बना बिगड़ा, बिगड़ा बना,और बनता बिगड़ता रह गया,
प्यार का बुखार,तापमान की तरह उतरता चढता रह गया।
मुनासिब ना था मोहब्बत की जंग हार जाना,
इसलिये हार जाने के बाद भी मैं लड़ता रह गया।
मज़ा देखो की बस उसकी नज़र में गिरता चला गया,
वरना ज़िंदगी के बाकी हर पहलू में तो चढ़ता रह रह गया।
मेरी चाहत की शमा को तेरी एक फ़ूँक ने बुझाया था,
और मैं नादान था जो हवा से झगड़ता रह गया।
अपनी ही नासमझी में देखो अपनी जान गँवायी मैने,
उनको इलाज की अदा ना आयी,और मैं बीमार पड़ता रह गया।
2 comments:
well written. chalo ab to is jhamele se bahar nikal aao
:P
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