दिन बोला,मेरे बिन तू,
अब तक कैसे रह पाया,
मेरे बीत जाने के बाद,
वक्त तूने कैसे बिताया ।
मैने ही तेरा हाथ पकड़,
उसके हाथों मे दे डाला था,
मेरा दिया दीवानापन था तूने,
दिल का अरमान निकाला था, अचानक जो मैं पीछे छूट गया,
भला खुद को कैसे संभाला था।
गुमसुम सा ताक रहा था,
बीते दिन की परछाई को,
अपनी तड़प,मजबूरी सारी,
बता गया उस सौदाई को,
एक मोड़ पे तू पीछे छूटा, अगली गली पे वो आई थी,
तू तो बीत गया लेकिन,
तेरी याद दिल मे समाई थी, गुज़रा वक्त गुज़रता नही,
अपनी खूश्बू दे जाता है,
अपने पीछे तन्हाई को,
गुमसुम सा ताक रहा था,
बीते दिन की परछाई को...
24 comments:
बहुत सुंदर सजल.
बहुत सुंदर..
shukriya...mere blog par aapka svaagat hai
@ all,
kuchh kaarano se lines thik se arranged nahi hai post me...iske liye maafi chahoonga...
गुमसुम सा ताक रहा था,
बीते दिन की परछाई को,
अपनी तड़प,मजबूरी सारी,
बता गया उस सौदाई को,
एक मोड़ पे तू पीछे छूटा, अगली गली पे वो आई थी,
तू तो बीत गया लेकिन,
तेरी याद दिल मे समाई थी, गुज़रा वक्त गुज़रता नही,
अपनी खूश्बू दे जाता है,
अपने पीछे तन्हाई को,
गुमसुम सा ताक रहा था,
बीते दिन की परछाई को...
बहुत सुंदर रचना...दर्द से भरी
लेखनी में धार है -लिखते रहिये.
अपनी खूश्बू दे जाता है,
अपने पीछे तन्हाई को,
गुमसुम सा ताक रहा था,
बीते दिन की परछाई को...
वाह बहुत सुंदर
धन्यवाद
बिते दिन की परछाई --
बहुत खूब अच्छी रचना
bahut badhiya...kaphi achchha laga aakar...aapko bhi thanks for visit on my blog....
Thanks friends...
बहुत ही बढ़िया रचना है
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तख़लीक़-ए-नज़र
अपनी खूश्बू दे जाता है,
अपने पीछे तन्हाई को,
गुमसुम सा ताक रहा था,
बीते दिन की परछाई को...
सुन्दर लिखा है sajal जी............ अच्छा लगा पढ़ कर
किसी बात को कहने का ढंग कोई आपसे सीखे।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
बहुत ही बढ़िया रचना....धन्यवाद..
अपनी तड़प,मजबूरी सारी,
बता गया उस सौदाई को,
बहुत ही बेहतरीन रचना बधाई ।
सुन्दर.
अपनी खूश्बू दे जाता है,
अपने पीछे तन्हाई को,
गुमसुम सा ताक रहा था,
बीते दिन की परछाई को...
सजल तुम्हारे नाम की तरह सुन्दर भावमय अभिव्यक्ति है आशीर्वाद्
Shukriya aap sab kaa...Nirmala Ji aapka ashirvaad paake main dhany huaa
a loveable poem...........
WOWWW !!
Umda likha hai !! kabhi kabhi kuch pal ke katre jam jaate hain, shayad hum khud hi nahi chahte ki woh pal kabhi guzre..
Jaane kya soch kar nahi guzra ! kabhi kabhi hum shayad chahte hi nahi ki kuch pal guzre..hum usi mein kahin na kahin jame rehna chahte hain...
thank you everyone...
WOWWW !!! :)
Beautiful :)
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