Tuesday, May 5, 2009

थोड़ा और शायराना हो जाये :)

दायरे खुद अपनी हदें तय करते है,
वर्ना सीमा तो कुछ भी नही!!

सपना और कुछ नही,तेरे ना होने पे भी तेरा होना है,
और ये सपना सपना है सच नही,बस इस बात का रोना है।

काश एक ज़िंदगी ऐसी भी मिलती,
जो गुज़र जाती बस तुमको देखते हुए!!

मज़ा क्या रहे गर मेरे प्यार को वजह मिल जाये,
मुझे तो हसरत है तेरे लिये बेवजह बर्बाद होने की : )

एक आलम ऐसा भी आयेगा,
जब दस्तखत की जगह भी तेरा नाम लिख आऊँगा ।

ऐ ज़िंदगी चार पल फ़ुर्सत के दे दे,
या वो पल दे दे जब फ़ुर्सत कि ख्वाईश नही थी ।

मेरे लिये मैं बनना ही मुश्किल था ज़िंदगी में,
तुम मुझे तुम बनने को कह रहे हो ।

2 comments:

Vinay said...

आपकी टिप्पणी का शुक्रिया

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चाँद, बादल और शामगुलाबी कोंपलें

Urmi said...

बहुत बढ़िया!