Saturday, August 29, 2009

Dream or Vision ??

In a routine coaching class,I was asked a routine question - What is the difference between a dream and a vision ? A couple of minutes of thought into this question,and I realised this idea struck some sort of chord with me.What followed was a small discussion over it,again a routine one,but on the personal front,this differentiation between dream and vision became an object of importance.

What exactly is the answer to the above mentioned question.Like any abstract theme,the beauty lies in the very fact that it has no exact answer,it has interpretations,and opinions.Well my opinion,about the distinguishing feauture between the two,is that,Dream is anything we see for the future,Vision,apart from being a dream,has certain additional properties.Vision is also something we envisage,but it also consists of a belief that we will make that happen,or play our due role in it.Vision includes the belief that things will work out,because we will make them work.

Why did this seemingly apparent idea suddenly aquire so much of importance in my eyes.I guess all of us have dreams,even I had many.Now I have realised that average people have dreams,and the men who made it big,had visions.Its time I minimised dreaming(not end) things, and started envisioning things.

Whats your take...Dream or Vision??

Wednesday, July 8, 2009

रेलवे स्टेशन: एक ज़िंदगी

ये कविता मैने इस बार हिंद-युग्म की यूनिकवि प्रतियोगिता मे भेजी थी। ये शीर्ष 19 कविताओं मे भी शामिल नही हो सकी,शुरु मे मुझे काफ़ी बुरा लगा,क्योंकि एक आस तो लगी ही होती है,पर फ़िर मैने निर्णय लिया की इसे सकरात्मक रूप मे लूँ, और आगे और बेहतर लिख सकूँ ताकि हिंद-युग्म जैसे बड़े और प्रतिष्ठित मंचों पर भी एक पहचान बना सकूँ!!
आपके सुझाव और प्रतिक्रिया का इंतज़ार रहेगा।


रेलवे स्टेशन...शख्सियत कुछ ऐसी,
ज़माने वाले जिसे पहचान नही पाते,
हज़ार हज़ार बार यहाँ आने जाने वाले
मुसाफ़िर भी सही अर्थ जान नही पाते,
खुद मे छिपाए हुए एक नायाब फ़लसफ़ा,
जिसे फ़्रूट स्टौल का रामू,बुक स्टौल का शंभू,
ही समझ सकता है,और समझा सकता है,
क्योंकि साथ इतना वक्त जो बिताया है,
या फ़िर बता सकता है,शायद एक कवि,
एक मामूली से स्टेशन मे भी जिसको,
ज़िंदगी का संपूर्ण सार नज़र आता है।

ज़िंदगी और स्टेशन...एक जैसे,कैसे,
स्टेशन एक मंज़िल भी है,एक सफ़र भी,
कोई बस चलता रहता है दिन भर कभी,
कभी कोई बैठा रह जाता है रात भर भी,
शायद किसी ने इसपे गौर ना किया हो,
यहाँ हर इंसान आता है,चले जाने के लिये,
और हर आने वाले को किसी ना किसी
का इंतज़ार होता है,ज़िंदगी भी तो बस,
बस,एक मुकम्मल इंतज़ार ही होती है,
और भला कैसा होता है इंतज़ार वहाँ,
हमे किसी के आने का इंतज़ार रहता है,
या अपने चले जाने का इंतज़ार रहता है,
मोहब्बत हो जाये,तो ज़िंदगी भी यही है।

जीवन मे लोग कितनी प्लानिंग किया करते है,
इसका,उसका,सबका,वक्त निर्धारित किया करते है,
पर तय नही होता कुछ,एक अंदाज़ा भर होता है,
हमारी ज़िंदगी की टाईमिंग हो,या रेलवे मे
ट्रेनों के आने जाने की,कुछ खास अलग नही,
एक दूजे के प्रारूप ही लगते है ये दोनो,ज़िंदगी,
और ज़िंदगी का एक छोटा सा पहलू।

इतना कुछ समान है,तो फ़र्क भी होगा,
फ़िर अपना कवि ही काम आता है,
और सूक्ष्मरूपी कुछ अंतर बतलाता है,
स्टेशन पे कौन कब आएगा,जाएगा,
इसकी घोषणा पहले ही हो जाती है,
ज़िंदगी मे अक्सर ऐसा नही होता,
कौन कहाँ से जाएगा,कहाँ पे आएगा,
ये भी बस स्टेशन पे ही तय रहता है,
तो अंत मे कवि बस इतना कहता है...

अगली बार प्लेटफ़ौर्म पे बैठे,आते जाते,
जाते आते, इसको उसको,उसको इसको,
देखो तो एक बार सोचना,रेलवे स्टेशन,
और ज़िंदगी,ने मिलके साजिश की है,
और भगाए जा रहे है...हर शख्श को बेतहाशा ।।

Saturday, July 4, 2009

कभी कभी गुज़रा वक्त गुज़रता नही

एक शाम को एक दिन, एक,दिन चुपके से आया,
दिन बोला,मेरे बिन तू,
अब तक कैसे रह पाया,
मेरे बीत जाने के बाद,
वक्त तूने कैसे बिताया ।

मैने ही तेरा हाथ पकड़,
उसके हाथों मे दे डाला था,
मेरा दिया दीवानापन था तूने,
दिल का अरमान निकाला था, अचानक जो मैं पीछे छूट गया,
भला खुद को कैसे संभाला था।

गुमसुम सा ताक रहा था,
बीते दिन की परछाई को,
अपनी तड़प,मजबूरी सारी,
बता गया उस सौदाई को,
एक मोड़ पे तू पीछे छूटा, अगली गली पे वो आई थी,
तू तो बीत गया लेकिन,
तेरी याद दिल मे समाई थी, गुज़रा वक्त गुज़रता नही,
अपनी खूश्बू दे जाता है,
अपने पीछे तन्हाई को,
गुमसुम सा ताक रहा था,
बीते दिन की परछाई को...

Wednesday, July 1, 2009

जागृति

बीता एक और दिन,

बीती एक और शाम,

और,कुछ और नाम,

जुड़े ज़िंदगी से मेरे,

हज़ार जतन के बाद,

कुछ को मना लिया,

कुछ रूठे बिन बात,

मेरे सामने खड़ी है,

देखो,एक और रात,

हर दिन,शाम,और रात

की तरह,बीत जाने को,

सोने जा रहा हूँ मैं,

अपने भीतर,फ़िर एक,

सुबह को जगाने को ...

Tuesday, June 30, 2009

ज़िंदगी गुज़ारी अपनी शर्तों पे हमने ...

फ़िर एक ख्वाब को हकीकत बना लिया,
हमने आज एक और मुकाम पा लिया ।

ज़िम्मेदारियों के प्रति ये आँखें खुली भी,
और नींद मे भी एक सपना सजा लिया।

मोहब्बत तो सिर्फ़ कमज़ोर करती आई थी,
सब भुला इस मकसद से दिल लगा लिया।

जोश और जज़्बे मे तो अब कमी नही होगी,
मेरे मुकद्दर ने भी देखो ऐसा फ़ैसला लिया ।

ज़िंदगी तमाम गुज़ारी अपनी शर्तों पे हमने,
मौत को अपनी मर्ज़ी का गुलाम बना लिया।

Sunday, June 28, 2009

इश्क ने गालिब निकम्मा कर दिया,वर्ना हम भी आदमी थे काम के!!

ये विडियो मुझे भाटिया सर के ब्लौग पे मिला। एक मज़ेदार विडियो है पर शायद सिर्फ़ इसका मज़ा लेकर देख लेना भर ठीक नही,इसमे चार युवाओं के जिस बर्ताव को दिखाया गया है,वो या तो नैतिक रूप से गलत है या फ़िर गैर ज़िम्मेदार है,मूर्ख चाहे जो हो,सही तो कोई नही। दुखद बात ये है की,ऐसी घटनायें सचमुच आम है। सिगरेट और शराब की तरह कयी लड़को का भविष्य लड़कियों के हाथों भी शहीद होता है।इनमे हर मामले मे युवा अपनी बेवकूफ़ी का खामियाज़ा भुगतते है,पर तीसरे पहलू को कभी गँभीरता से नही लिया गया,जबकी नशा-मुक्ति हमारा एक खास मकसद है आज। मेरे एक मित्र का तकियाकलाम है - प्यार मे आदमी कुत्ता बन जाता है... प्यार मे तो नही,प्यार की गलतफ़हमी मे पड़के इंसान कुत्तेपन के करीब ज़रूर आ जाता है। आप लोगो को शायद लगे की मैं एक छोटी सी बात को अधिक तवज्जो दे रहा हूँ,तो अगर आप अब भी इस बात से सहमत नही हुये है कि ये बात उतनी छोटी और गैर-ज़रूरी नही है जैसी लगती है,तो आप शायद मेरी बात से सहमत कभी ना हो।और अगर आपको मेरी बात मे कोई गंभीरता,कोई तुक नज़र आता हो,तो आपके विचारों का मुझे इंतज़ार है। नोट: मेरे ये विचार काल्पनिक नही है,कयी लोगो के जीवन से इसकी समानता हो सकती है,शायद उसमे मेरा भी जीवन हो!!

Saturday, June 27, 2009

इंटर कौलेज आयोजन का नामकरण

आज अपने ब्लौगिंग साथियों से एक मदद चाहता हूँ। हमारे कौलेज,बी।आई।टी मेसरा,राँची,मे एक इंटर कौलेज ड्रामा फ़ेस्ट हो रहा है।इसमे देश के विभिन्न कौलेजों से आये छात्र अलग अलग छेत्रों मे अपनी प्रतिभा दिखायेंगे। इस आयोजन मे मुख्यत: नाटक,नुक्कड़ और लघु फ़िल्मों के बीच मुकाबला होगा।अभी तक हमने इसका नाम नही तय किया है।ऐसे मेरा सुझाया नाम "अभिव्यक्ति" सबको ठीक लगा है,पर ये तय नही है और हम अब भी एक शानदार नाम कि तलाश मे है। आप लोग अगर साहित्य के सागर से कोई ऐसा मोती चुन सके जो इस आयोजन के नामकरण मे सहायक सिद्ध हो तो मुझे बड़ी खुशी होगी। नाम कुछ ऐसा हो जिसमे नाटक,रचनात्मकता और शौर्ट फ़िल्मों की मिली जुली थीम उभर के आ सके। इसके अलावा यहाँ के सक्षम लेखक और लेखिका गण कोई और सलाह देना चाहे तो उसका स्वागत है।

Wednesday, June 24, 2009

तेरा एहसास मानो आसमाँ से बरस रहा था...

पंख फ़ड़फ़ड़ाते हुए गुज़रा तेरा नाम सामने से।
मौसम की पुकार पे गुज़र रही है शाम सामने से।।

अभी चार पल पहले ही तो मैं रिमझिम की
बस एक आवाज़ के लिये तरस रहा था,
दो पल ही गुज़रे होंगे, की ये देखता हूँ,
तेरा एहसास मानो आसमाँ से बरस रहा था,
देख सिर से पाँव तक भींगने लगे लोग सारे,
और मैं,मेरी तो आँखें तक भींग गयी थी,
शायद यही तेरी याद का वो कामयाब आँसू था,
जिसको पाके आज मैं खिलखिलाके हँस रहा था,
तेरा एहसास मानो आसमाँ से बरस रहा था...

पेड़ सारे पहले से कुछ ज़्यादा ही हरे हो गये थे,
कुछ घोंसले शायद मुझे देखकर हाथ हिला रहे थे,
आकाश मे कुछ अधबरसे बादल थे,जो बीत रहे थे,
इशारों इशारों मे मुझे भी अपने पास बुला रहे थे,
खुश और आश्वस्त सा मैं टेरेस पे टहल रहा था,
कुछ भी नही कर रहा था पर मन बहल रहा था,
एक अकेली ज़िंदगी ऐसी कितनी शामें दे जाती है,
जीवन कितना प्यारा है,सब एहसास दिला रहे थे,
कुछ घोंसले शायद मुझे देखकर हाथ हिला रहे थे...

Monday, June 22, 2009

आँखों मे जल रहा है क्यों...

आज सुबह रोशनी
जब पहली बार मेरे,
कमरे मे आई,
थोड़ा छेड़ा मुझको,
ज़रा सा मुस्कुराई,
बोली,रोज़ आती हूँ मैं,
तेरा अंधेरा फ़िर,
मेरा हो जाता है,
मुझमे खो जाता है,
मैं छू लेती हूँ तुमको,
तुम्हारे इस कमरे को,
इस कमरे मे मौजूद,
हरेक चीज़ को,
कुछ भी तो अछूता
नही मुझसे,सिवाय,
तेरी आँखों के...
छू नही सकी इनको,
आज तक,अब तलक,
दर्द की जाने कौन सी
दीवार से इनको घेरा है,
जाने क्यों आज तक,
यहाँ इतना अंधेरा है !!!

Saturday, June 20, 2009

एक सवाल ज़िंदगी से

कल शाम मोड़ पर अचानक,
मुझसे टकराया एक सवाल...

मैं सौरी बोल निकलना चाहता था,
पर जाने क्यों उसे देख ठिठक गया,
जाना पहचाना सा मालूम होता था,
मैने नमस्ते कहा,और नाम पूछा,
लेकिन वो जाने किस धुन मे था,
मेरी सुनी नही,अपनी सुनाता गया...
बोला- ये हमारी पहली मुलाकत नही,
मैं अकसर तेरे सामने खड़ा हो जाता हूँ,
तेरे जीवन-काल मे जाने कितनी बार,
तुझसे इसी तरह टकराता आया हूँ,
मैने फ़िर नाम पूछा,वो फ़िर बोला,
क्यों अजनबी हूँ आज भी तेरे लिये,
पहचान नही पाते मुझको,जब कि,
कोई दिखावा,कोई छलावा,कोई नकाब नही है,
शायद इस सवाल का ही कोई जवाब नही है,
हर जवाब सवाल के बिन अधूरा है लेकिन,
कुछ सवाल जवाबों के मोहताज नही होते,
मेरी मजबूरी है की जब तक तुम मुझको
देख हैरान परेशान होते रहोगे,मैं भी,
तुमसे ज़िंदगी मे यूँ ही टकराता रहूँगा,
बहरूपिये सा वेश धर बराबर आता रहूँगा...

मान ली उसकी बात,और कहा उससे,
हे अजनबी,अपना नाम तो बताते जाओ,
मेरा विश्वास देख उसने अपना नाम बताया,
और सच,उसके बाद नज़र ना आया,
आज तलक याद है,उसने कहा था,
मेरा नाम है- मैं कौन हूँ !!!

Thursday, June 18, 2009

बी.आई.टी की रानी - बलिदान दिवस पे विशेष

बलिदान दिवस के मौके पर एक रचना आप लोगो से बाँटना चाहूँगा। सही मायने मे ये मेरी रचना नही है,सुभद्रा कुमारी जी की कविता झाँसी की रानी की एक छोटी सी पैरोडी मैने अपने कौलेज मे आयोजित एक छोटे से हास्य कवि सम्मेलन मे सुनाई थी,वो ही पेश कर रहा हूँ। हमारे कौलेज बी.आई.टी मेसरा मे एक इन-टाईम का फ़ंडा है,ये वो समय है जब तक कौलेज कि लड़कियों को अपने हौस्टल मे प्रवेश कर जाना होता है,और इसके बाद उनके बाहर जाने पर मनाही है।लड़को के लिये ऐसी कोई रोक-टोक नही है!! सबसे हास्यप्रद बात ये है की ये इन-टाईम कभी कभी 5.30 बजे भी होता है,जो की बहुत ही ज़्यादा जल्दी है। मुझे हमेशा से ऐसा लगा है की यहाँ इस प्रथा का विरोध होना चाहिये,और इसी विचार को मैने अपने कौलेज-फ़ेस्ट मे सुनाई इस रचना मे सामने रखा था,आज आप लोगो के सामने पेश कर रहा हूँ।
ये कविता समर्पित है एक ऐसी लड़की को जो बी.आई.टी मे पढ़ती है,और इन-टाईम हटवाने के लिये लड़ती है।

कविता की पंक्तियाँ :

सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,

बूढ़े भारत में आई फिर से नयी जवानी थी,

गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,

दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी,

चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वह स्वयं वीरता की अवतार,

देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार,

नकली युद्ध-व्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार,

सैन्य घेरना, दुर्ग तोड़ना ये थे उसके प्रिय खिलवार,

महाराष्टर-कुल-देवी उसकी भी आराध्य भवानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

पैरोडी की पंक्तियाँ :

ऐडमिनिस्ट्रेशन हिल उठा,रुकी उनकी मनमानी थी,

बूढ़े बी.आई.टी मे आयी फ़िर से नयी जवानी थी,

छिनी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,

दूर इन-टाईम को करने की सबने मन मे ठानी थी,

चमक उठी सन 2k9 मे, वो तलवार पुरानी थी,

प्रोफ़ेसर और मैडम के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वो तो बी.आई.टी वाली रानी थी।

लक्ष्मी थी,या दुर्गा थी,वो स्वयं वीरता की अवतार,

देख लड़के भी पुलकित होते,उसकी बातों के वार,

प्रोजेक्ट करना,असाईनमेंट बनाना,थे उसके प्रिय शिकार,

राँची जाना,इन-टाईम तोड़ना,ये थे उसके प्रिय खिलवार,

ये इन-टाईम की प्रथा तो,उसको बस हटानी थी,

प्रोफ़ेसर और मैडम के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वो तो बी.आई.टी वाली रानी थी।

Tuesday, June 16, 2009

काश मेरा पहला प्यार होता आखिरी भी


इसे एक कविता के रूप मे देखे,इसे गज़ल ना कहा जाये,क्योंकि उस हिसाब से पूरा काफ़िया ही गलत हो जायेगा और ये गज़ल विधा का अपमान ही होगा(वैसे भी बहर मे मैं लिखता नही)। तो बताये कैसी लगी मेरी ये "कविता" :)


काश मेरा पहला प्यार होता आखिरी भी,
ज़िंदगी आसमां तक पहुँची तो गिरी भी।

कभी तो मेरे हर शब्द पे दाद थी तुम्हारी,
अब पसंद नही आती मेरी एक शायरी भी।

औरों के सवालों का जवाब मुमकिन है पर,
आज तो खुद सवालिया है ज़िंदगी मेरी भी।

मैं बस अपने अकेलेपन का साथ दे रहा हूँ,
और मेरे साथ चल रही है चंद यादें तेरी भी।

पहले तो कविता मेरी,कुछ दर्द बाँट लेती थी,
काम नही देती अब ये शब्दों की जादूगरी भी।

Monday, June 15, 2009

मैं एक बेरोज़गार हूँ



कल देखा एक आदमी को सड़क पर,


गाड़ी के नीचे आते आते बच गया,


आदतन वो ही शब्द निकल गये मुझसे,


देखकर नही चल सकते,अंधे हो क्या?



जवाब ने पर इस बार चौंका दिया,


जनाब, आँखों से अंधा तो नही हूँ,


पर बेरोज़गार हूँ,बस अंधेरा है मेरी


आँखों के आगे,हमेशा...हर वक्त,


हाँ दोस्त...मैं एक बेरोज़गार हूँ!!



उसकी बातों का ही असर था शायद,


जो उस बेरोज़गार से पूछ पड़ा मैं,


इस अंधेपन का कुछ करते क्यों नही,


उसका बोलना,मेरा चौंकना,जारी रहा,


इलाज तो करवाना चाहता हूँ मगर,


मरीज़ इतने बढ़े की दवा कम हो गयी,


अब ज़िंदगी मे रोशनी लाने के लिये,


अंधेरे मे बस भागे चला जा रहा हूँ,


हाँ दोस्त...मैं एक बेरोज़गार हूँ !!



इसके आगे मैने कुछ नही पूछा उससे,


पर वो बोलता ही चला गया, शायद,


मेरी आँखें अब भी सवाल कर रही थी,


कहने लगा की बेरोज़गारी की ये बीमारी,


गरीबी की गंदी गलियों मे बड़ी फ़ैलती है,


ऐसे ही संक्रमण का असर हुआ है मुझपे,


अब जैसे कुछ नही दिखता,सपने भी नही,


हार नही मानी है अब तक,पर लाचार हूँ,


हाँ... हाँ दोस्त... मैं, एक बेरोज़गार हूँ !!

Sunday, June 14, 2009

हम खुश है तेरी तस्वीर से मोहब्बत करके

फ़कत एक बार जो पड़ गयी तेरी तस्वीर पे निगाह,
दिल ने कहा कि आई है एक परी आसमां से उतरके,
एक बार पड़ी निगाह,तो नज़र फ़िर हटाई ना गयी,
लगता है अब तो तू मानेगी मुझको दीवाना करके।

देखो आधे चेहरे पे तुम्हारे धूप पड़ रही है ऐसे,
जैसे रोशनी भी बिखर रही हो ज़रा ठहर ठहरके।

मेरी जानिब तो देख नही रही हो तुम लेकिन,
तुम्हारी नज़र तो निकली है मेरे दिल से गुज़रके।

अपने हाथों से छू रही हो तुम रुख्सारों को अपने,
इन हाथों को रख दो एक बार मेरे हाथों मे धरके।

हुस्नो-निखार ज़माने भर मे देखा तो बहुत है,
पर तुम तो आयी हो शायद चांदनी से निखरके।

दिल मे हसरत है हो जाये एक मुलाकात तुमसे,
वैसे तो हम खुश है तेरी तस्वीर से मोहब्बत करके।

Thursday, June 11, 2009

चांद को क्या मालूम की तारीफ़ किसी और की होती है :)

कल शाम पार्क मे बैठा हुआ था,
पास एक बच्चा प्यारी सी एक ज़िद
किये जा रहा था,किये जा रहा था,
कहता, चंदा मेरा मामा है तो चलो,
एक बार मिलवाओ मुझे उनसे,एक बार,
और साथ मे जो थे,उसके पिता होंगे,
इस मासूम पर जटिल ज़िद के आगे लाचार,
बगल वाली बेंच पे ये भोला सा तमाशा,
चले जा रहा था,चले जा रहा था...


और....ऐसे मे मेरे अंदर का कवि जागा,
सोचता हूँ कभी जब अपना भी बच्चा होगा,
और अपने चंदा मामा से मिलना चाहेगा,
इसी तरह कभी ज़िद करने लगेगा पार्क मे,
तो कह दूँगा,मुन्ने साब बात ऐसी है,
आपके मामा अब हमसे नाराज़ हो गये है,
क्योंकि आज तक उनका नाम लेकर हम,
आपकी मम्मी को बुलाते आये है,और,
जाने कितनी ही कवितायें बनाते आये है...

अगर अब भी नही समझे की ये कवि,
क्या कह रहा है,तो जान लो ये कविता,
एक बहाना था,एक बार फ़िर तुमको,
चुपके से चांद कहके बुलाना था !!!

Monday, June 8, 2009

Fake Bollywood Actor

I believe, the intersection of the sets of IPL fans and Bollywood fans is a considerably large set,and so I preassume, this post will have its fair share of audience .There have been ample questions raised about the identity of the fake IPL player,and I wont be dwelling upon it henceforth,at least for the time being. The intent is to contemplate regarding the efects it has had...and discuss another weird possibilty. What if a similar fakie crops up during the shooting of a bollywood movie,comes up with a similar blog...a Fake Bollywood Actor.

So what are the options for a fake bollywood actor.After all, the players do get a chance to spend a lot of time together,outside the grounds,but same is not true for actors outside the studios(read foreign locales)..the exceptions are there,but in general,movie stars arent spending days and nights with each
other.Yet,when some project,gets shifted to a location like,say,South Africa,due to the lack of aesthetic value in India's tourist places(which somehow help the tourism industry to contribute significantly to our GDP) an opportuniy arises for our fakie.Here,our fakie,who is confident,that he is a good for nothing
piece of nonsense in the world of cinema,decides to look for an alternative.The world of Blogging welcomes him,just like an unregulated economy welcomes recession,with open arms.People around the world are greeted to certain secrets(which was never of any help anyway),a plethora of nicknames and ample amount of humour.The bottomline is,the world enjoys the piece of nonsense...because...the world,enjoys it!!
Time to pick up certain arbitrary nicknames..Ab bhi shake Bachan will be talked about in derogatory tone,making fun of one of his weird habits(refer his nick).With due disrespect,the credit for this habit may befall upon Mrs. Aishkarwa Rahe Bachan.With her,you get a chance to discuss about her past lovers
(also her last lovers),Vivek Ab Roye and DKD,nicknaming him upon the only thing which brings a certain amount of fame to him nowadays.A talk about how Vivek Ab Roye has become even more desperate to get a role,and how DKD has been strung up in his 37th (bollywd) affair should give some masala.

With Ab bhi Shake Bachan,also comes an opportunity to discuss about his talented dad,Shehenshah of the bollywood,and with it you have a chance to vent out your crappy thoughts over who the biggest superstar of the Bollywood is.On the one hand you have "sehen-shah",the tolerant old man,while on the other,you have the "bad-shah",the charming and the proudy one.A couple of "inside news" about someone calling the other a dog,mouse,cat,buffalo etc etc (in a blog or outside it) should satisfy the inexplicable hunt for controversies, of our society.Katrina Kaif being called Foren Babe(remember foren babas??) while some one like Priety already has been baptized as Bubbly.But not everyone is seen with an eye of disrespect,and Priness Of Kolkata(Rani Mukherji) happens to have the fakie in her list of admirers . Surprisingly,the presence of just a couple of these big names are enough to come up with excuses to talk about all of them,again,masala is never in dearth,when it comes to Bollywood.Some other nicknames:
Tirchhi Topi - the legendary singer with the cap,who never irritated a soul with his singing
Xerox Machine - the great music director Pritam da...for the obvious reasons..
Miss Maggie - Kangana Ranaut,with the attractive hair style...not my fault if the fakie finds it weird!!
Dancing Dasher - Hritik Roshan..as we know it isnt always being disrespectful in the nicknames
Hawa ka jhonka - The guy who has written more songs than anybody in Bollywood...however pathetic most of them may be :)
Issues Discussed..Questions raised...blaah blaah blaaah... :

India,they say,is a country strongly driven by Bollywood.Its more than a mere industry,its a culure,a religion.For many,it is said that,maa and cinemaa are their first words.If only,Bollywood is observed from a different vantage point,will the prestige still remain intact?? This line has a lot of name,fame,even
shame,but all because it has a lot of money.With agencies like Underworld and Mafia,religiously contributing to the cause of Indian cinema,money matters are hardly a matter of concern.And if you can make a couple of films on general goodness of mankind and the ways the goons of today,are the ones who suffered yesterday,then the movies are all the more likely to be allotted huge funds.Of course with such stalwarts enetring the fray,a few complexities arise.Few of the transactions can go haywire,where big names like Chota Sajan,Daood Beraham end up being vexed and unsatisfied.Also when your girlfriends are either not getting movies,or they are ruining the chances by the sheer absence of talent and abilities,it leaves you all the more frustated.As you know such unregulated economies,have their share of advantage,but a crisis is never too far.A talk about a couple of deals being finalised,"contracts" being signed by various such "companys",will find ample space in our coveted Bollywood Fake Blog.
What about the awards,for all the hard work,people put in for days and nights.If Hollywood has an Oscar,here we have Film-unfairs,Zee Cine,Screen,and several other useless ones.To complement these names,we also have something called National Awards(wonder what others are).We have guys like our dearest Dildo,or the Bad-shah of bollywood dominating such award giving ceremonies,while the ones like Mr. Pervertionist not accepting the awards.An insider can always disclose information about how some of these awards were transacted.Intelligent audience often figures out which of the awards have been bought,so certain details and additional monetary facts and figures could be provided by our esteemed fake one.
Casting couch happens to be another by product of this cinema culture,for good or bad,one cant say with definite accuracy.The opinions,usually,are divided upon this issue of national interest,but the thing to be noted, is the national interest in this topic.Guys like Fuckty Kapoor assumed a legendary status
after being involved in such controversies,and no one can negate the well known fact that there are many names,big and small,actively participating in this act.Even the secret cameras have been quiet for quite some time,so our fake actor can assume the responsibilty to discuss,at length,about any such act of
favouritism on grounds of sexual favour,that the fake one observes,and brings to the notice of everyone concerned.
Apart from above mentioned points,there are other issues to be addressed.With new affairs starting and ending everyday,people locking lips and denying it,people marrying and remarrying often,and to add to this,buying teams and players,the responsibilty and the task on hand is daunting.While there are pairs
like Sexy Basu and Dostana Abraham, which stand the stiff tests of time and situations,there are others like Bacha Kapoor and Aunty Kapoor's pair,which are blown to pieces when caught kissing in public.Here we arrive at another important point,the Fake Bollywood actor must regularly discuss any act of Public
(even private) display of affection by the celebrities,that he observes on sets or otherwise.With fake mms arriving in the market with alarming regularity,the genuinity(or the lack of them) can often be known by such a Fake one,which will make the public aware of the realities.Of course,like any other field,the Entertainment Industry must have its fair share of unfair and dirty politics,the mathematics of hit and flop involving the use of complex numbers and certain prime numbers....The issues are actually endless.
Be it Bollywood,be it cricket,a lot of its realities can be brought out in the open,only if you are a fake one.A lot of his talks will sound like utter crap,some actually will be,insulting and even offending nicknames coupled with certain harsh realities.Often it takes a lot of courage to say the truth,and sometimes, it takes...a fake identity.Remember,behind every fake,there is an original!!

Sunday, June 7, 2009

मुकम्मल दर्द

मेरी इस कविता की प्रेरणा हिंदी बलौगिंग की जाने-मानी हस्ती हरकिरत जी है,मेरी ये मामूली सी कोशिश उनके दर्द भरे उत्कृष्ट नगमों के सामने कुछ नही,पर मैं अपनी ये कविता उनको समर्पित करना चाहूँगा। मेरा एक छोटा सा सलाम इस बड़ी सी हस्ती को :)



कल दर्द को पिघलते देखा,
तकलीफ़ की आग मे जलते देखा,
सोचा पिघलके बह जायेगा ये,
जैसे बाकी सब बह जाते है,
मालूम हुआ कुछ ऐसे एहसास है,
जो सीने मे कैद रह जाते है। 

कल दर्द से बातें की,
बातें क्या,बस शिकायतें की,
दर्द सुनाने लगा अपनी दास्तां,
लगा,बोलके चुप हो जायेगा ये,
जैसे बाकी सब खामोश हो जाते है,
पर लगता है कुछ आवाज़ें मरती नही,
लफ़्ज़ भले खो जाते है। 

कल दर्द पे कविता लिख डाली,
सारी भड़ास कागज़ पे निकाली,
सोचा ज़रा मन हल्का हो जायेगा,
जैसा हर बार हो जाता है,
पर अफ़सोस दर्द का बोझ उतरा नही,
अधूरे से जज़्बात मिटने लगते है जब,
तब मुकम्मल दर्द तैयार हो जाता है।




लेकिन वो सच था

बात साढ़े इक्कीसवीं शताब्दी की है, 
एक टीचर क्लास में पहुँचे, 
बच्चों को सिखाने बातें भाषा की, 
सबसे पहले बारी आयी परिभाषा की।  

पूछा-सच की परिभाषा बताओ, 
टीचर ने बच्चो को देखा, 
बच्चों ने एक दूजे को,  
सबका क्लास मे यही था हाल, 
यार कुछ समझ नही आया सवाल।  

बोले टीचर-बच्चो कितने नादान हो, 
इस शब्द से भी अंजान हो, 
गर जवाब नही दे पाये तुम, 
फ़िर सबको कड़ी सज़ा दूँगा, 
सारी क्लास को मुर्गा बना दूँगा।  

बच्चे लगे फ़िर मुस्काने, 
अपने टीचर को समझाने, 
मुर्गा बनना अब सज़ा नही, 
इसमे तो कुछ भी बुरा नही,
इंसानो की हालत तो 
मुर्गों से भी बदतर है, 
आज के ज़माने में तो, 
मुर्गा बनना ही बेहतर है।  

टीचर ऊँची आवाज़ करके बोले, 
बच्चो को नाराज़ करके बोले,  
गर नही आता है जवाब, 
मान लो अपनी हार तुम, 
पर अपने टीचर से ऐसी बहस, 
मत करो बेकार तुम।

बच्चों ने मामले को संभालने की ठानी, 
सबने टीचर की बात मानी, 
बोले जवाब हमको आता है पर, 
लगता है इतना सा डर, 
शायद उत्तर इतना सटीक ना हो, 
कहीं आप इससे खफ़ा ना हो आये, 
होगा सबसे बेहतर यही शायद 
की आप ही इसका जवाब बतलाये।  

टीचर महोदय घबराये, 
शब्द ये उन्होने सुना हे कहाँ था, 
जो इसका मतलब वो बतलाये, 
एक मित्र ने उनसे लगायी थी शर्त, 
की इसका अर्थ वो खोजकर दिखाये, 
छान मारी कयी किताबें उन्होने,
मगर 'सच' का मतलब ना ढ़ूँढ़ पाये।  

बच्चों ने तो झूठा बहाना कर, 
उस सवाल को आसानी से टाल दिया, 
टीचर ने भी ऐसा ही कोई झूठ बोल, 
बच्चों को दूसरा सवाल दिया, 
'सच' तो असल मे ये था, 
बच्चे इस शब्द से अंजान थे, 
टीचर भी इससे परेशान थे,
उनकी तरह उस दौर मे, 
झूठ का सहारा ले रहे थे सभी, इसलिये जिन्होने ये शब्द सुना, वो इसी तरह हैरान थे।




Friday, June 5, 2009

शायरी ये तेरी गुलाम ना बनी रहे इसका डर है....

उस दिन लगा जैसे इस बात का फ़कर है, 
मैं कोई अंधा नही,शुक्र है मेरी भी नज़र है।  

जब तेरे रुख पे जाके रुक गयी मेरी निगाह, 
दिल बोले कयामत है,धड़कन कहे की कहर है।  

हवाओं की मेहरबानी से हुई ज़ुल्फ़ो में हलचल, 
ठहरी हुई महुआ की बूँद,या मानो एक लहर है।  

किन्हीं आँखों मे ना देखी थी गहराई कुछ ऐसी,  
दुनिया तमाम वीरान,इनमे बसता एक शहर है।  

बड़ी अदा में दाँतों से जो तू काटती थी लबों को,  
होंठो पे मद्धम दर्द,इस जिगर पे मरहम सा असर है।  

उतरा जो ज़रा सा तो और नीचे ना जाया जाये,  
ये तेरे करम है,या ज़ालिम ये तेरी कमर है।  

तूने शायर बना दिया इस बात का नाज़ होता है, 
शायरी ये तेरी गुलाम ना बनी रहे इसका डर है।

Monday, June 1, 2009

ज़िंदगी को बहुत प्यार हमने किया (एक लघु नाटक) - भाग 2

(तीसरा दृश्य - एक महिला रो रही है दहाड़े मार कर,यमराज और चित्रिगुप्ता वहाँ पहुँचते है।)

यमराज- ये कहाँ आ गये हम,यूँ ही साथ साथ चलते?

चित्रिगुप्ता - हे महाराज! सुन रहे है ये रोने की आवाज़। कल एक मनुष्य यमलोक आया था,बहुत आँसू बहाया था।किसी लाचार सा दिखायी देता था वो,अपनी जवान बीवी की दुहाई देता था वो। ये उसी की बीवी है,अब आगे देखिये।

(एक लड़के का प्रवेश,जो उस रोती महिला के इर्द गिर्द चक्कर लगाने लगता है)

लड़का - हाय डार्लिंग! फ़ोन तेरा औफ़ था,गूगल टौक पे तू औफ़लाईन थी,इसलिये मिलने चला आया। पर यहाँ आके देखता हूँ तेरे रोने का नज़ारा,अब क्या गम है जब मिल गया पति से छुटकारा।

लड़की - हाय,हाय,हाय,यमराज आये,मेरी भी जान लेके जाये। दौलत क्या खाक छोड़ी,उल्टा सर पे कर्ज़ आ गया है,खुद तो डूबा,मुझे भी डूबा गया है,मेरे पति ने तो समाज कल्याण मे अपना जीवन बिताया,इसलिये कभी माल नही कमाया,अब तो तू ही बचा ले,मेरी ज़िम्मेदारी उठा ले।

लड़का - मुन्नाभाई के शब्दों मे कहूँ तो मेरा हृदय परिवर्तन हो गया है,धर्म जाग गया है,अधर्मी सो गया है, अगर इतना नेक,इतना महान था तेरा पति,तो हे नारी,हो तू भी उसके साथ मे सती।

(यमराज और चित्रिगुप्ता ये सारा नज़ारा देखते है,और )

यमराज - हाय रे इंसान के बेशरमी,हर रूप मे मौजूद है अधर्मी।

चित्रिगुप्ता - हे यमराज,ऐसा नही है महाराज। आपको ले चलती हूँ वहाँ,जहाँ सुबह खूबसूरत,शाम हसीन है,जहाँ ज़िंदगी बेहद रंगीन है। वो है पास के बी आई टी मेसरा का पी एम सी एरीया !!

(पाठको को बता दूँ, हमारे कौलेज मे पी एम सी वो जगह है जहाँ से नो-एंट्री ज़ोन शुरु होता है,इसके पार एक दूसरी दुनिया बसी है,जहाँ हमारे कौलेज कि कन्यायें वास करती है)

(चौथा दृश्य - एक लड़का पी एम सी पर लड़कियाँ ताड़ रहा है,और रह रहके आपत्तिजनक टिप्पणियाँ भी कर रहा है,ऐसे मे यमराज और चित्रिगुप्ता {अदृश्य रूप मे} वहाँ आते है,तभी लड़के का फ़ोन बजता है)

लड़का - हाँ माँ! हाँ प्रणाम! पढ़ाई लिखाई,पढ़ाई लिखाई मे तो डूबा रहता है इस कदर मन मेरा, कि अब तो समर्पित है इसी को जीवन मेरा। आजकल ईंस्टीचियूट के चक्कर लगा रहा हूँ,डिस्पले ऐंड इन्टरफ़ेसिंग पे एक प्रोजेक्ट बना रहा हूँ।

यमराज - कहीं धर्म के नाम पर लूट है तो कोई माँ को कहता झूठ है। क्या सोचा था और क्या पाया,इंसान का असल रूप आज सामने आया।

(तभी एक फ़टे चिथड़े कपड़े पहनी औरत लड़खड़ाती हुई प्रवेश करती है,वो गिरती है और ये लड़का दौड़के उनके पास जाता है और सहारा देता है)

औरत - मैं तो जन्म जनमांतर की भोगी हूँ,मेरे करीब ना आओ मैं एक कुष्ठ रोगी हूँ।
लड़का - गरीबो लाचारों से दूर जाना तो एक नादानी है,मैं आपकी मदद करूँगा,कयोंकि यही फ़ितरते इंसानी है।

यमराज - अरे ये तो लेटेस्ट news है,अब तो यमराज भी confuse है।

चित्रिगुप्ता - हे यमराज,अगर आप ना हो नारज़,तो एक बात बताती हूँ,इन सबका सार समझाती हूँ।
(अभिनय के द्वारा ये ज़ाहिर होता है कि चित्रिगुप्ता यमराज को कुछ समझाती है)

यमराज - समझ गया। कुछ झूठे है,कुछ बे ईमान है,पर इंसान का इंसान से प्रेम इन सबसे महान है। हर इंसान मे कुछ बुराई है,कुछ अच्छाई है,पर यही जीवन की सच्चाई है। काश इस सुंदर दुनिया को हम और सँवार सकते,इंसानो को मारने के बजाय इनके अंदर की बुराई को मार सकते।

चित्रिगुप्ता - मुझे तो यकीन है कि एक रोज़,ये अपने अंदर की बुराई को ज़रूर मारेंगे।

यमराज - तो मेरा भी वादा है चित्रिगुप्ता,उस रोज़ हम धरती पे स्वर्ग को उतारेंगे,स्वर्ग को उतारेंगे ...

- - - समाप्त - - -

Sunday, May 31, 2009

ज़िंदगी को बहुत प्यार हमने किया (एक लघु नाटक)- भाग 1

प्रस्तुत है एक नाटक,जो मैने अपने कौलेज की एक प्रतियोगिता के लियी लिखी थी। स्टेज पर इसे पेश करना एक बेहद सुखद अनुभव रहा था, और हमारी टीम इस प्रतियोगिता मे प्रथम आयी थी।उम्मीद है आप लोगो को पसंद आयेगी :)

पहला दृश्य - यमलोक का नज़ारा! यमराज विचारशील मुद्रा मे,साथ है उनकी सहायिका चित्रिगुप्ता

यमराज - कभी कभी मेरे दिल मे ख्याल आता है,इंसान कयों रोता है जब वो मर जाता है,जब धरती पे स्वर्ग जैसी जगह नही कोई,फ़िर यमलोक आने से वो कयों घबराता है।

चित्रिगुप्ता - हे यमराज, कह देती हूँ आज।हर युग मे,हर लोक मे,सुख मे,शोक मे,इंसान बस अपनी ज़िंदगी चाहता है।अब तो यमलोकवासी भी अपनी मर्यादा लाँघ रहे है,हमारे कुछ कर्मचारी धरती पे तबादला माँग रहे है।

यमराज - हाय,कहाँ कमी रह गयी।इन्हे हमने मौत दी,अपने हाथों से परवरिश की,मनुष्य आखिर धरती लोक में ऐसा क्या पाता है,जो उसको यमलोक से अधिक भाता है। आज हम अपने विमान मे उत्थान भरेंगे,और नीचे जाके धरती लोक का दौरा करेंगे।कह दो देवताओं से की अपने दरबार मे हमारे पृथ्वी टूर का बिल पास करवा दे।

(दूसरा दृश्य। दोनो का धरती पे आगमन हो चुका है,एक लड़की खाई मे कूदकर अपनी जान देने जा रही है,यमराज कि नज़र उसपे पड़ती है। )

यमराज - चित्रिगुप्ता,ये अप्सरा सी कौन है?

चित्रिगुप्ता - जीवन की ठुकराई एक बेचारी है,जो आज मौत से भी हारी है,आत्महत्या कर यमलोक जाने की तैयारी है।

यमराज - जहाँ एक इंसान ना मरने के लिये गिड़गिड़ाता है,रोता है,वहाँ पर ऐसा भी होता है।आज ऐसा अनिष्ट देख यमराज भी रो गया,कोई आओ,बचाओ इसे,ये तो नादान है,जीवन के मोह से अंजान है,तुम लोगो को क्या हो गया!

(एक पंडित का प्रवेश )

पंडित - ओम शांति ओम,जय जय शिव शंकर,हरे रामा हरे कृष्णा!! क्या हुआ बालिका?

लड़की - नगर पालिका! नगर पालिका मे काम करता था वो,मुझपे बेहद मरता था वो।एक रोज़ उसके बनाये पुल की तरह उसका वादा भी टूट गया।

पंडित - और तेरे जीने का आस छूट गया? कर दे मुश्किल जीना,हाय रे इश्क कमीना। जीना मरना तो ऊपर वाले का खेल है,मत उसका अपमान कर,पर उससे तेरी बात करा दूँ,गर तू मेरा कल्याण कर,दान कर,दक्षिणा कर,फ़िर चाहे जहाँ मर्ज़ी मर। पूजा पाठ जाप कर दूँगा,तेरे पाप को निष्पाप कर दूँगा।

यमराज - बस ये धर्म मे अधर्म की गंदी मिलावट अब और ना सह सकूँगा,चलो चित्रिगुप्ता,अब मैं यहाँ एक पल ना रह सकूँगा।

(नाटक अभी बाकी है मेरे दोस्त।दूसरे और अंतिम भाग को लेके जल्द मिलता हूँ,तब तक अपनी राय और सुझाव देते रहे,और इस नयी कोशिश मे मेरा हौसला बढ़ाये )

Saturday, May 30, 2009

50 First Posts !!!

Post no. 1 to Post no. 50,its been quite an experience,quite a journey.One thing I could never do,according to my satisfaction,is giving ample time to blogging,yet the blog really is very very close to my heart.Maybe this "landmark" post will inspire me to write more regularly now,I know I write quite well( :P ) its just the time constraint,am sure you would find me more regular in the future :)



The previous 49 posts saw a total of 516 comments(and counting),with 23 English(dominated) posts receiving 182 comments(and counting) and 26 Hindi(dominated) ones with 334(again counting!).53.06% share of Hindi posts only indicate that I havent been biased towards any language,and such a proportion,in all modesty, is quite rare.Though an average of 12.84 comments for Hindi posts,in comparison to 7.91 for English ones do indicate which one of these has been more of my comfort zone! I know its too much of mathematics,maybe "freakonomics" has got into my head a little too much.Well I have always been someone really obsessed with numbers,the effect of which has been visible in my blog for the first time...not to be taken seriously folks :)



Picking my favourite 11 posts in this blog...the ones which are closest to one...readers,specially d regular ones(whatever few I do possess)...Do check it out if u missed out on any of these...



एक अधूरी कविता की कुछ यादें :



1. एक अधूरी कविता - इस ब्लौग पर मेरी ये पहली कविता थी,जो आज भी मेरे दिल के बहुत करीब है।। और मेरे बलौग का नाम भी तो इसी कविता पर है :)


2. लफ़्ज़ों की एक इमारत है - अपने एक दोस्त की एक पंक्ति पे एक कविता लिखी थी मैने,और मेरे हिसाब से ये मेरी लिखी अब तक की सबसे अच्छी कविता है


3. Kya Hindi aise bolaa jaati hai!! - I guess the funniest post on this blog(at least for me),about the weird Hindi that my friend MK used.Its a part of our daily routine,but it was when I decided to quote his "sayings" during our IIT KGP trip,that the blueprint for this post was made.


4. A Visit to paradise - My experience when I visited my school,its been a long time since I could make such a plan again,but i sure miss my school a lot.It may not be the best one,nonetheless,its pradise for me.


5. Ek Adhoori kavita(ek baras baad) - The post celebrating the first anniversary of my blog,mentioning the names of several people who made this journey such an amazing one.As the 2ndanniversary approaches,I guess there are quite a few people more who deserve a place in that list....


6. Mera Pehla Pehla Pyaar - Another one which holds a special significance,it talked about all the lovely things for which I fell in my childhood,and how most of them gradually developed into a passion.Hindi will always be my love...and Rani enters her 11th year as my favourite actress :)


7. थोड़ा सा व्यंगात्मक हो जाये - हास्य व्यंग मे की गयी मेरी पहली कोशिश,इस विधा मे लिखी गयी पहली कविता

8. जब वी मेट - एक निजी अनुभव से प्रेरित ये लघु कहानी मुझे आज भी भावुक कर देती है,कहानी लिखने का ये शायद मेरा पहला गंभीर प्रयास था


9. Experience Spring Fest(part 2) - Almost an year after the visit to KGP campus(where our dear friend bowled us all with his hindi),I represented my Drama Society team from our college in the Spring Fest.I know this is one experience I can always look back for inspiration.


10. Ek non-ajnabee haseena se yun mulaakat ho gayee - After the train journey,time for a romantic bus trip.After discovering my seeming expertise in romantic hindi poetry,took a shot in a romantic narration in the other language.At least I enjoyed it :)


11. अगर तुम ना होती तो चांद की तारीफ़ कैसे करता - मुझे इस कविता की प्रेरणा अपने मित्र गौरव(गाज़िआबाद वाला) से मिली,जब उसने अचानक ही चांद पर एक बड़ी खूबसूरत पंक्ति बना डाली। एक बार फ़िर उसके कारण एक अच्छी खासी कविता बन गयी।उम्मीद है भविषया में कभी मुझपे उसके ख्याल चुराने का आरोप ना लगे :)



गर कोई बात यकीनी है,कोई बात गर ज़रूरी है, फ़कत ये की मेरी कविता अब भी अधूरी है।

सच कहूँ तो यही अधूरापन है जो मेरी सबसे बड़ी प्रेरणा है!!!

Wednesday, May 27, 2009

प्रकृति की गोद मे कभी सोये नही.. तो क्या किया तुमने !!!

क्या किया तुमने?? 
अगर खामोशी को कभी सुना नही, 
ज़मीं पे खड़े खड़े आकाश को छुआ नही,
हिलते नाचते पत्तों से बातें नही की, 
चहचहाते चिड़ियों से मुलाकातें नही की, 
प्रकृति की गोद मे कभी सोये नही,
चांद के कंधे पे सर रख रोये नही,  
आकाश को छुआ नही,खामोशी को सुना नही,  
क्या किया तुमने??  

इंद्रधनुष के रंगों से होली नही खेली कभी, 
तुमको देख बस आहें भरते रहे पर्वत सभी, 
बादल के कोने को हाथों से तोड़ा नही, 
और आँखों से नदी का रुख मोड़ा नही, 
छत से ज़मीं पर कभी छलाँग मारी नही,  
और इस हवा की कभी की सवारी नही,  
आकाश को छुआ नही,खामोशी को सुना नही,  
क्या किया तुमने??

Tuesday, May 26, 2009

CELEBRATING LIFE...


                a mother created the life,
                and gave it the best reason,
                a doctor operated the life,
                only to make it even healthier,
                sw engineer programmed the life,
                for an improved interfacing,
                a poet descibed the life,
                and made it sound more complicated,
                and then,I came,I saw...
                and..celebrated the life..and still,
                      CELEBRATING LIFE !!

Sunday, May 24, 2009

एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा



यूँ तो बेवजह तारीफ़ मैं करता नही,


पर आज ये शायर दिल मजबूर है,


आज तक नही किया नशा जिसने,


आज तेरे हुस्न के नशे में चूर है।


चंचल सी,मद्धम सी ये धूप जैसे,


फ़िसल रही हो तेरे खुले बाहों से,


तेरा स्पर्श करने को आतुर हूँ,


पर हाथों से नही,निगाहों से।


दबी हुई हसरत है की मेरी नज़र,


तेरा आँचल बन तुझसे लिपट जाये,


या तेरे दीदार की प्यासी निगाहें,


तेरा अरमान बन तेरे दिल में सिमट जाये।


मेरे होंठ तेरे लबो पे सज जाये,


पर तेरी ही कविता के बोल बनके,


और समाये तेरी साँसे मेरी साँसो में,


फ़कत एक एहसास अनमोल बनके।


तेरे चेहरे की चमक ये जैसे,


मेरी रातों को रोशन करती है,


ख्वाबों के तहखाने में आने को,


जो तू यादों की सीढ़ियाँ उतरती है।


मुझमे तू है और तुझमे मैं हूँ,


इस हकीकत से अब मैं अंजान नही,


खूबसूरती की इस ज्योत के बिना,


इस सजल अस्तित्व की पूर्ण पहचान नही।

Saturday, May 9, 2009

अगर तुम ना होती तो चांद की तारीफ़ कैसे करता :)

दोस्तों,मुझे इस कविता की प्रेरणा अपने मित्र गौरव(गाज़िआबाद वाला) से मिली,जब उसने अचानक ही चांद पर एक बड़ी खूबसूरत पंक्ति बना डाली।इस पर मैने एक छोटी सी कविता रचने कि कोशिश की है,जो असल में मेरी खुशी का इज़हार है। गौरव को सहित्य में ऐसी कोई खास रूचि ना होने के बावजूद,वो पहले भी मुझे कुछ कुछ लिखने के लिये प्रेरित कर चुका है।ऐसी दो उदाहरणों को यहाँ पढ़े : लफ़्ज़ों की एक इमारत है सोने की अपनी नाँव है,चांदी का बाकी पानी है

इस बार की पंक्ति: अगर तुम ना होती तो चांद की तारीफ़ कैसे करता !!

मेरी कविता,एक सलाम इस खूबसूरत ख्याल को :

अगर तुम ना होती तो चांद की तारीफ़ कैसे करता,
इतनी हसीन कविता लिखने का जज़्बात कहाँ उभरता।।।

मेरा सारा काव्य सौंदर्य तेरे सौंदर्य की लीला गाता है,
मेरे लेखन का नशा तमाम,तेरे नशे में चूर हुआ जाता है,
मेरी कल्पना की उड़ान तुझे चांद पर,कभी सितारों पर पाती है,
और विचारशीलता की ऊँचाई तुमको आसमाँ पे बिठाये जाती है,
सच मानो तो ये सारा रस तेरे रूप के रस का बखान करते है,
देखो तो अलंकार ये,तुझसे अलंकृत होकर ही संवरते है,
अनुप्रास के नाम पर बस तेरा नाम बार बार दोहराता हूँ,
श्लेश के बहाने  तेरे एक एहसास के अनेक अर्थ बतलाता हूँ


ज़माना लाख सोचे की मैं कैसा प्यारा,कितना खूबसूरत लिखता हूँ,
लेकिन मेरा दिल जानता है,मैं सिर्फ़ और सिर्फ़ तुमको लिखता हूँ,
ना होती तुम तो किसके दम पे कवि होने का दंभ भरता,
अगर तुम ना होती तो चांद की तारीफ़ कैसे करता !!!

Tuesday, May 5, 2009

ज़िंदगी शिकायतों में एक इज़ाफ़ा और कर गयी ....

तकलीफ़ इस दिल में जब और उभर गयी,
अपनी शायरी उस रोज़ कुछ और निखर गयी।

उनकी मजबूरी को देखो मिलन का नाम देते है लोग,
कभी किनारा नदी में समाया,कभी नदी किनारे पे उतर गयी।

हवा यूँ कानों के पास से गुज़री,मानो पूछा हो हाल मेरा,
जाने क्या था सवाल जिसको सुन मेरी तबीयत ही डर गयी।

तुझको बता ना सका,वो हाल-ए-दिल तन्हाई को सुनाया मैने,
हुआ ये माहौल,मेरी हर महफ़िल मे मेरी तन्हाई घर कर गयी।

फ़िर शाम ढ़लने तक तेरी नज़र को सुनता रहा मैं,
और फ़िर तेरी आवाज़ मेरे दिल को छूके गुज़र गयी

कभी चांद को नये मतलब,मायने,नाम देता चला गया,
तो कभी चांदनी टूटकर मेरी हर शायरी पे बिखर गयी।

एक एक ख्वाईश जब बेआबरू हो आँखों से टपक पड़ी,
मेरी कलम शब्दो के अदृश्य दायरे में उसको कैद कर गयी।

दर्द का वो आलम जब जज़्बात अपाहिज से लगने लगे,
क्यों मजबूर रहूँ,कि,मेरी चाहत कल्पना के उड़ान भर गयी।

ज़माना मुझसे बोला,देख आज तेरी उम्र बढ़ गयी,
मैने सोचा ज़िंदगी शिकायतों में एक इज़ाफ़ा और कर गयी।

थोड़ा और शायराना हो जाये :)

दायरे खुद अपनी हदें तय करते है,
वर्ना सीमा तो कुछ भी नही!!

सपना और कुछ नही,तेरे ना होने पे भी तेरा होना है,
और ये सपना सपना है सच नही,बस इस बात का रोना है।

काश एक ज़िंदगी ऐसी भी मिलती,
जो गुज़र जाती बस तुमको देखते हुए!!

मज़ा क्या रहे गर मेरे प्यार को वजह मिल जाये,
मुझे तो हसरत है तेरे लिये बेवजह बर्बाद होने की : )

एक आलम ऐसा भी आयेगा,
जब दस्तखत की जगह भी तेरा नाम लिख आऊँगा ।

ऐ ज़िंदगी चार पल फ़ुर्सत के दे दे,
या वो पल दे दे जब फ़ुर्सत कि ख्वाईश नही थी ।

मेरे लिये मैं बनना ही मुश्किल था ज़िंदगी में,
तुम मुझे तुम बनने को कह रहे हो ।

Monday, May 4, 2009

मुमकिन है मेरा प्रेमकवि बन जाना...



हम कहाँ थे समझे दिल का ये लगाना,


फ़िर भी लगा लिया दिल,नासमझी का कर बहाना।


यूँ तो मुमकिन नही की मोहब्बत की बाज़ी हार जाऊँ,


लेकिन मेरी फ़ितरत में है शामिल,तुमसे मात खाना।


तुमको भूले भी तो और कुछ खयाल ना रहा,


और याद रखा,तो भूल गये तमाम ज़माना।


मरना भी हमे कब कहाँ नागवार गुज़रा था,


लेकिन मुश्किल लगता है अब तुमको भुलाना।


फ़िर मुझे चांद मे तेरा चेहरा नज़र आया,


फ़िर आसां हो गया तुमपे कविता बनाना।


हवा भी जैसे हौले से कान में कुछ कहके गुज़री,


तुम्हारी तरह आ रहा है इसको भी बातें बनाना।


फ़िर हाथ उठाया मैने,फ़िर आसमां को छू लिया,


तेरे खयालों में डूबा रहूँ,तो मुमकिन है हर ऊँचाई को पाना।


तुम कहती हो हमारी मुलाकात एक इत्तफ़ाक है,


मैं कहता हूँ मेरी तकदीर है तेरा यूँ मिल जाना।


अपनी तो उम्र गुज़र गयी तुमको याद करते करते,


अब तो चाहता हूँ बस एक बार तुमको याद आना।


आज तक फ़कत दर्द के वाक्ये सुनाता रहा मैं,


अब तेरी मेहरबानी से मुमकिन है मेरा प्रेमकवि बन जाना।

कशमकश

बना बिगड़ा, बिगड़ा बना,और बनता बिगड़ता रह गया,

प्यार का बुखार,तापमान की तरह उतरता चढता रह गया।

मुनासिब ना था मोहब्बत की जंग हार जाना,

इसलिये हार जाने के बाद भी मैं लड़ता रह गया।

मज़ा देखो की बस उसकी नज़र में गिरता चला गया,

वरना ज़िंदगी के बाकी हर पहलू में तो चढ़ता रह रह गया।

मेरी चाहत की शमा को तेरी एक फ़ूँक ने बुझाया था,

और मैं नादान था जो हवा से झगड़ता रह गया।

अपनी ही नासमझी में देखो अपनी जान गँवायी मैने,

उनको इलाज की अदा ना आयी,और मैं बीमार पड़ता रह गया।

तू मुझे किसी अंतरे की तरह भूल गयी !!!


कैसी थी वो पत्थरदिली की मुझे

ठुकराने की बात तू कबूल गयी,

मैने तुझे मुखड़े की तरह याद रखा

तू मुझे किसी अंतरे की तरह भूल गयी।

जो दूर जा जाके भी मुझ तक वापस आता रहा,

बेदिलि के जाने ऐसे कौन से झूले पे तू झूल गयी।

चाहत मुझे उधार में भी नही दी तुमने,

और वफ़ा की दौलत मुझसे वसूल गयी।

गलत था मेरा छोटी से छोटी चीज़ को याद रखना,

या भूल था कि तू बड़ी से बड़ी बात भूल गयी।

Monday, April 6, 2009

थोड़ा सा शायराना हो जाये

1. आस्माँ पे उग आते इस सूरज को देखके लगता है,
कभी आये यूँ ही कोई मेरी भी ज़िंदगी में नया सवेरा लेकर !!



2. दीवानगी की एक हद ये की लैब में
तेरे चहरे को डेस्कटौप वॉलपेपर बना लिया,
और एक दीवनगी का आलम ये भी,
कि जो भी वॉलपेपर लगाया,
टेरा ही चेहरा नज़र आया !!

3. तेरे ख्वाबों का तोहफ़ा ही देने आयी हो जैसे,

आज नींद भी आयी कुछ ऐसे तकल्लुफ़ से...

4. आज लिखना चाहता हूँ तुझपे,

पर लिख नही पाता कुछ,

कोई मिसाल ही नही दे पाता,

कोई कहता है तुम हज़ारों में एक हो,

कोई कहे है,लाखों में एक हो...

मैं क्या कहूँ, मुझे तो लगता है...

तुम बस एक हो!!

5. अल्जेबरा के इस जोड़ घटाव में जब तेरा ख्याल आया,

तो लगा,तू मेरी ज़िंदगी से जुड़ जाये बस,सारे गम घट जायेंगे ...

6. काला लिबास है या काला जादू कोई,

जो तुमपे लिपटा हुआ,मुझपे छाया हुआ है !

7. तेरे पास आने से डरता हूँ,

कि एक झटके से झकझोर न दे तू मुझको,

पर जानता हूँ,कि छू लूँ तो

तेरा एहसास बह जायेगा मुझमे..

हाँ बिजली ही तो हो तुम !! (composed when sb asked me 2 write a sher on 'electricity' )

8 कल चांद मुझसे बोला,

तू भी मेरे साथ रह सकता है,

अब तो तुझे भी आदत पड़ने लगी है,

अंधेरे में रहने की...

9. बादल की ऊँचाई देखकर क्यों जलते हो

वो तो टपकेगा एक रोज़, बूँद बूँद बनकर ....

10. फ़िर तेरा ज़िक्र आया,फ़िर तेरी कमी महसूस हुई,

आज फ़िर तड़प उठा इस बात पे दिल,

कि क्यों तेरा ज़िंदगी में लौट आना मुमकिन नही,

मेरे बचपन,कहाँ खो गये तुम??

11. फ़िर आज चांद बना रह है शक्ले अजीब सी,

फ़िर आज किसी की खूबसूरती मेरे

डरने की वजह बन गयी है...







Tuesday, March 31, 2009

Ek non-ajnabee haseena se yun mulakat ho gayi


Usually I like watching the sunrise,but that day, it was different.Not because I didnt like it,but because I didnt see it,well not in the literal sense of it actually.I did wake up early,as my habit goes,looked at the morning sky,but this time I didnt "see" the sun rising,I "felt" it.For the non philosophical souls wondering when I will start making sense,I would like to elaborate that I felt a desire,an urge,maybe even a need, of someone bringing a new dawn in my life,maybe someone would rise up in this sparkless unromantic life...maybe!!


The bus was about to leave,we were three people on the seat.One of our friends sat near the window,but I wanted to count us,as just two,she...and me,living at the edge,and sitting at the edge.The journey was to last around quarter of an hour,and it was just the begining of a sweet little day,just the first few minutes of plenty that I would spend with her.Well to sum up,it was just the begining...but then,it was the begining,and I wanted it to be as perfect as possible.I was more nervous than I had been during any of the vivas in my college(bad comparison I know!!),just a little confused as well.It isnt that I didnt try to calm my nerves,afterall it was just a routine outing of some friends,everyone expected it to be just normal,so why couldnt I.Whatever be the reason,the fact is,being normal was not among the options,also "none of these" wasnt there.I could even feel my sense of humour going haywire then,just as the very recollection of those moments is making it happen now.So we had been together for close to ten minutes,the bus journey had started a couple of minutes ago,and,I had uttered exactly a couple of words to her so far.God bless the person who invented the phrase "Good Morning"!!


"You look beautiful", you had to be a fool to expect a dumbo like me,with all the nervousness of the world engulfing me,to say that to her.But this was one of the few 3 word phrases that I wanted to say.Expectedly "good morning" remained my only words for quite some time.Then there was a mention of my SMS in the morning which had remained unanswered,when finally my philosophical self found its own,and I said "its not always a good thing to keep someone waiting".As it commonly happens,my philosophy remained unanswered.Again a generation of silence followed,only constructive things I did then, was to think of as many things to talk about as I could.The weirdo bus was noisy and it was not helping my cause either.Complete solitude was not possible,but at least we could have some silence.My prayers were answered when the bus stopped for filling its energy reserves,motionless meant noiseless,and I had to find my voice then.So what were the things that I could talk about.My favourite TV series had been an indirect recommendation of her,I thought of making a mention of that.After all,it never harms to show the other person that you remember things even remotely related to her.The funny thing was, I couldnt talk about it,as it would bring a third person into the frame,a name which probably would have made her uncomfortable then.For the confused ones,its one of our common friends,who wasnt on talking terms with her then,and who,was directly recommended about my favourite series.With this also went the second topic,which was another one of my favourite serials,again a result of her indirect recommendation.If anything could make her feel even an enigma of ackwardness,I must avoid it,and thats what I did.Of course I had other topics but then the bus,and the noise,had started all over again.So I was back to doing the best thing I could do then,admire her.Let me just give a detailed account of what it is like,when you,want to believe,that the person next to you is the most beautiful person alive!!


It wont be true if I say that I could not remove my eyes off her.The truth is,I felt so shy that I wasnt looking at her much,but I would stil like to believe ,and would appreciate if you also believed, that all the time, I was only looking at her....even when, I wasnt.I wanted to tell her,that in almost three years that I had known her,I never found her so attractive.Among many reasons for my feeling so,was also the obvious one that she indeed looked very very pretty that day.Something was clearly wrong with me,I was noticing things like her ear ring to even her chappal!!..I had never been someone with any sort of taste for these feminine things,but lots was different that day.Again it wont be true if I say that I was falling in love with her,yet the reality is...I wanted to.


I was sitting close to the back door of the bus,the genius angel noticed it,and remarked "hey dont fall down the bus".So far so good...and then she added "dont worry,I wont let you fall".XYZ public will argue that there isnt anything hugely romantic about this comment,but then I was in my own land of dreams and desires.I had my own interpretations and this gentle comment of hers had a romanticism attached to it,which only my heart could have identified then.If she smiled at me,passed a momentarily glance at me,did anything which could be anyway related to my presence next to her,even the smallest of things,it was driving me crazy.I felt an urge to sing 'pehla nasha pehla khumaar' in some filmy location,throwing my cap all over the place.Again sanity prevailed,for a while,and I decided to start some sort of discussion with her.Yes,it was time for an extended conversation now.I already had a topic(in fact many topics) ready,MBA preparations.It was a nice issue,and there was just so much that we could discuss about,as two genuine aspirants of one of the toughest entrance exams.The conversation was a mild success,with exactly one question(by me) and one answer(by her).Here I am,a guy,who wishes to get into the best management college of the country,face the toughest interviews with confidence,struggling to express a routine attraction that I was feeling for a girl...only if that were a routine attraction.It may sound a tad monotonous,but I cant restrain myself from mentioning,again,that she looked lovely,and seemed to be getting lovelier by every minute.The journey was nearing its end,and I finally gathered the courage to face the harsh reality,that I had been an absolute dumbo,maybe even a bore.The irony is,I still loved those moments.


Now,putting things into perspective,and finally getting into the normal mode,I know, all that meant nothing.Yet,it conveyed so much.The Mba talk(of 2 sentences) was the last chat we had during the journey,but I am not complaining now.Some things are better left unsaid,specially when silence can be so beautiful,and so very romantic.Purists may disagree,but I would still like to believe,and would appreciate if you also believed,that I fell in love with her during those moments,during that journy,even if I wasnt in love,just a couple of hours later.Someone once said "we derive greatest of pleasures in the simplest of things",now I know,that the guy must have had a similar trip in his life!!



Story Behind the Story: I am in the middle of reading "anything for you madam" by Tushar Raheja.The book is very much in the Chetan Bhagat mode,yet I am enjoying the romantic aspect of it,which even made me write something myself,on this enigma called romance.Also,not only does this post come straight out of my heart,it also comes out of my imagination.After a narration of train journey,inspired by a true experience,I found a bus journey,a convenient topic...comments and suggestions are most welcome :)

Saturday, March 28, 2009

क्या है मेरी ये ज़िंदगी ??

क्या है मेरी ये ज़िंदगी..कमरे का ट्यूब लाईट,
जिससे पल पल की रोशनी के बदले
एक कीमत अदा करनी पड़ती है...

या वो खाली बालटी,
जो सिर्फ़ ज़रूरत के वक़्त भरी जाती है,
वर्ना खाली ही रह जाती है ...

दरवाज़े पे पड़ा डोर मैट,
जिसे जिसने भी देखा,
नज़र झुका के ही देखा...

मेरी खिड़की पे लगा ये पर्दा
जो मौसम के मद्धम होने पर
परे हटता आया है,
मगर धूप झेलता आया है ....

या शायद ये अलार्म घड़ी
जिसकी आवाज़ नींद से जगा तो देती है
पर ये नही बताती की
इस जागॄति का क्या करूँ ....


क्या है मेरी ये ज़िंदगी??!!!

This post is interesting..no funny..no interesting...no slightly complicated !!

The piece of writing below is CERTAINLY NOT my piece of imagination,well as many would APPRECIATE the point,that it cannot be.In all weirdness,these are words/phrases/watever uttered by one of our teachers.Many people may dismiss it as mere slit of pongues,but I,with my blessed aesthetic sense, have always enjoyed them thoroughly.All the readers who are unfamiliar with the person concerned will need a little imagination,a bit of visualisation,to APPRECIATE the comments,which were made in all seriousness.For the special class of readers who happen to be my classmates,am sure they would enjoy the remarks,and if possible,remind of other such instances they can think of...enjoy :P

It is very funny,no intersting...no funny
It is very slightly complicated..very complicated
You make a pant,give a shirt,give a shirt,make a pant..it is the same
Obviously I dont have any intention of writing all these equations
Is it making logical sense or not?..why? (WTF??)
Ok anyhow I will explain now listen!!
In this thing,it is only for this thing
It is very IMPORTANT BUT I will try to explain it
Your book I have not put the mark,it is in the photocopy!!
I will explain,I have not completed according to my satisfaction
Are you appreciating my point..no..ok!!
I will finish today's class in one statement..no two statements!! (surprisingly the 2 statements took around 12 minutes)

Sunday, March 22, 2009

मेरी तन्हाई की अमानत...

उसने कहा, बस बहुत हुआ,

क्यों ज़माने की महफ़िल में

आखिर ले जाते हो मुझको,

किसलिये सबसे मिलवाते हो मुझको,

अब तंग आ चुकी हूँ मैं,

वो गलत नज़र से देखते है

इसलिये नही,बल्कि इसलिये

की कोई देखता ही नही,

किसी को कोई फ़र्क ही नही पड़ता...

सजल,तुम्हारे अलावा मुझे

कोई समझ ही नही पाता,

सच कहूँ तो मेरी मौजूदगी

का एहसास तक नही करवा पाता,

जानती हूँ मेरे अपमान पे

तुमको भी तकलीफ़ होती है,

तभी तो कहती हूँ...

मुझे अपनी संगिनि बनाओ लेकिन

किसी और का साथ निभाने को ना कहना,

मैं तुम्हारी थी,तुम्हारी ही रह जाऊँगी

प्लीज़ किसी और को अपनाने को ना कहना,

है इसी में अब खुशी मेरी तमाम

की बनके रह जाऊँ,

तेरी तन्हाई की अमानत मैं.....

ऐसा जब मेरी 'कविता' ने मुझसे कहा,

मैं चुपचाप,बस देखता रह गया उसको!!!

P.S : This post is a result of a realisation,and the importance of giving the required importance,and love,to ones own compositions...because at the end of the day,the world will never understand them,as well as we do,if my 'kavita'is special for me,am sure she expects me to be the same for her :)

Wednesday, March 11, 2009

DELHI 6...and the Ramayana Konnection




If you havent seen the movie....DO NOT READ THIS....and...WATCH THE MOVIE!!

I hereby attempt to present my views over the Ramayan connection of the movie Delhi6.It is something which is subjective,different people will have different interpretations,but surely if we dwell into it,we would appreciate the movie more,as a work of art.Here i go...

Purpose: Ramayana may be regarded as the most important piece of literature for our country.We Indians,hold it in high esteem,most of us have significant knowledge about it,but there are minute aspects which we tend to ignore.Ramayana,though an ancient epic,encompasses most of the modern issues,the problems,as well as the solutions.It has this ability to make us understand even the contemporary problems beter,and accept solutions,which we have always known,but find it difficult to accept.


Story connections: The 1st reference made to kala bandar,is followed by the description of Treta yug demon ravan,preseting Kala bandar as a wicked force.

Soon,we have the description of Ram and its said:"avadh mein aata hoon",and the next scene is about the situations that will lead Abhishek to Delhi.In a way,Abhishek here is being depicted as a messiah about to go somewhere.
Sita haran in Ramayana-can be compared to the way Sonam is tricked by an illusion(just like Ravana's fake impression before Sita when he comes as sanyasi),in a way she is also running under a false impression.Later we find how a monkey(Hanuman) becomes her saviour.Again this is a similarity on both occasions.

The references to monkey have been on different grounds,kala bandar as a positive thing(as above),kala bandar as a negative one(on several instances ,and also as the great Hanuman.
Coming to Hanuman,one thing I felt is though the religious text of Hindus,does it gurantee in any way that Hanuman(or any vanar) was a Hindu(dont decide anything by the name,if we know these names to be hindu names,its because we accepted them to be those).Reason of feeling this way was the episode where people are fighting over the religion of 'kala bandar',which raises some serious questions...
Talking about Ramayana offering solutions to many modern day problems,we have jalebi incident,followed by Shabri act being depicted.It is also shown that a small child asks the question"agar shabri achoot hai...",something which even a small child can observe,but we fail to understand.Also the reasoning "wo to bhagvaan hai,unko maaf hai" that Gobar offers indicates another important aspect."When you associate something with god or religion,people can allow rationality to take the backseat"(Very imp. for us to realise,this is what has led to biggest of probs,a person cannot distinguish bw right and wrong when it pertains to his religion,but I believe that in todays world,one must believe that no God is bigger than logic,rationality and truth).
Another instance is where,people talk about killing Kala bandar,which is followed by act of Ravan trying to kill Hanuman,which actually led to Lanka dahan and total anarchy.this is similar to what was to follow in the movie.

Then we have the war scene,Devta and raakshas war,with shouts of "har har mahadev around",it is followed by the riot scene where we find the violent Hindus shouting "har har mahadev".But are they fighting the demons,no because they fail to recognise them.


If Dev D was a wonderful take on modern Devdas,this also is an exceptional take on modern ramayana,which doesnt go the parody way,it goes the mature sensible path.Remember the movie has often talked about the genral goodness of humanity,as Abhishek says "yahaan log achhe hai"..this is what we have to realise,if today one needs to fight the Ravans,you just CANNOT fight others,because everybody is good at heart,you have to fight the RAVANA or the KALA BANDAR inside you,eliminate the reasons why the rams of today(which includes every person...because har kisi mein usi ka noor hai!!) sometimes behave as the Ravans....


Now if that isnt a masterpiece,what is then??...Hats off to Mehra Sir,and congos to Prasoon Joshi,his venture as a writer of the movie,even if not a box office success,is a brilliant piece of cinema.The metaphorical value of this movie,once realised by the masses,will make it a very very memorable one.I salute this piece of cinema,I could feel it,get involved,and maybe make it a part of my life..let us all pledge to kill the Kala bandar inside us,and fight the actual Ravan!!