"एज़ यू विश"
"कहाँ जा रहे हो आप लोग?"
"बोकारो...और तुम?? "
"राँची...नही मुगलसराय,बनारस के पास है..राँची के हम रहने वाले है"
रात के करीबन दस बज रहे थे.ट्रेन छूटे कोई एक घंटा हुआ होगा.आमने सामने खिड़की वाली सीट पर बैठे दो लोगो के बीच ये पहली बातचीत थी...एक शुरुवात थी...
"प्रथम,मेरा नाम...इंजीनियरिंग का पहला साल खत्म हुआ है...और आप??"
"नंदिनी,मैं तो क्लास टेन में हू,वैसे मुझे....जाने दो तुमको अजीब लगेगा"
"नही.. बोलिये ना"
"पहले तो ये आप बोलना बंद करो,अजीब नही लग रहा तुमको?"
"क्यों,आप छोटे हो इसलिये.हमको तो आदत है,आपको अजीब लग रहा होगा...और मेरा हम-हम करके बात करना भी"
"सच कहूँ तो मुझे खुद ऐसे ही बात करने की आदत थी.हम लोग पाँच साल पहले ही दिल्ली आये.बचपन बिहार में बीता,और आज भी बिहारी लोग,और बिहारी बोली,दोनो ज़्यादा अच्छे लगते है"
"चलिये अच्छा है...भई हम तो पक्के बिहारी है,बनने को तो झारखंड बन गया पर दिल तो बिहार का है.हमको भी दिल्ली,कलकत्ता जैसे शहर बिल्कुल पसंद नही.इतना भागता दौड़ता जीवन मेरे टाईप का नही"
फ़िर इसी तरह दोनो के 'टाईप' पे कुछ देर बातें हुयी.नंदिनि के अलावा उसके साथ उसकी मा थी,जो बाकियो कि तरह् नींद में लीन थी....और प्रथम...
नंदिनी- "तुम लोग दिल्ली घूमने आये थे?"
प्रथम- "लोग?..हम अकेले आये है"
"नही तुम उस आंटी से जैसे बात कर रहे थे मुझे लगा तुम लोग साथ हो.परिचय कब हुआ तुम्हारा?"
"उनसे..कभी नही,बस बात करने लगे.ट्रेन मे तो ऐसे ही है हम,सबसे बतियाते चलते है"
दोनो बतियाते चले,प्रथम को सुबह उतरना था,इसलिये वो रात भर जगने वाला था.बोकारो बहुत बाद में था,मगर नंदिनी ने उसे कह दिया कि वो रात भर उसे जगाये रखेगी..और बतियाते चलेगी...
नंदिनी:"साईंस और साईंस वालो से मुझे बहुत डर लगता है,बहुत पढ़ाकू होते है वो लोग"
प्रथमः "हमारी तो पढ़ाई छूट ही गयी.तुम्हरी उम्र में शायद सचमुच पढ़ाकू थे.पर अब सारी लाईफ़ की फ़िलौसोफ़ी बदल गयी है.लगता है जैसे पैसे का कोई मोल नही...संतुष्टि तो एक एहसास है..अमीर गरीब कोई भी दिल में पैदा कर सकता है...(बाहर झाकते हुये)कौन सा स्टेशन आया?"
"बोलने की बात है ये बस.स्टेशन पे सोये इन लोगो को देखो.दो टाईम का खाना मुश्किल से मिलता है इन्हे.सर पे छत नही है,तुमको लगता है ये लोग खुश हो सकते है."
"ऊपर अंबर,नीचे ज़मीं है,इतना बड़ा घर कोई नही है...मुझे तो ये लगता है इनके बारे में.तुम इसे बेकार का फ़लसफ़ा कहके झुठला सकती हो पर हम तो यही मानते है,खुशी बस खुश रहने से मिलती है,और कुछ नही चाहिये "
"मैं तुम्हारे जैसे इंसान से ज़िंदगी में पहले कभी नही मिली,पागल हो तुम.तुम्हारे बात,तुम्हारी सोच,यहा तक की दिल्ली आने कि तुम्हारी वजह.खुशी और उगर्वाद पर ये फ़ंडे...जो भी हो, अच्छा बहुत लग रहा है तुमसे बात करके."
(प्रथम...मुस्कुराते हुये)
"शुक्रिया..वजह का तो ठीक है,खुशी का फ़ंडा भी..उगर्वाद वाली बात में क्या अजीब लगा?"
"अच्छा,कोई हमे आके गोलियाँ मारता है,तबाही मचाता है...पूरे देश में गुस्सा है,कहीं डर है...और तुम कहते हो कि हुमे उनको समझने की कोशिश करनी चाहिये जिन्होने ऐसा किया"
"मेरा तो यही मानना है.खालिद हुसैनी को पढ़ोगी तो मालूम होगा अफ़गान का इतिहास,जिसके कारण आज मार-काट वहाँ का कल्चर बन गया है..और पाकिस्तान..वो हमको क्या मारेगा,हमसे लढ़ने में और हथियार बनाने मे तो वो देश खुद बर्बाद हो गया.हम सालो पुराना इतिहास नही बदल सकते,उससे पैदा हुये हालात...सिचुएशन, नही बदल सकते,इसलिये आसान रास्ता निकालते है.इस्लाम को आतंकवाद से जोड़ दो और दुनिया को जंग का मैदान बना दो.तुमको मेरी ये सोच अजीब लगती है और मुझे........"
रात के दो बज रहे थे..कुछ घंटो में एक दूसरे को वो दोनो बहुत समझ गये,वो भी एक दूसरे से बहुत अलग होकर...सबसे साधारण से लेकर सबसे खास बातों पर बातें हुई...
"याद रखोगी न हमको...बाद में"
"मेल-आईडी दी है ना,याद दिला देना"
"पता नही पर मेरी गट फ़ीलींग कहती है की वी विल लूज़ कौन्टैक्ट..वजह तो कुछ भी हो सकती है..ज़िंदगी ऐसी ही है...वैसे मैं तुमको नही भूलूँगा,पक्का"
"अच्छा अगर मैं भूल गयी तो क्या करोगे..मत बोलना और्कुट में सर्च करोगे,मैं उसे जौईन नही करूँगी"
"मेरा जवाब वही होता ...अच्छा उसके अलावा...कुछ नही..और क्या कर सकते है...याद कर लेंगे बस"
"बस?"
"अच्छा चलो तुमपे ब्लौग लिख देंगे,एक पोस्ट तुम्हारे नाम....वैसे उम्मीद करेंगे ऐसा पोस्ट ना लिखना पड़े कभी"
और दोनो मुस्कुराने लगे...गाड़ी चलती गयी....रात चढ़ती गयी......
32 comments:
दो अजनबी लेकिन अजनबी जेसे नही, बहुत अच्छा लगा, कही एक तुम ही तो नही हॊ???
धन्यवाद
आपको तथा आपके पुरे परिवार को नव्रर्ष की मंगलकामनाएँ...साल के आखिरी ग़ज़ल पे आपकी दाद चाहूँगा .....
अर्श
नव वर्ष की आप और आपके समस्त परिवार को शुभकामनाएं....
नीरज
I think I know this story......... you said about this once.......yeah but it is changed I hope :)
nice ending of the post like it
नववर्ष की शुभकामनाएँ
बहुत शानदार लिखे हो.. कल मैं लिख नहीं पाया.. थोड़ा व्यस्त हो गया था..
नव वर्ष कि हार्दिक शुभकामनायें.. :)
कुछ रहे वही दर्द के काफिले साथ
कुछ रहा आप सब का स्नेह भरा साथ
पलकें झपकीं तो देखा...
बिछड़ गया था इक और बरस का साथ...
नव वर्ष की शुभ कामनाएं..
नववर्ष की शुभकामनायें आप सबको..
@ Raj Ji...vaise to main is baat ko parde mein rakhna chahta tha,par mere ek dost ne ispar thodi roshni daal di hai
this post is vaguely inspired from a personal experince...but kaafi modifications hai..Ashish ko bhi jawaab mil gaya hoga :)
Prashant Bhaiya...shukriya...
नव वर्ष की आप और आपके परिवार को हार्दिक शुभकामनाएं !!!
"वैसे उम्मीद करेंगे ऐसा पोस्ट ना लिखना पड़े कभी ....." .......
says it all :)
a sweet and touchy one indeed :)
bahut badhiya lagi aapki yeh kahani.
discussions between the two interesting ppl here was quite lively.
liked the two characters u chose for ur story.
kudos to the emerging storyteller from the land of ranchi!!!
Vivek Ji...naye saal ki mubarakbaad...aap yahaan aaye bahut achha laga :)
Nivedita aur Sonal ka shukriya mera hausla badhane ke liye...thanks friends :)
nav varsh ki hardik shubhkamnaye.
Behtareen Kahani...Aapbeeti zyada lagi..Likhte Rahiye Sajal Sahab :)
safar adhoora reh gaya....!!!!!!!....
humsafar humsafar na raha...!!!!!....
safar to bahana tha..!!!!!...........
humsafar ka saath nibhana tha!!......
par ab to safar hi na raha..!!!!.....
humare paas koi bahana na raha !..!!1
soch raha hu koi aur bahana...!!!!!!!
e- humsafar hume bhool na jana. :)..
phir milenge......
very nice..keep it up.
aap sabka shukriyaa :)
pahli bar aapke blog par aya. aapko padhkar mahsoos hua kimai bahut kuch kho deta agar nahi aata . aapne apne sansmaran ko bahut hi badhya tareeke se kalambaddh kiya hai.
haan, ye Sajal hai to phir pyasa kyo hai/
------------------------"VISHAL"
माफ़ कीजिये, टिपियाने में विलंब हुआ| हम तो यही कहेंगे की हमारी ऐसी किस्मत कहाँ की किसी से इतनी हंसी मुलाकात हो|
एक नज्म याद आ रही है,,,,करोगे याद तो हर बात याद आएगी....
लिखा अच्छा है आपने, लिखते रहिये|
Shashwat Ji..aapne samay nikaala mere liye wohi badi baat hai :)
Vishal ji..ummeed hai aap padhte rahenge blog...asal mein vidambana yehi to hai ki sajal hote huye bhi pyaasa hai... :)
bahut kuchh achha laga thora bahut bhvuk ho gaye boss fir bhi achhi shuruaat hai??atishay bhavukta kisi bhi kahanikar ko uske charector se nyay nahi karne deti??
chaliye ummid karte hai aage achhi rachnayen milti rahengi??
train ki kuch aisi hi mulakatein yaad aa gayi.aisa hota hai, khas taur se apne bihar taraf to khoob.ham ek baar patna se bangalore aa rahe the, waqt kuch aisa hi kata tha, samne wali seat par ke ladke se baatein karte huye aur fir...kuch nahin...dhooondha thode jaa sakta hai. khoobsoorati se likha hai aapne.
quite touchy and lively description....... I really loved reading it .....!!
aap sabka shukriyaa...aage bhi koshish jaari rahegi :)
aajkal likhna to kaafi ho raha hai,par blogging se thoda door hoon
engrossing..really it is...
i dont know d orignal story but cud make out dat modifications hue hain... d way u have connected things is really beautiful...no repetition... nice flow.......
aur "वैसे उम्मीद करेंगे ऐसा पोस्ट ना लिखना पड़े कभी ....." shayad ant iss se behtar ho hi nahin sakta....just too gud....
The best way to represent a story…I really can't express what I'm feeling now.
but I have to...END of this amazing, great, brilliant, awesome story .I can only sympathize them, because I KNOW how hard it is, when a part of you is gone forever.
thanks both of you...am glad people liked the simplicity of the story
this is the only reasons why simplicity rules :)
such a cute post! i hope you guys keep in touch with each other!!! :)
p.s. i was just going from blog to blog (more like from a person's blog to another person) and then i saw the hindi fonts and i was like whoa! lemme check it out, and then i saw the jab we met thing, and it was such a fresh feeling to read such a nice post!...
another very special post of my blog...great to have all this encouragement :)
Post a Comment