मैं पहले लिखने की कोशिश नही करता था,पर लिखता बहुत था। अब कोशिश बहुत करता हूँ,पर लिखता कम हूँ। पहले दिल से लिखता था,अब दिमाग से। कभी जन्नत की उम्मीद मे लिखते थे,अब जनता की उम्मीद मे लिखते है। यही बेहतर है,जन्नत तो बस अहसासों मे मिला करती थी,जनता गाहे बगाहे हकीकत मे भी मिल जाती है। पहले विचार होते थे,शब्द तलाशा करते थे,अब तो बिन विचार के ही शब्द उभरते है। अब मेरा मन जानता है,की ये जो जनता है,उसको क्या जमता है।
सचमुच जब पुरानी डायरी उठाता हूँ तो अपना लिखा सब कुछ कितना बचकाना लगता है,और ईमानदार भी। और अब सब कितना अच्छा है,और समझदारी भरा। वास्तविकता ये है की लेखन की ऐकौनौमिक्स समझ आने लगी है। मार्केटिंग के नाते "जनता ऐनालीसिस" बहुत ज़रूरी है। अब अपना टार्गेट सेक्शन निर्धारित रहता है, कहाँ पर क्या क्लिक करेगा इसकी समझ हो गयी है। और इसी प्रकार लेखन की ऐकौनौमिक्स की समझ रखने वाले कयी लोगो को पढकर अपनी समझ और भी विस्तृत हुई है।
लोग कहते है मैं अब बेहतर लिखता हूँ,एक परिपक्वता आ गयी है। सचमुच ऐसा रूप,ऐसा शृंगार इससे पहले कभी ना था। बस संशय इस बात का है कि आत्मा अब उतनी खूबसूरत नही शायद,कविता जितनी अलंकृत हो जाए,आत्मिक सौंदर्य का मुकाबला नही। हाँ उसको फ़िर पहचान पाने और सराहने वाले लोग कम ही होंगे। बस इस रूप के साथ वो आत्मा की सादगी मिल जाए एक बार इस कवि को.... इसलिये कोशिश मेरी जारी है,मेरी कविता अभी अधूरी है ...
7 comments:
समझदारी के साथ साथ जीवन का नेसर्गिक प्रवाह जरुरी है और इसके उलट भी... आपके ब्लॉग में आना और पढना अच्छा लगा.
Very wel said...straight from t heart
To not disturb the soul of writing while finishing something started long back is very difficult....tat to delve urself into the same thoughts n same feelings is nigh impossible....
paripakvata ke chakkar mein "economics" ko rat lena nasamajhdaari hai...
Jo naa samajh aaye usse pasand karna duniyadaari hai..
Isiliye toh ab Saari kavitaon ki bhasha bahut bhaari hai...
Maine har jagah dhunda par aatma se swachcha kavita ki khoj ab bhi jaari hai...
Viraj....nice to have u here re...tera comment padhe to laga koi bahut badi blogging hasti ne likha hai,great words dere :)
Nice One!
मैं शुरू से मानता आया हूँ कि तुम एक स्वाभाविक रूप से कवि हो, कोई बने बनाए नहीं.. दिल से अब भी लिखो, अब शब्द तुम्हारे पास हैं तो शब्दों का मायाजाल खुद ही बन जाएगा.. मैंने किसी से सुना था, "दिल से कही बात सीधा दिल तक जाती है और दिमाग से कही बात दिमाग से नीचे उतर दिल तक नहीं जाती".. :)
well put :)
I LIKE TO READE YOUR BLOG EVERY TIME.PLEASE CONTINUE..
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