तकलीफ़ इस दिल में जब और उभर गयी,
अपनी शायरी उस रोज़ कुछ और निखर गयी।
उनकी मजबूरी को देखो मिलन का नाम देते है लोग,
कभी किनारा नदी में समाया,कभी नदी किनारे पे उतर गयी।
हवा यूँ कानों के पास से गुज़री,मानो पूछा हो हाल मेरा,
जाने क्या था सवाल जिसको सुन मेरी तबीयत ही डर गयी।
तुझको बता ना सका,वो हाल-ए-दिल तन्हाई को सुनाया मैने,
हुआ ये माहौल,मेरी हर महफ़िल मे मेरी तन्हाई घर कर गयी।
फ़िर शाम ढ़लने तक तेरी नज़र को सुनता रहा मैं,
और फ़िर तेरी आवाज़ मेरे दिल को छूके गुज़र गयी
कभी चांद को नये मतलब,मायने,नाम देता चला गया,
तो कभी चांदनी टूटकर मेरी हर शायरी पे बिखर गयी।
एक एक ख्वाईश जब बेआबरू हो आँखों से टपक पड़ी,
मेरी कलम शब्दो के अदृश्य दायरे में उसको कैद कर गयी।
दर्द का वो आलम जब जज़्बात अपाहिज से लगने लगे,
क्यों मजबूर रहूँ,कि,मेरी चाहत कल्पना के उड़ान भर गयी।
ज़माना मुझसे बोला,देख आज तेरी उम्र बढ़ गयी,
मैने सोचा ज़िंदगी शिकायतों में एक इज़ाफ़ा और कर गयी।
14 comments:
rachna achhi hai. lage rahe bandhu... desh aage badhega aur aap v....
फ़िर शाम ढ़लने तक तेरी नज़र को सुनता रहा मैं,
और फ़िर तेरी आवाज़ मेरे दिल को छूके गुज़र गयी
achchi rachna ke liye badhai. nazar ko sunna,aur awaaz ko chhoona achcha laga.
mere blog par padharne, comment karne ke liye dhanyawaad, punah padharen.
u writings carry an aura of poetry...thanks for your motivating comment but i m still novice at poetry.
Subhash Ji aur Swapn ji..aap logo ka swagat hai mere blog pe...isi tarah mera hausla badhaate rahe :)
Quietude...thanks for those encouraging words
Sajal,
Aapkee harek kavitakee pakti, alagse ullekh maangatee hai..sirf kavita/rachnaa nahee...
Kin,kin panktiyonka ullekh karun?
haan..har roz jeevanme kuchh naa kuchh izafaa hota hai, aur phir ham sab dheere, dheere ek rikttaaki or badhte jaate hain...
Apnee talashme door nikal jaate hain...kabhi koyi khudko talash paya hai? Hai to phir usne rutko jaana aur wo rushee hua...ek shatragya. Rutke niyamonko samajhnewala...
Mere blogpe aaneke liye tahe dilse dhanyawad.
Shama Ji..aap yahaan aayi bahut achha laga...tareef ke liye shukriyaa...aise hi maargdarshan karte rahe :)
मुझे आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा! आपने बहुत ही सुंदर रचना लिखा है! मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है!
कौन सी बात पर अकड़ गयी
बीच रस्ते में ही उम्र अड़ गयी
जिन्दगी लुढ़कती है गोया कि
जाने इसे कितनी चढ़ गयी !!
जब कहा कि अब मरना है
जिन्दगी मुझसे ही लड़ गयी !!
जीते-जीते ऐसा हो गया कि
जीने की आदत ही पड़ गयी !!
शान से जीना चाहता था मैं
हयात ही मेरे पर क़तर गयी
जब से पैदा हुआ हूँ गाफिल
लगता है तकलीफ बढ़ गयी !!
आप मेरे ब्लॉग पर आए और एक उत्साहवर्द्धक कमेन्ट दिया, शुक्रिया.
आज मुझे आप का ब्लॉग देखने का सुअवसर मिला। वाकई आपने बहुत अच्छा लिखा है। आप की रचनाएँ, स्टाइल अन्य सबसे थोड़ा हट के है... आशा है आपकी कलम इसी तरह चलती रहेगी और हमें अच्छी -अच्छी रचनाएं पढ़ने को मिलेंगे. बधाई स्वीकारें।
आप के अमूल्य सुझावों और टिप्पणियों का 'मेरी पत्रिका' में स्वागत है...
Link : www.meripatrika.co.cc
…Ravi Srivastava
'तकलीफ़ इस दिल में जब और उभर गयी,
अपनी शायरी उस रोज़ कुछ और निखर गयी।'
- हर शायर की यही नियति है.
sabhi naye visitors ka mere blog par swaagat hai....aur sbke encouraging shabdo ke liye bahut bahut shukriyaa :)
Waah....... bahut achi gazal pesh ki aapne.... saare ke saare aashar umda hai..!
बेहद खूबसूरत. खास तौर से नदी और किनारे का शेर.
aap sabki kripaa hai bas :)
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