शाम जब यूँ ही तेरी याद आई,
निगाहों में छितिज की तस्वीर लहरायी,
एक नामुमकिन मिलन का आवलोकन
हर घड़ी,हर पल ये निगाहें करती है,
उम्मीद का लिबास पहने,विश्वास की चादर ओढ़े
एक छवि कैसे हौले से ह्रिदय में उतरती है,
हाय रे मानव
अपनी बेबसी पे बहानों का आवरण चढ़ाये जाता है,
झूठी नज़र,फ़रेबी नज़रिये का सहारा लिये
ज़मीं आसमाँ को मिलाये जाता है,
तुझे अपने साथ देख इसी कदर
मैं भी तो फ़ायदे उठाता हूँ
इन नेत्रों की असीमित छमताओं का,
मगर इस नादानी में बोध नही होता
जीवन के क्रूर,कठोर विशमताओ का,
मगर इस नामुमकिन द्रश्य को
अपनी ज़िन्दगी का ख्वाब माना है मैने,
जीवन के हर अधूरे सवाल को एक
मुकम्मल जवाब माना है मैने,
आज अकस्मात् ये गुमाँ हो रहा है
वो असंभव मन्ज़िल भी मिलेगी
किसी न किसी रोज़ में,
जैसे मुझको यकीं हो गया हो
आस्माँ को पाने वाला पहला इन्साँ
दरसल निकला था छितिज कि खोज में
(sorry for not being able to use the correct spelling of kshitij,but its due to limited technical awareness rather than the awareness of the lanuage)
11 comments:
yaaar kafi hiii fundu poetry hai
iski jitni tariff karu kum hai
agggehhh aur kya kahun
mere me dum bahut kum hai
हेल्लो सजल.. तुम्हारे भीतर सचमुच में बहुत ही अधिक प्रतिभा है.. और तुम इसका सही प्रयोग भी कर रहे हो..
बस इतना ही कहूंगा :
सदा यूं ही प्रगति की राह में बढते रहो..
एक दिन दुनिया तुम्हें सलाम करेगी...
ये दूसरी चिट्ठी में तुम्हारे हिज्जे को सुधार रहा हूं, इसे अन्यथा ना लेना.. और उसे सही करके अपने चिट्ठे से हटा लेना.. :)
अवलोकन,
हृदय,
आसमां,
विशमताओं,
दॄश्य,
अकस्मात,
गुमां,
आस्मां,
इन्सां,
दरअसल
thanks bhaiyaa.....avalokan ke maamle mein to hum confuse ho rahe they...barso pehle hindi padi hai...ab to jank sa laga gayaa hai.....khair thanks a lot.....main khyaal rakhoonga
apane bhai ka ek request maan lo.. mera second comment hai, use delete kar do..
main nahi chahta hun ki sabhi log ise padhen.. vo bas tumhare liye tha.. :)
naa ji its ok....rehne dijiye,actually main apne blog ko bahut formal nahi bannana chaahtaa....aise bhi comments zara kam hai:)
चलो जैसा तुम सही समझो... :)
Hi Sajal Ji
bahut achchi rachna hai.. :)
thnanks vandanaa.........
beginning and end ki lines bahut hi achchi hain...beech me achanak mujhe lagi ki kuchh kehte kehte jaise alag hi mod de diya ho thots ko....
lekin last two lines bahut hi achchi lagin..really thoughtful!!
well comment ke liye thanks...vaise aapko kisi din gtalk pe pakadke achhe se ye poem explain karta hoon...tab aap samajh jaoge ki mere vichaar kahin bhatke nahi they
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