे की आया तो  है गर्लफ़्रेंड के लिये तोहफ़ा लेने, पर सड़क चलती  लड़की को निहार रहा है। उसकी नज़र तो  बस पल भर के लिये रुक गयी थी पर कयी पाठक ज़रूर इस बर्ताव को बुरा बतायेंगे। ऐसे लोगो के  विचारों के कारण ही प्रथम ने मान लिया था कि ये बुरी आदत है उसकी। प्रथम ने  देखा कि उसकी  नयी नवेली छोटी बहन उस खूबसूरत लड़की से भी दस रुपये माँग रही थी। उसे मना करते वक्त उस लड़की के चेहरे पे सख्ती के जो भाव आये, उसके बाद उसकी कोमल सुंदरता फ़ीकी पड़ गयी। प्रथम  आगे बढ़ गया। 

पास के एक गिफ़्ट शौप मे  वो घुसा और पाँच मिनट मे एक प्यारा सा टेड्डी पैक करवा लिया उसने। उसकी नज़र उस दुकान  के बगल मे बैठे एक आदमी  पर गयी जो फूल बेच रहा था। दस रुपये पे एक के भाव पर उसने तीन गुलाब लिये। तीन  लेने के पीछे कोई खास सोच नही  थी, वो  एक से ज़्यादा  लेना चहता था, फ़िर सोचा दो से ज़्यादा ले ले। उसकी गिनती तीन पे  आकर रुकी।
"तीन तो दुशमन को देते है"
नेहा प्रथम को बता रही थी कि  कैसे उसने इस बेहद  महत्वपूर्ण अंधविश्वास को नज़र अंदाज़ कर दिया था। प्रथम के पास इसका कोई जवाब नही था। बस कुछ भी कह  लेने के लिये उसने बेवकूफ़ी  भरा जवाब दिया - "पैसे कम पड़ गये वरना  एक और ले लेता"
"कितने का था एक गुलाब" - नेहा ने आश्चर्य से पूछा।
"दस रुपये"
"अब ऐसा भी क्या पैसा पानी मे बहा दिया की दस रुपये कम पड़ गये" - और आश्चर्य, और ज़रा सा मज़ाकिया लहजे मे!
दोनो को इन बातों से कोई वास्ता ना था, पर जैसा  अक्सर प्रेमियों के बीच होता है, दोनो कुछ भी बोले जा रहे थे। इसी तर्ज़ पर प्रथम ने जवाब दिया - "पाने मे नही, दूध मे"
इससे पहले की  प्रथम के इस जवाब को नेहा खराब 'सेंस औफ़  ह्यूमर' बतलाती, प्रथम ने बातचीत का  विषय बदल दिया। अभी तो गुलाब ही दिये थेप्रथम को पता था टेड्डी देखकर नेहा कितनी खुश होगी। गिफ़्ट पैक को बैग से निकालने से पहली उसने  पेप्सी का एक और सिप मारा, और अचानक सोचने लगा  - "ज़्यादा महंगा क्या होता होगा... एक बोतल पेप्सी, या एक पैकेट दूध?”।