कैसी थी वो पत्थरदिली की मुझे
ठुकराने की बात तू कबूल गयी,
मैने तुझे मुखड़े की तरह याद रखा
तू मुझे किसी अंतरे की तरह भूल गयी।
जो दूर जा जाके भी मुझ तक वापस आता रहा,
बेदिलि के जाने ऐसे कौन से झूले पे तू झूल गयी।
चाहत मुझे उधार में भी नही दी तुमने,
और वफ़ा की दौलत मुझसे वसूल गयी।
गलत था मेरा छोटी से छोटी चीज़ को याद रखना,
या भूल था कि तू बड़ी से बड़ी बात भूल गयी।
4 comments:
आप की रचना प्रशंसा के योग्य है . लिखते रहिये
चिटठा जगत मैं आप का स्वागत है
गार्गी
www.abhivyakti.tk
अच्छा लिखा है आपने
भाई बहुत अच्छा लिखते हो ...........
Meri Kalam - Meri Abhivyakti
aap sabo ka shukriyaa...
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