सोने की अपनी नाँव है
चाँदी का बाकी पानी है,
तमाम खुशी से बेहतर
अपने गम की कहानी है...
रह गया हूँ ज़माने से दूर क्योंकि
इसकी चाल धीमी है
अपनी रफ़्तार तूफ़ानी है...
कैसे अलग हूँ उन लोगों से
जिनसे आज मैं हार गया
अपनी आदत सच्चाई है,उनकी फ़ितरत बे ईमानी है...
मेरे लिये तो ऎ यारों
बाद में आता है कोई मुकाम जीतना
सब्से पहले दिल जीतना,और दोस्ती निभानी है...
आँसू की बूँद ना कहो इसे तुम
पराया दर्द महसूस करने का जज़्बा है
मेरी आँखों में ठहरा हुआ जो पानी है...
ऐश और अय्याशी में खोयी नही है
जज़्बातों के आँगन में सँवरी है
तुम ही कहो किसकी बेहतर जवानी है...
क्या परखेगा ज़माना मेरे हौसले को
अब तो मुझे इस तमाम
ज़माने की हिम्मत आज़मानी है...
इन मामूली मुश्किलातों से भला कैसे
गिर जायेंगे ये कंधे मेरे
जिनको इस जहाँ की ज़िम्मेदारी उठानी है...
औरों को हरायेंगे एक रोज़
मगर जीत के मायनो को समझना है पहले
और खुद से जीतने की आदत बनानी है...
this is second post in succession which has been inspired by few words uttered by my friend Gauri(from gzb remember??)....well i havent been writing much lately as not much has been able to inspire me to that degree,but Gauri's words have such a significance for me that i always try and make sense out of his attempts at poetry(and good sense).....hope this process continues....as am really enjoying it and feel kinda sweet about this whole thing at times....thanks again Gaurav!!
Wednesday, January 23, 2008
Wednesday, January 16, 2008
लफ़्ज़ों की इमारत है.....this one is to you Gauri
this composition of mine has to be a very special one for me.....so first of all a short story behind it....I dedicate this one to one of my dear friends Gaurav Saxena from Ghaziabad(!!!)....maybe all the stuff about our friendship and a rather unique and special relation that we share,will be discussed in some furture post of mine....at the moment its just required that i tell you that he is no fan of Hindi literature....probably not even like a big admirer or something....yet is known as "sahitya ka baap" among us friends....has teased me like hell on some poetic issues.....and in this process kept on coming up with many 'nuisance' lines...but recently some really good ones have struck his imagination,or maybe am trying too much to take him seriously.....
it was one of his lines "lafzo ki ek imarat hai" which caught my fancy....though he followed it up with a line,rather ordinary,to make it a 'sameer like' composition...but i decided to make something out of it..
i did manage to pen down something within a couple of days,and it certainly is now among those ones which have a special significance for me....so here i share the poem with all of you....this is to you 'sahitykaar gauri'......
लफ़्ज़ों की एक इमारत है,
जो अपनी डायरी में हमने बनाई है,
ये दुनिया मगर अब तक इसके कई कमरों से पराई है,
एहसास की बुनियाद पर
जज़्बातों के ईंट तो सजाये है हमने
किसी को पर कहाँ देगा दिखाई कुछ
इन पर दिखावे की प्लास्टर जो चढ़ाई है.....
इसी इमारत में कहीं एक तहखाना है,
जिससे मेरा करीबी दोस्त भी अंजाना है,
मेरे बेड-रूम में बिस्तर परकुछ दर्द बिखरे पड़े है,
पर दीवारों पर झूठी मुस्कान की तस्वीरें टंगी है
अपने इस इमारत में हम किस कदर हैरान खड़े है.....
बंद लौकर में मेरी मोहब्बत रखी हुई है,
बेहद महत्वपूर्ण मगर छिपी हुई है,
उसी कमरे में तकिये के नीचे
उदासी को छिपाया है,
जिसकी दीवारों को
शोख चटकीले रंगो से सजाया है.....
एक और कमरा जहाँ कभी सफ़ाई नही होती,
क्योंकि यहाँ की चीज़ों से कोई कमाई नही होती,
कुछ शौक,कुछ पसंद,कुछ अरमान मेरे
टेबल पर रखे हुए है
जिनपे धूल की पर्त चढ़ गई है,
वहीं पास वक़्त के शोकेस में
भविष्य की तस्वीर लगी है
जो अपने आप ही बिगड़ गई है,
कमरे के दरवाज़े पर डोर-मैट की जगह
एक अच्छा इंसान बनने की हसरत धरी है
जिसपे पोंछ लेते है लोग पैर देखो,
पर बड़ी अदा से गुज़र जाते है फ़िर
अरमानो के इस कमरे में
एक बार भी झाँके बगैर देखो....
यूँ तो लफ़्ज़ों की इस इमारत में
हर रोज़ कई लोग आया जाया करते है,
कहीं हल्के उदास होते है
तो कहीं पर मुस्काया करते है,
पर हर कोई इस बात से अंजान है,
इसी इमारत में छिपी मेरी सच्ची पहचान है,
इसके प्रवेश का एक रस्ता और है
जो मेरे दिल से होकर गुज़रता है,
उस दरवाज़े से आने की ज़हमत उठाये तो
गूढ़ गहराईयों से हटता है परदा
और इस इमारत में मेरा असल व्यक्तित्व उभरता है......
it was one of his lines "lafzo ki ek imarat hai" which caught my fancy....though he followed it up with a line,rather ordinary,to make it a 'sameer like' composition...but i decided to make something out of it..
i did manage to pen down something within a couple of days,and it certainly is now among those ones which have a special significance for me....so here i share the poem with all of you....this is to you 'sahitykaar gauri'......
लफ़्ज़ों की एक इमारत है,
जो अपनी डायरी में हमने बनाई है,
ये दुनिया मगर अब तक इसके कई कमरों से पराई है,
एहसास की बुनियाद पर
जज़्बातों के ईंट तो सजाये है हमने
किसी को पर कहाँ देगा दिखाई कुछ
इन पर दिखावे की प्लास्टर जो चढ़ाई है.....
इसी इमारत में कहीं एक तहखाना है,
जिससे मेरा करीबी दोस्त भी अंजाना है,
मेरे बेड-रूम में बिस्तर परकुछ दर्द बिखरे पड़े है,
पर दीवारों पर झूठी मुस्कान की तस्वीरें टंगी है
अपने इस इमारत में हम किस कदर हैरान खड़े है.....
बंद लौकर में मेरी मोहब्बत रखी हुई है,
बेहद महत्वपूर्ण मगर छिपी हुई है,
उसी कमरे में तकिये के नीचे
उदासी को छिपाया है,
जिसकी दीवारों को
शोख चटकीले रंगो से सजाया है.....
एक और कमरा जहाँ कभी सफ़ाई नही होती,
क्योंकि यहाँ की चीज़ों से कोई कमाई नही होती,
कुछ शौक,कुछ पसंद,कुछ अरमान मेरे
टेबल पर रखे हुए है
जिनपे धूल की पर्त चढ़ गई है,
वहीं पास वक़्त के शोकेस में
भविष्य की तस्वीर लगी है
जो अपने आप ही बिगड़ गई है,
कमरे के दरवाज़े पर डोर-मैट की जगह
एक अच्छा इंसान बनने की हसरत धरी है
जिसपे पोंछ लेते है लोग पैर देखो,
पर बड़ी अदा से गुज़र जाते है फ़िर
अरमानो के इस कमरे में
एक बार भी झाँके बगैर देखो....
यूँ तो लफ़्ज़ों की इस इमारत में
हर रोज़ कई लोग आया जाया करते है,
कहीं हल्के उदास होते है
तो कहीं पर मुस्काया करते है,
पर हर कोई इस बात से अंजान है,
इसी इमारत में छिपी मेरी सच्ची पहचान है,
इसके प्रवेश का एक रस्ता और है
जो मेरे दिल से होकर गुज़रता है,
उस दरवाज़े से आने की ज़हमत उठाये तो
गूढ़ गहराईयों से हटता है परदा
और इस इमारत में मेरा असल व्यक्तित्व उभरता है......
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