"एक तेरा नाम ही मुकम्मल है,इससे बेहतर नज़्म क्या होगी"
गुलज़ार जी की ये पंक्ति ज़बा पे ज़रा चढ़ गई थी,
और अपनी पोएटिक सुई उस रोज़ जैसे इसी शेर पे अढ़ गई थी,
और चढ़ गई चढ़ गई नशीली सी गलतफ़हमी जिसे उसी रात उतरना था,
और एक मुकम्मल हकीकत को एक झूठ के हाथों मरना था...
ऐसा नही की तेरा नाम लेके जी रहा था मैं
पर कभी तेरे नाम पे दिल तो धड़का था,
तेरी पहचान,मेरा अस्तित्व अलग अलग सही
इनको जोड़ने का कभी सपना तो देखा था,
किसी रोज़ नींद से उठकर सबसे पहले
यही नाम लिया होगा मैने,
कभी हँसी पे छलक आया होगा ये नाम
तो कभी आँसुओं में इसको पिया होगा मैने,
जिस नाम को ऐसा मान दिया,सम्मान दिया
मेरी उम्मीद उसके हाथो आज अपनी आबरू लुटाये बैठी है,
मेरी चाहत खुद से ही शर्मिंदा होकर
अंधेरे की जोत जलाये बैठी है
ज़माने भर से मुँह छिपाये बैठी है...
कैसे दिलाऊँ यकीं खुद को
कि नाम ही तेरा झूठा था,
मेरी दुनिया तुम्हारी थी
जो चाहत थी वो ले जाती
पर ये दर्द कैसे सहा जाये
एक झूठे पहचान से मुझको लूटा था...
मेरी हर कविता मुझसे बेहतर याद थी तुमको
जैसे मुझसे जुड़ी हर बात तुम्हारी चेतना का हिस्सा हो,
चाहे वो मेरी एक अधूरी कविता थी
या अपूर्ण सा कोई किस्सा हो,
और उस कविता का क्या जो तुमने
किसी खास के लिये लिखा था,
आज नज़र सवाल कर रही है
वो इस प्यासे सजल के लिये थी
या किसी प्यास के लिये लिखा था...
पर मैं तुमसे नफ़रत नही कर सकता
क्योंकि शायद कभी सच्ची मोहब्बत की ही नही,
मेरी तकदीर ने मेरी बेवफ़ाई को ही लौटाया है शायद
बस गुमनामी का एक नकाब पहना दिया है,
उसने कभी खन्ज़र घोंपा,कभी तलवार चलाया,
मैं बेबस..कभी शक्ल ना देखी,
तो कभी नाम ना जान पाया,
इस प्यार की नाकामी ही अपनी सबसे बड़ी सज़ा है,
और इस हार को एक नाम भी ना दे पाऊँ
शायद इसीलिये ऐसा हुआ है.....
और आज गुलज़ार जी के ये पंक्ति सार्थक लग रही है...
"प्यार को प्यार ही रहने दो कोई नाम नाम ना दो"....
after a long long wait,I finally have managed to come up with a Hindi post(almost)...the break has been considerably long,and I guess I didnt write as well as I would have wanted to...also I would like to mention that this is a pure work of fiction and so dont pester me with questions about why such a sad poem.. :P
awaiting your feedbacks...and hoping...there are plenty more to come!!
10 comments:
मैं ये नहीं पुछूंगा कि ऐसी उदास कविता क्यों.. मैं तो ये पुछूंगा कि ये उदास कविता किसके लिये? :)
वैसे कविता बढ़िया थी, कुछ नयापन लिये हुये..
Very well written Sajal :)
Reminds me of someone whom I knew for long ;)
And the last line of your post says it all... Pyaar ko pyaar hi rehne do koi naam na do :) ... what cud be truer !!!
Keep writing :)
jhuth mat bolo...its not a work of fiction purely,i know! well done...
@ Bhaiya..apne liye hai kavita :)
shukriya hausla badhaane ke liye...koshish jaari hai
@ Kiran Ji..thanks..I wonder how you keep getting reminded of people on diff occasions..pehle bhi notice kiya tha maine :P
@ Kavya.. :P
it actually is a work of pure fiction..kuch know nahi karte aap :)
Kaafi dard mahsoos kar likha hai lagta hai ;)
mahsoos karke to nahi exactly...par samajh boojhke shaayad
मेरी हर कविता मुझसे बेहतर याद थी तुमको
जैसे मुझसे जुड़ी हर बात तुम्हारी चेतना का हिस्सा हो,
चाहे वो मेरी एक अधूरी कविता थी
या अपूर्ण सा कोई किस्सा हो,
It’s a deep feeling. I don’t know how you put all the specified word in each and every sentence... I must say you… Sajal you rocks :)
thanks Khushi..
bahut hi kamaal de ehsaas,shabad kafi vadiya tareke naal sanjoye gaye ne.aapne apne ehsaasa nu bade suchaje dhang naal kalambandh kita hai.....khoooob tarkki karo rabb rakha g....
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