रस्ते के पत्थर
पर पड़ी जो नज़र
उधर से गुज़रते हुए,
खुद को पाया मैने एक
तुलनातमक उड़ान भरते हुए,
विचारो की गहरायी में
अनायास उतरते हुए,
ये निर्जीव पत्थर
कहाँ जानता है,
किसी से इसकी कितनी
अटूट समानता है,
ऐसा जब मेरी
चेतना विचारी,
तो सामने आई
बातें कई सारी,
वो भी इसकी तरह
कठोर,बेजान
जज़्बातो से अंजान,
मिट्टी से गहरा नाता है,
पर इनका मस्तिष्क
ये कहाँ समझ पाता है,
इनमे एक और
बात समान है,
की दोनो के ठोकरो से
अपना दिल घायल
मन परेशान है,
और ये इस बात
से परेशान है,
की ज़माना इन्हे
ठोकर लगा जाता है,
थोड़ा सा हिला इनमे
चलने की हसरत जगा जाता है,
एक और पहलू
जहाँ दोनो में कोई भेद नही,
बाहरी एहसास देखो तो
शिकायत दोनो से है
मगर कोई भीतरी मतभेद नही,
पर सबसे अहम
बात तो ये है
इन्हें अपने पथ में पाके
एक पल के लिए
तो हर कोई रुकता है,
और गर ठोकर
भी लग जाए इनसे
ये दिल उन्हीं की ओर झुकता है
Sunday, August 19, 2007
EK ADHOORI KAVITA
मैं हूँ एक कविता जो सुनी जाने की हसरत लिये बैठी है,
एक चीज़ हूँ ठुकरायी हुई जो चुनी जाने की हसरत लिये बैठी है
हूँ एक नगमा जिसे आवाज़ की चादर ने लपेटा नही है,
एक गीत जो अब तक संगीत की शय्या पे लेटा नही है
या शायद एक एहसास जो महसूस होना चाहे है,
तलाश हूँ कुछ ऐसी जिसमे बन्द ये निगाहें है
एक उड़ान जिसे ख्वाबो की उँचायी हासिल है पर पर नही,
तेरे हाथो किया कत्ल जिसका इल्ज़ाम तेरे सर नही
एक विद्रोह मगर दबा हुआ सा,तूफ़ान एक थमा हुया सा,
साँस है मगर ज़िन्दगी कहाँ है, रगो में खून मगर जमा हुआ सा
एक कहानी जिसे अंजाम मिला पर मंज़िल नही मिली,
एक सफ़र जिसे मुकाम मिला पर मन्ज़िल नही मिली
एक धोका,एक छलावा ये जीवन मेरा
पर मेरा पल पल मरना साँचा है,
और नही कुछ हक़ीक़त मेरे होने की
दर्द में लिपटा एक हाँड़-माँस का ढ़ाँचा है
तुम चाहो तो मेरे दर्द की हदे तय कर लो,
दीवारे चार गिरा दो, सरहदे तय कर लो,
मगर इस तकलीफ़ की नही सीमा कोई
मेरी बोझिल सी आँखें अब भी देख रही है
खुद में अद्रिश्य सी गरिमा कोई
वो कहानी,वो सफ़र मंज़िल भी पायेंगे कभी,
मेरे विद्रोह के तूफ़ान सभी समाज की दीवारो से टकरायेंगे कभी,
मेरी उड़ान साक्शी बनेगी मन वाँछित उँचायी की,
सच्चे इल्ज़ाम,सच्चा इन्साफ़पैगाम लायेंगे सच्चायी की
अजनबी सा एहसास वो सबो के अन्तर्मन से परिचय बनायेगा,
नज़रें देखेंगी मकसद तलाश सार्थक हो पायेगा,
मेरे नगमे और गीत ये कल आवाज़ पायेंगे,
ठुकराये गये है जो आज, कल इकरार-ए-अन्दाज़ पायेंगे,
कितना भी विचलित हो मन
समझाना खुद को ज़रूरी है,
इसलिये मेरी कोशिश जारी है
मेरी कविता अभी अधूरी है
एक चीज़ हूँ ठुकरायी हुई जो चुनी जाने की हसरत लिये बैठी है
हूँ एक नगमा जिसे आवाज़ की चादर ने लपेटा नही है,
एक गीत जो अब तक संगीत की शय्या पे लेटा नही है
या शायद एक एहसास जो महसूस होना चाहे है,
तलाश हूँ कुछ ऐसी जिसमे बन्द ये निगाहें है
एक उड़ान जिसे ख्वाबो की उँचायी हासिल है पर पर नही,
तेरे हाथो किया कत्ल जिसका इल्ज़ाम तेरे सर नही
एक विद्रोह मगर दबा हुआ सा,तूफ़ान एक थमा हुया सा,
साँस है मगर ज़िन्दगी कहाँ है, रगो में खून मगर जमा हुआ सा
एक कहानी जिसे अंजाम मिला पर मंज़िल नही मिली,
एक सफ़र जिसे मुकाम मिला पर मन्ज़िल नही मिली
एक धोका,एक छलावा ये जीवन मेरा
पर मेरा पल पल मरना साँचा है,
और नही कुछ हक़ीक़त मेरे होने की
दर्द में लिपटा एक हाँड़-माँस का ढ़ाँचा है
तुम चाहो तो मेरे दर्द की हदे तय कर लो,
दीवारे चार गिरा दो, सरहदे तय कर लो,
मगर इस तकलीफ़ की नही सीमा कोई
मेरी बोझिल सी आँखें अब भी देख रही है
खुद में अद्रिश्य सी गरिमा कोई
वो कहानी,वो सफ़र मंज़िल भी पायेंगे कभी,
मेरे विद्रोह के तूफ़ान सभी समाज की दीवारो से टकरायेंगे कभी,
मेरी उड़ान साक्शी बनेगी मन वाँछित उँचायी की,
सच्चे इल्ज़ाम,सच्चा इन्साफ़पैगाम लायेंगे सच्चायी की
अजनबी सा एहसास वो सबो के अन्तर्मन से परिचय बनायेगा,
नज़रें देखेंगी मकसद तलाश सार्थक हो पायेगा,
मेरे नगमे और गीत ये कल आवाज़ पायेंगे,
ठुकराये गये है जो आज, कल इकरार-ए-अन्दाज़ पायेंगे,
कितना भी विचलित हो मन
समझाना खुद को ज़रूरी है,
इसलिये मेरी कोशिश जारी है
मेरी कविता अभी अधूरी है
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