बीता एक और दिन,
बीती एक और शाम,
और,कुछ और नाम,
जुड़े ज़िंदगी से मेरे,
हज़ार जतन के बाद,
कुछ को मना लिया,
कुछ रूठे बिन बात,
मेरे सामने खड़ी है,
देखो,एक और रात,
हर दिन,शाम,और रात
की तरह,बीत जाने को,
सोने जा रहा हूँ मैं,
अपने भीतर,फ़िर एक,
सुबह को जगाने को ...
15 comments:
वाह जिन्दगी को इस दृष्टिकोण से तो देखा ही नहीं था..बहुत खूब....
सोने जा रहा हूँ मैं,
अपने भीतर,फ़िर एक,
सुबह को जगाने को ...
बहुत खुब एक नयी आशा भरी कविता.अति सुंदर.
धन्यवाद
गजब भाई!!
nice...very nice...simple but bful poem..
yahi jagriti hai......bahut badhiya.
wah bahut khoobsoorat
सोने जा रहा हूँ मैं,
अपने भीतर,फ़िर एक,
सुबह को जगाने को . isi ka naam jindgi yahi saccha ras hai jindgi ka
aap sab logo ka in shabdo ke liye tahe dil se shukriyaa
बहुत खूब!
आपकी सुन्दर कविता ने मेरा मन जीत लिया
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विज्ञान । HASH OUT SCIENCE
ruthna manana to chalta rahta hai ..par ashvaadi hona sabse badi baat hai ..
saral shabdon main badi baat kah gaye !
सोने जा रहा हूँ मैं,
अपने भीतर,
फ़िर एक,
सुबह को जगाने को ...
इन पंक्तियों का जवाब नहीं...
रचना बहुत अच्छी लगी....बहुत बहुत बधाई....
बहुत प्यारी कविता. जिन्दगी का नया दृष्टिकोण
thank u everyone...
शशक्त अभिव्यक्ति .......... गहरी रचना है ....... कमाल का लिखते हैं आप ..... लाजवाब
Subah sayad jag bhi jayegi jane ye shaam na jane fir kab ayegi :)
b/w poem : simply beautiful :)
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