Tuesday, June 30, 2009

ज़िंदगी गुज़ारी अपनी शर्तों पे हमने ...

फ़िर एक ख्वाब को हकीकत बना लिया,
हमने आज एक और मुकाम पा लिया ।

ज़िम्मेदारियों के प्रति ये आँखें खुली भी,
और नींद मे भी एक सपना सजा लिया।

मोहब्बत तो सिर्फ़ कमज़ोर करती आई थी,
सब भुला इस मकसद से दिल लगा लिया।

जोश और जज़्बे मे तो अब कमी नही होगी,
मेरे मुकद्दर ने भी देखो ऐसा फ़ैसला लिया ।

ज़िंदगी तमाम गुज़ारी अपनी शर्तों पे हमने,
मौत को अपनी मर्ज़ी का गुलाम बना लिया।

Sunday, June 28, 2009

इश्क ने गालिब निकम्मा कर दिया,वर्ना हम भी आदमी थे काम के!!

ये विडियो मुझे भाटिया सर के ब्लौग पे मिला। एक मज़ेदार विडियो है पर शायद सिर्फ़ इसका मज़ा लेकर देख लेना भर ठीक नही,इसमे चार युवाओं के जिस बर्ताव को दिखाया गया है,वो या तो नैतिक रूप से गलत है या फ़िर गैर ज़िम्मेदार है,मूर्ख चाहे जो हो,सही तो कोई नही। दुखद बात ये है की,ऐसी घटनायें सचमुच आम है। सिगरेट और शराब की तरह कयी लड़को का भविष्य लड़कियों के हाथों भी शहीद होता है।इनमे हर मामले मे युवा अपनी बेवकूफ़ी का खामियाज़ा भुगतते है,पर तीसरे पहलू को कभी गँभीरता से नही लिया गया,जबकी नशा-मुक्ति हमारा एक खास मकसद है आज। मेरे एक मित्र का तकियाकलाम है - प्यार मे आदमी कुत्ता बन जाता है... प्यार मे तो नही,प्यार की गलतफ़हमी मे पड़के इंसान कुत्तेपन के करीब ज़रूर आ जाता है। आप लोगो को शायद लगे की मैं एक छोटी सी बात को अधिक तवज्जो दे रहा हूँ,तो अगर आप अब भी इस बात से सहमत नही हुये है कि ये बात उतनी छोटी और गैर-ज़रूरी नही है जैसी लगती है,तो आप शायद मेरी बात से सहमत कभी ना हो।और अगर आपको मेरी बात मे कोई गंभीरता,कोई तुक नज़र आता हो,तो आपके विचारों का मुझे इंतज़ार है। नोट: मेरे ये विचार काल्पनिक नही है,कयी लोगो के जीवन से इसकी समानता हो सकती है,शायद उसमे मेरा भी जीवन हो!!

Saturday, June 27, 2009

इंटर कौलेज आयोजन का नामकरण

आज अपने ब्लौगिंग साथियों से एक मदद चाहता हूँ। हमारे कौलेज,बी।आई।टी मेसरा,राँची,मे एक इंटर कौलेज ड्रामा फ़ेस्ट हो रहा है।इसमे देश के विभिन्न कौलेजों से आये छात्र अलग अलग छेत्रों मे अपनी प्रतिभा दिखायेंगे। इस आयोजन मे मुख्यत: नाटक,नुक्कड़ और लघु फ़िल्मों के बीच मुकाबला होगा।अभी तक हमने इसका नाम नही तय किया है।ऐसे मेरा सुझाया नाम "अभिव्यक्ति" सबको ठीक लगा है,पर ये तय नही है और हम अब भी एक शानदार नाम कि तलाश मे है। आप लोग अगर साहित्य के सागर से कोई ऐसा मोती चुन सके जो इस आयोजन के नामकरण मे सहायक सिद्ध हो तो मुझे बड़ी खुशी होगी। नाम कुछ ऐसा हो जिसमे नाटक,रचनात्मकता और शौर्ट फ़िल्मों की मिली जुली थीम उभर के आ सके। इसके अलावा यहाँ के सक्षम लेखक और लेखिका गण कोई और सलाह देना चाहे तो उसका स्वागत है।

Wednesday, June 24, 2009

तेरा एहसास मानो आसमाँ से बरस रहा था...

पंख फ़ड़फ़ड़ाते हुए गुज़रा तेरा नाम सामने से।
मौसम की पुकार पे गुज़र रही है शाम सामने से।।

अभी चार पल पहले ही तो मैं रिमझिम की
बस एक आवाज़ के लिये तरस रहा था,
दो पल ही गुज़रे होंगे, की ये देखता हूँ,
तेरा एहसास मानो आसमाँ से बरस रहा था,
देख सिर से पाँव तक भींगने लगे लोग सारे,
और मैं,मेरी तो आँखें तक भींग गयी थी,
शायद यही तेरी याद का वो कामयाब आँसू था,
जिसको पाके आज मैं खिलखिलाके हँस रहा था,
तेरा एहसास मानो आसमाँ से बरस रहा था...

पेड़ सारे पहले से कुछ ज़्यादा ही हरे हो गये थे,
कुछ घोंसले शायद मुझे देखकर हाथ हिला रहे थे,
आकाश मे कुछ अधबरसे बादल थे,जो बीत रहे थे,
इशारों इशारों मे मुझे भी अपने पास बुला रहे थे,
खुश और आश्वस्त सा मैं टेरेस पे टहल रहा था,
कुछ भी नही कर रहा था पर मन बहल रहा था,
एक अकेली ज़िंदगी ऐसी कितनी शामें दे जाती है,
जीवन कितना प्यारा है,सब एहसास दिला रहे थे,
कुछ घोंसले शायद मुझे देखकर हाथ हिला रहे थे...

Monday, June 22, 2009

आँखों मे जल रहा है क्यों...

आज सुबह रोशनी
जब पहली बार मेरे,
कमरे मे आई,
थोड़ा छेड़ा मुझको,
ज़रा सा मुस्कुराई,
बोली,रोज़ आती हूँ मैं,
तेरा अंधेरा फ़िर,
मेरा हो जाता है,
मुझमे खो जाता है,
मैं छू लेती हूँ तुमको,
तुम्हारे इस कमरे को,
इस कमरे मे मौजूद,
हरेक चीज़ को,
कुछ भी तो अछूता
नही मुझसे,सिवाय,
तेरी आँखों के...
छू नही सकी इनको,
आज तक,अब तलक,
दर्द की जाने कौन सी
दीवार से इनको घेरा है,
जाने क्यों आज तक,
यहाँ इतना अंधेरा है !!!

Saturday, June 20, 2009

एक सवाल ज़िंदगी से

कल शाम मोड़ पर अचानक,
मुझसे टकराया एक सवाल...

मैं सौरी बोल निकलना चाहता था,
पर जाने क्यों उसे देख ठिठक गया,
जाना पहचाना सा मालूम होता था,
मैने नमस्ते कहा,और नाम पूछा,
लेकिन वो जाने किस धुन मे था,
मेरी सुनी नही,अपनी सुनाता गया...
बोला- ये हमारी पहली मुलाकत नही,
मैं अकसर तेरे सामने खड़ा हो जाता हूँ,
तेरे जीवन-काल मे जाने कितनी बार,
तुझसे इसी तरह टकराता आया हूँ,
मैने फ़िर नाम पूछा,वो फ़िर बोला,
क्यों अजनबी हूँ आज भी तेरे लिये,
पहचान नही पाते मुझको,जब कि,
कोई दिखावा,कोई छलावा,कोई नकाब नही है,
शायद इस सवाल का ही कोई जवाब नही है,
हर जवाब सवाल के बिन अधूरा है लेकिन,
कुछ सवाल जवाबों के मोहताज नही होते,
मेरी मजबूरी है की जब तक तुम मुझको
देख हैरान परेशान होते रहोगे,मैं भी,
तुमसे ज़िंदगी मे यूँ ही टकराता रहूँगा,
बहरूपिये सा वेश धर बराबर आता रहूँगा...

मान ली उसकी बात,और कहा उससे,
हे अजनबी,अपना नाम तो बताते जाओ,
मेरा विश्वास देख उसने अपना नाम बताया,
और सच,उसके बाद नज़र ना आया,
आज तलक याद है,उसने कहा था,
मेरा नाम है- मैं कौन हूँ !!!

Thursday, June 18, 2009

बी.आई.टी की रानी - बलिदान दिवस पे विशेष

बलिदान दिवस के मौके पर एक रचना आप लोगो से बाँटना चाहूँगा। सही मायने मे ये मेरी रचना नही है,सुभद्रा कुमारी जी की कविता झाँसी की रानी की एक छोटी सी पैरोडी मैने अपने कौलेज मे आयोजित एक छोटे से हास्य कवि सम्मेलन मे सुनाई थी,वो ही पेश कर रहा हूँ। हमारे कौलेज बी.आई.टी मेसरा मे एक इन-टाईम का फ़ंडा है,ये वो समय है जब तक कौलेज कि लड़कियों को अपने हौस्टल मे प्रवेश कर जाना होता है,और इसके बाद उनके बाहर जाने पर मनाही है।लड़को के लिये ऐसी कोई रोक-टोक नही है!! सबसे हास्यप्रद बात ये है की ये इन-टाईम कभी कभी 5.30 बजे भी होता है,जो की बहुत ही ज़्यादा जल्दी है। मुझे हमेशा से ऐसा लगा है की यहाँ इस प्रथा का विरोध होना चाहिये,और इसी विचार को मैने अपने कौलेज-फ़ेस्ट मे सुनाई इस रचना मे सामने रखा था,आज आप लोगो के सामने पेश कर रहा हूँ।
ये कविता समर्पित है एक ऐसी लड़की को जो बी.आई.टी मे पढ़ती है,और इन-टाईम हटवाने के लिये लड़ती है।

कविता की पंक्तियाँ :

सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,

बूढ़े भारत में आई फिर से नयी जवानी थी,

गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,

दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी,

चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वह स्वयं वीरता की अवतार,

देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार,

नकली युद्ध-व्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार,

सैन्य घेरना, दुर्ग तोड़ना ये थे उसके प्रिय खिलवार,

महाराष्टर-कुल-देवी उसकी भी आराध्य भवानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

पैरोडी की पंक्तियाँ :

ऐडमिनिस्ट्रेशन हिल उठा,रुकी उनकी मनमानी थी,

बूढ़े बी.आई.टी मे आयी फ़िर से नयी जवानी थी,

छिनी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,

दूर इन-टाईम को करने की सबने मन मे ठानी थी,

चमक उठी सन 2k9 मे, वो तलवार पुरानी थी,

प्रोफ़ेसर और मैडम के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वो तो बी.आई.टी वाली रानी थी।

लक्ष्मी थी,या दुर्गा थी,वो स्वयं वीरता की अवतार,

देख लड़के भी पुलकित होते,उसकी बातों के वार,

प्रोजेक्ट करना,असाईनमेंट बनाना,थे उसके प्रिय शिकार,

राँची जाना,इन-टाईम तोड़ना,ये थे उसके प्रिय खिलवार,

ये इन-टाईम की प्रथा तो,उसको बस हटानी थी,

प्रोफ़ेसर और मैडम के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वो तो बी.आई.टी वाली रानी थी।

Tuesday, June 16, 2009

काश मेरा पहला प्यार होता आखिरी भी


इसे एक कविता के रूप मे देखे,इसे गज़ल ना कहा जाये,क्योंकि उस हिसाब से पूरा काफ़िया ही गलत हो जायेगा और ये गज़ल विधा का अपमान ही होगा(वैसे भी बहर मे मैं लिखता नही)। तो बताये कैसी लगी मेरी ये "कविता" :)


काश मेरा पहला प्यार होता आखिरी भी,
ज़िंदगी आसमां तक पहुँची तो गिरी भी।

कभी तो मेरे हर शब्द पे दाद थी तुम्हारी,
अब पसंद नही आती मेरी एक शायरी भी।

औरों के सवालों का जवाब मुमकिन है पर,
आज तो खुद सवालिया है ज़िंदगी मेरी भी।

मैं बस अपने अकेलेपन का साथ दे रहा हूँ,
और मेरे साथ चल रही है चंद यादें तेरी भी।

पहले तो कविता मेरी,कुछ दर्द बाँट लेती थी,
काम नही देती अब ये शब्दों की जादूगरी भी।

Monday, June 15, 2009

मैं एक बेरोज़गार हूँ



कल देखा एक आदमी को सड़क पर,


गाड़ी के नीचे आते आते बच गया,


आदतन वो ही शब्द निकल गये मुझसे,


देखकर नही चल सकते,अंधे हो क्या?



जवाब ने पर इस बार चौंका दिया,


जनाब, आँखों से अंधा तो नही हूँ,


पर बेरोज़गार हूँ,बस अंधेरा है मेरी


आँखों के आगे,हमेशा...हर वक्त,


हाँ दोस्त...मैं एक बेरोज़गार हूँ!!



उसकी बातों का ही असर था शायद,


जो उस बेरोज़गार से पूछ पड़ा मैं,


इस अंधेपन का कुछ करते क्यों नही,


उसका बोलना,मेरा चौंकना,जारी रहा,


इलाज तो करवाना चाहता हूँ मगर,


मरीज़ इतने बढ़े की दवा कम हो गयी,


अब ज़िंदगी मे रोशनी लाने के लिये,


अंधेरे मे बस भागे चला जा रहा हूँ,


हाँ दोस्त...मैं एक बेरोज़गार हूँ !!



इसके आगे मैने कुछ नही पूछा उससे,


पर वो बोलता ही चला गया, शायद,


मेरी आँखें अब भी सवाल कर रही थी,


कहने लगा की बेरोज़गारी की ये बीमारी,


गरीबी की गंदी गलियों मे बड़ी फ़ैलती है,


ऐसे ही संक्रमण का असर हुआ है मुझपे,


अब जैसे कुछ नही दिखता,सपने भी नही,


हार नही मानी है अब तक,पर लाचार हूँ,


हाँ... हाँ दोस्त... मैं, एक बेरोज़गार हूँ !!

Sunday, June 14, 2009

हम खुश है तेरी तस्वीर से मोहब्बत करके

फ़कत एक बार जो पड़ गयी तेरी तस्वीर पे निगाह,
दिल ने कहा कि आई है एक परी आसमां से उतरके,
एक बार पड़ी निगाह,तो नज़र फ़िर हटाई ना गयी,
लगता है अब तो तू मानेगी मुझको दीवाना करके।

देखो आधे चेहरे पे तुम्हारे धूप पड़ रही है ऐसे,
जैसे रोशनी भी बिखर रही हो ज़रा ठहर ठहरके।

मेरी जानिब तो देख नही रही हो तुम लेकिन,
तुम्हारी नज़र तो निकली है मेरे दिल से गुज़रके।

अपने हाथों से छू रही हो तुम रुख्सारों को अपने,
इन हाथों को रख दो एक बार मेरे हाथों मे धरके।

हुस्नो-निखार ज़माने भर मे देखा तो बहुत है,
पर तुम तो आयी हो शायद चांदनी से निखरके।

दिल मे हसरत है हो जाये एक मुलाकात तुमसे,
वैसे तो हम खुश है तेरी तस्वीर से मोहब्बत करके।

Thursday, June 11, 2009

चांद को क्या मालूम की तारीफ़ किसी और की होती है :)

कल शाम पार्क मे बैठा हुआ था,
पास एक बच्चा प्यारी सी एक ज़िद
किये जा रहा था,किये जा रहा था,
कहता, चंदा मेरा मामा है तो चलो,
एक बार मिलवाओ मुझे उनसे,एक बार,
और साथ मे जो थे,उसके पिता होंगे,
इस मासूम पर जटिल ज़िद के आगे लाचार,
बगल वाली बेंच पे ये भोला सा तमाशा,
चले जा रहा था,चले जा रहा था...


और....ऐसे मे मेरे अंदर का कवि जागा,
सोचता हूँ कभी जब अपना भी बच्चा होगा,
और अपने चंदा मामा से मिलना चाहेगा,
इसी तरह कभी ज़िद करने लगेगा पार्क मे,
तो कह दूँगा,मुन्ने साब बात ऐसी है,
आपके मामा अब हमसे नाराज़ हो गये है,
क्योंकि आज तक उनका नाम लेकर हम,
आपकी मम्मी को बुलाते आये है,और,
जाने कितनी ही कवितायें बनाते आये है...

अगर अब भी नही समझे की ये कवि,
क्या कह रहा है,तो जान लो ये कविता,
एक बहाना था,एक बार फ़िर तुमको,
चुपके से चांद कहके बुलाना था !!!

Monday, June 8, 2009

Fake Bollywood Actor

I believe, the intersection of the sets of IPL fans and Bollywood fans is a considerably large set,and so I preassume, this post will have its fair share of audience .There have been ample questions raised about the identity of the fake IPL player,and I wont be dwelling upon it henceforth,at least for the time being. The intent is to contemplate regarding the efects it has had...and discuss another weird possibilty. What if a similar fakie crops up during the shooting of a bollywood movie,comes up with a similar blog...a Fake Bollywood Actor.

So what are the options for a fake bollywood actor.After all, the players do get a chance to spend a lot of time together,outside the grounds,but same is not true for actors outside the studios(read foreign locales)..the exceptions are there,but in general,movie stars arent spending days and nights with each
other.Yet,when some project,gets shifted to a location like,say,South Africa,due to the lack of aesthetic value in India's tourist places(which somehow help the tourism industry to contribute significantly to our GDP) an opportuniy arises for our fakie.Here,our fakie,who is confident,that he is a good for nothing
piece of nonsense in the world of cinema,decides to look for an alternative.The world of Blogging welcomes him,just like an unregulated economy welcomes recession,with open arms.People around the world are greeted to certain secrets(which was never of any help anyway),a plethora of nicknames and ample amount of humour.The bottomline is,the world enjoys the piece of nonsense...because...the world,enjoys it!!
Time to pick up certain arbitrary nicknames..Ab bhi shake Bachan will be talked about in derogatory tone,making fun of one of his weird habits(refer his nick).With due disrespect,the credit for this habit may befall upon Mrs. Aishkarwa Rahe Bachan.With her,you get a chance to discuss about her past lovers
(also her last lovers),Vivek Ab Roye and DKD,nicknaming him upon the only thing which brings a certain amount of fame to him nowadays.A talk about how Vivek Ab Roye has become even more desperate to get a role,and how DKD has been strung up in his 37th (bollywd) affair should give some masala.

With Ab bhi Shake Bachan,also comes an opportunity to discuss about his talented dad,Shehenshah of the bollywood,and with it you have a chance to vent out your crappy thoughts over who the biggest superstar of the Bollywood is.On the one hand you have "sehen-shah",the tolerant old man,while on the other,you have the "bad-shah",the charming and the proudy one.A couple of "inside news" about someone calling the other a dog,mouse,cat,buffalo etc etc (in a blog or outside it) should satisfy the inexplicable hunt for controversies, of our society.Katrina Kaif being called Foren Babe(remember foren babas??) while some one like Priety already has been baptized as Bubbly.But not everyone is seen with an eye of disrespect,and Priness Of Kolkata(Rani Mukherji) happens to have the fakie in her list of admirers . Surprisingly,the presence of just a couple of these big names are enough to come up with excuses to talk about all of them,again,masala is never in dearth,when it comes to Bollywood.Some other nicknames:
Tirchhi Topi - the legendary singer with the cap,who never irritated a soul with his singing
Xerox Machine - the great music director Pritam da...for the obvious reasons..
Miss Maggie - Kangana Ranaut,with the attractive hair style...not my fault if the fakie finds it weird!!
Dancing Dasher - Hritik Roshan..as we know it isnt always being disrespectful in the nicknames
Hawa ka jhonka - The guy who has written more songs than anybody in Bollywood...however pathetic most of them may be :)
Issues Discussed..Questions raised...blaah blaah blaaah... :

India,they say,is a country strongly driven by Bollywood.Its more than a mere industry,its a culure,a religion.For many,it is said that,maa and cinemaa are their first words.If only,Bollywood is observed from a different vantage point,will the prestige still remain intact?? This line has a lot of name,fame,even
shame,but all because it has a lot of money.With agencies like Underworld and Mafia,religiously contributing to the cause of Indian cinema,money matters are hardly a matter of concern.And if you can make a couple of films on general goodness of mankind and the ways the goons of today,are the ones who suffered yesterday,then the movies are all the more likely to be allotted huge funds.Of course with such stalwarts enetring the fray,a few complexities arise.Few of the transactions can go haywire,where big names like Chota Sajan,Daood Beraham end up being vexed and unsatisfied.Also when your girlfriends are either not getting movies,or they are ruining the chances by the sheer absence of talent and abilities,it leaves you all the more frustated.As you know such unregulated economies,have their share of advantage,but a crisis is never too far.A talk about a couple of deals being finalised,"contracts" being signed by various such "companys",will find ample space in our coveted Bollywood Fake Blog.
What about the awards,for all the hard work,people put in for days and nights.If Hollywood has an Oscar,here we have Film-unfairs,Zee Cine,Screen,and several other useless ones.To complement these names,we also have something called National Awards(wonder what others are).We have guys like our dearest Dildo,or the Bad-shah of bollywood dominating such award giving ceremonies,while the ones like Mr. Pervertionist not accepting the awards.An insider can always disclose information about how some of these awards were transacted.Intelligent audience often figures out which of the awards have been bought,so certain details and additional monetary facts and figures could be provided by our esteemed fake one.
Casting couch happens to be another by product of this cinema culture,for good or bad,one cant say with definite accuracy.The opinions,usually,are divided upon this issue of national interest,but the thing to be noted, is the national interest in this topic.Guys like Fuckty Kapoor assumed a legendary status
after being involved in such controversies,and no one can negate the well known fact that there are many names,big and small,actively participating in this act.Even the secret cameras have been quiet for quite some time,so our fake actor can assume the responsibilty to discuss,at length,about any such act of
favouritism on grounds of sexual favour,that the fake one observes,and brings to the notice of everyone concerned.
Apart from above mentioned points,there are other issues to be addressed.With new affairs starting and ending everyday,people locking lips and denying it,people marrying and remarrying often,and to add to this,buying teams and players,the responsibilty and the task on hand is daunting.While there are pairs
like Sexy Basu and Dostana Abraham, which stand the stiff tests of time and situations,there are others like Bacha Kapoor and Aunty Kapoor's pair,which are blown to pieces when caught kissing in public.Here we arrive at another important point,the Fake Bollywood actor must regularly discuss any act of Public
(even private) display of affection by the celebrities,that he observes on sets or otherwise.With fake mms arriving in the market with alarming regularity,the genuinity(or the lack of them) can often be known by such a Fake one,which will make the public aware of the realities.Of course,like any other field,the Entertainment Industry must have its fair share of unfair and dirty politics,the mathematics of hit and flop involving the use of complex numbers and certain prime numbers....The issues are actually endless.
Be it Bollywood,be it cricket,a lot of its realities can be brought out in the open,only if you are a fake one.A lot of his talks will sound like utter crap,some actually will be,insulting and even offending nicknames coupled with certain harsh realities.Often it takes a lot of courage to say the truth,and sometimes, it takes...a fake identity.Remember,behind every fake,there is an original!!

Sunday, June 7, 2009

मुकम्मल दर्द

मेरी इस कविता की प्रेरणा हिंदी बलौगिंग की जाने-मानी हस्ती हरकिरत जी है,मेरी ये मामूली सी कोशिश उनके दर्द भरे उत्कृष्ट नगमों के सामने कुछ नही,पर मैं अपनी ये कविता उनको समर्पित करना चाहूँगा। मेरा एक छोटा सा सलाम इस बड़ी सी हस्ती को :)



कल दर्द को पिघलते देखा,
तकलीफ़ की आग मे जलते देखा,
सोचा पिघलके बह जायेगा ये,
जैसे बाकी सब बह जाते है,
मालूम हुआ कुछ ऐसे एहसास है,
जो सीने मे कैद रह जाते है। 

कल दर्द से बातें की,
बातें क्या,बस शिकायतें की,
दर्द सुनाने लगा अपनी दास्तां,
लगा,बोलके चुप हो जायेगा ये,
जैसे बाकी सब खामोश हो जाते है,
पर लगता है कुछ आवाज़ें मरती नही,
लफ़्ज़ भले खो जाते है। 

कल दर्द पे कविता लिख डाली,
सारी भड़ास कागज़ पे निकाली,
सोचा ज़रा मन हल्का हो जायेगा,
जैसा हर बार हो जाता है,
पर अफ़सोस दर्द का बोझ उतरा नही,
अधूरे से जज़्बात मिटने लगते है जब,
तब मुकम्मल दर्द तैयार हो जाता है।




लेकिन वो सच था

बात साढ़े इक्कीसवीं शताब्दी की है, 
एक टीचर क्लास में पहुँचे, 
बच्चों को सिखाने बातें भाषा की, 
सबसे पहले बारी आयी परिभाषा की।  

पूछा-सच की परिभाषा बताओ, 
टीचर ने बच्चो को देखा, 
बच्चों ने एक दूजे को,  
सबका क्लास मे यही था हाल, 
यार कुछ समझ नही आया सवाल।  

बोले टीचर-बच्चो कितने नादान हो, 
इस शब्द से भी अंजान हो, 
गर जवाब नही दे पाये तुम, 
फ़िर सबको कड़ी सज़ा दूँगा, 
सारी क्लास को मुर्गा बना दूँगा।  

बच्चे लगे फ़िर मुस्काने, 
अपने टीचर को समझाने, 
मुर्गा बनना अब सज़ा नही, 
इसमे तो कुछ भी बुरा नही,
इंसानो की हालत तो 
मुर्गों से भी बदतर है, 
आज के ज़माने में तो, 
मुर्गा बनना ही बेहतर है।  

टीचर ऊँची आवाज़ करके बोले, 
बच्चो को नाराज़ करके बोले,  
गर नही आता है जवाब, 
मान लो अपनी हार तुम, 
पर अपने टीचर से ऐसी बहस, 
मत करो बेकार तुम।

बच्चों ने मामले को संभालने की ठानी, 
सबने टीचर की बात मानी, 
बोले जवाब हमको आता है पर, 
लगता है इतना सा डर, 
शायद उत्तर इतना सटीक ना हो, 
कहीं आप इससे खफ़ा ना हो आये, 
होगा सबसे बेहतर यही शायद 
की आप ही इसका जवाब बतलाये।  

टीचर महोदय घबराये, 
शब्द ये उन्होने सुना हे कहाँ था, 
जो इसका मतलब वो बतलाये, 
एक मित्र ने उनसे लगायी थी शर्त, 
की इसका अर्थ वो खोजकर दिखाये, 
छान मारी कयी किताबें उन्होने,
मगर 'सच' का मतलब ना ढ़ूँढ़ पाये।  

बच्चों ने तो झूठा बहाना कर, 
उस सवाल को आसानी से टाल दिया, 
टीचर ने भी ऐसा ही कोई झूठ बोल, 
बच्चों को दूसरा सवाल दिया, 
'सच' तो असल मे ये था, 
बच्चे इस शब्द से अंजान थे, 
टीचर भी इससे परेशान थे,
उनकी तरह उस दौर मे, 
झूठ का सहारा ले रहे थे सभी, इसलिये जिन्होने ये शब्द सुना, वो इसी तरह हैरान थे।




Friday, June 5, 2009

शायरी ये तेरी गुलाम ना बनी रहे इसका डर है....

उस दिन लगा जैसे इस बात का फ़कर है, 
मैं कोई अंधा नही,शुक्र है मेरी भी नज़र है।  

जब तेरे रुख पे जाके रुक गयी मेरी निगाह, 
दिल बोले कयामत है,धड़कन कहे की कहर है।  

हवाओं की मेहरबानी से हुई ज़ुल्फ़ो में हलचल, 
ठहरी हुई महुआ की बूँद,या मानो एक लहर है।  

किन्हीं आँखों मे ना देखी थी गहराई कुछ ऐसी,  
दुनिया तमाम वीरान,इनमे बसता एक शहर है।  

बड़ी अदा में दाँतों से जो तू काटती थी लबों को,  
होंठो पे मद्धम दर्द,इस जिगर पे मरहम सा असर है।  

उतरा जो ज़रा सा तो और नीचे ना जाया जाये,  
ये तेरे करम है,या ज़ालिम ये तेरी कमर है।  

तूने शायर बना दिया इस बात का नाज़ होता है, 
शायरी ये तेरी गुलाम ना बनी रहे इसका डर है।

Monday, June 1, 2009

ज़िंदगी को बहुत प्यार हमने किया (एक लघु नाटक) - भाग 2

(तीसरा दृश्य - एक महिला रो रही है दहाड़े मार कर,यमराज और चित्रिगुप्ता वहाँ पहुँचते है।)

यमराज- ये कहाँ आ गये हम,यूँ ही साथ साथ चलते?

चित्रिगुप्ता - हे महाराज! सुन रहे है ये रोने की आवाज़। कल एक मनुष्य यमलोक आया था,बहुत आँसू बहाया था।किसी लाचार सा दिखायी देता था वो,अपनी जवान बीवी की दुहाई देता था वो। ये उसी की बीवी है,अब आगे देखिये।

(एक लड़के का प्रवेश,जो उस रोती महिला के इर्द गिर्द चक्कर लगाने लगता है)

लड़का - हाय डार्लिंग! फ़ोन तेरा औफ़ था,गूगल टौक पे तू औफ़लाईन थी,इसलिये मिलने चला आया। पर यहाँ आके देखता हूँ तेरे रोने का नज़ारा,अब क्या गम है जब मिल गया पति से छुटकारा।

लड़की - हाय,हाय,हाय,यमराज आये,मेरी भी जान लेके जाये। दौलत क्या खाक छोड़ी,उल्टा सर पे कर्ज़ आ गया है,खुद तो डूबा,मुझे भी डूबा गया है,मेरे पति ने तो समाज कल्याण मे अपना जीवन बिताया,इसलिये कभी माल नही कमाया,अब तो तू ही बचा ले,मेरी ज़िम्मेदारी उठा ले।

लड़का - मुन्नाभाई के शब्दों मे कहूँ तो मेरा हृदय परिवर्तन हो गया है,धर्म जाग गया है,अधर्मी सो गया है, अगर इतना नेक,इतना महान था तेरा पति,तो हे नारी,हो तू भी उसके साथ मे सती।

(यमराज और चित्रिगुप्ता ये सारा नज़ारा देखते है,और )

यमराज - हाय रे इंसान के बेशरमी,हर रूप मे मौजूद है अधर्मी।

चित्रिगुप्ता - हे यमराज,ऐसा नही है महाराज। आपको ले चलती हूँ वहाँ,जहाँ सुबह खूबसूरत,शाम हसीन है,जहाँ ज़िंदगी बेहद रंगीन है। वो है पास के बी आई टी मेसरा का पी एम सी एरीया !!

(पाठको को बता दूँ, हमारे कौलेज मे पी एम सी वो जगह है जहाँ से नो-एंट्री ज़ोन शुरु होता है,इसके पार एक दूसरी दुनिया बसी है,जहाँ हमारे कौलेज कि कन्यायें वास करती है)

(चौथा दृश्य - एक लड़का पी एम सी पर लड़कियाँ ताड़ रहा है,और रह रहके आपत्तिजनक टिप्पणियाँ भी कर रहा है,ऐसे मे यमराज और चित्रिगुप्ता {अदृश्य रूप मे} वहाँ आते है,तभी लड़के का फ़ोन बजता है)

लड़का - हाँ माँ! हाँ प्रणाम! पढ़ाई लिखाई,पढ़ाई लिखाई मे तो डूबा रहता है इस कदर मन मेरा, कि अब तो समर्पित है इसी को जीवन मेरा। आजकल ईंस्टीचियूट के चक्कर लगा रहा हूँ,डिस्पले ऐंड इन्टरफ़ेसिंग पे एक प्रोजेक्ट बना रहा हूँ।

यमराज - कहीं धर्म के नाम पर लूट है तो कोई माँ को कहता झूठ है। क्या सोचा था और क्या पाया,इंसान का असल रूप आज सामने आया।

(तभी एक फ़टे चिथड़े कपड़े पहनी औरत लड़खड़ाती हुई प्रवेश करती है,वो गिरती है और ये लड़का दौड़के उनके पास जाता है और सहारा देता है)

औरत - मैं तो जन्म जनमांतर की भोगी हूँ,मेरे करीब ना आओ मैं एक कुष्ठ रोगी हूँ।
लड़का - गरीबो लाचारों से दूर जाना तो एक नादानी है,मैं आपकी मदद करूँगा,कयोंकि यही फ़ितरते इंसानी है।

यमराज - अरे ये तो लेटेस्ट news है,अब तो यमराज भी confuse है।

चित्रिगुप्ता - हे यमराज,अगर आप ना हो नारज़,तो एक बात बताती हूँ,इन सबका सार समझाती हूँ।
(अभिनय के द्वारा ये ज़ाहिर होता है कि चित्रिगुप्ता यमराज को कुछ समझाती है)

यमराज - समझ गया। कुछ झूठे है,कुछ बे ईमान है,पर इंसान का इंसान से प्रेम इन सबसे महान है। हर इंसान मे कुछ बुराई है,कुछ अच्छाई है,पर यही जीवन की सच्चाई है। काश इस सुंदर दुनिया को हम और सँवार सकते,इंसानो को मारने के बजाय इनके अंदर की बुराई को मार सकते।

चित्रिगुप्ता - मुझे तो यकीन है कि एक रोज़,ये अपने अंदर की बुराई को ज़रूर मारेंगे।

यमराज - तो मेरा भी वादा है चित्रिगुप्ता,उस रोज़ हम धरती पे स्वर्ग को उतारेंगे,स्वर्ग को उतारेंगे ...

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