Tuesday, June 30, 2009
ज़िंदगी गुज़ारी अपनी शर्तों पे हमने ...
हमने आज एक और मुकाम पा लिया ।
ज़िम्मेदारियों के प्रति ये आँखें खुली भी,
और नींद मे भी एक सपना सजा लिया।
मोहब्बत तो सिर्फ़ कमज़ोर करती आई थी,
सब भुला इस मकसद से दिल लगा लिया।
जोश और जज़्बे मे तो अब कमी नही होगी,
मेरे मुकद्दर ने भी देखो ऐसा फ़ैसला लिया ।
ज़िंदगी तमाम गुज़ारी अपनी शर्तों पे हमने,
मौत को अपनी मर्ज़ी का गुलाम बना लिया।
Sunday, June 28, 2009
इश्क ने गालिब निकम्मा कर दिया,वर्ना हम भी आदमी थे काम के!!
Saturday, June 27, 2009
इंटर कौलेज आयोजन का नामकरण
Wednesday, June 24, 2009
तेरा एहसास मानो आसमाँ से बरस रहा था...
मौसम की पुकार पे गुज़र रही है शाम सामने से।।
अभी चार पल पहले ही तो मैं रिमझिम की
बस एक आवाज़ के लिये तरस रहा था,
दो पल ही गुज़रे होंगे, की ये देखता हूँ,
तेरा एहसास मानो आसमाँ से बरस रहा था,
देख सिर से पाँव तक भींगने लगे लोग सारे,
और मैं,मेरी तो आँखें तक भींग गयी थी,
शायद यही तेरी याद का वो कामयाब आँसू था,
जिसको पाके आज मैं खिलखिलाके हँस रहा था,
तेरा एहसास मानो आसमाँ से बरस रहा था...
पेड़ सारे पहले से कुछ ज़्यादा ही हरे हो गये थे,
कुछ घोंसले शायद मुझे देखकर हाथ हिला रहे थे,
आकाश मे कुछ अधबरसे बादल थे,जो बीत रहे थे,
इशारों इशारों मे मुझे भी अपने पास बुला रहे थे,
खुश और आश्वस्त सा मैं टेरेस पे टहल रहा था,
कुछ भी नही कर रहा था पर मन बहल रहा था,
एक अकेली ज़िंदगी ऐसी कितनी शामें दे जाती है,
जीवन कितना प्यारा है,सब एहसास दिला रहे थे,
कुछ घोंसले शायद मुझे देखकर हाथ हिला रहे थे...
Monday, June 22, 2009
आँखों मे जल रहा है क्यों...
जब पहली बार मेरे,
कमरे मे आई,
थोड़ा छेड़ा मुझको,
ज़रा सा मुस्कुराई,
बोली,रोज़ आती हूँ मैं,
तेरा अंधेरा फ़िर,
मेरा हो जाता है,
मुझमे खो जाता है,
मैं छू लेती हूँ तुमको,
तुम्हारे इस कमरे को,
इस कमरे मे मौजूद,
हरेक चीज़ को,
कुछ भी तो अछूता
नही मुझसे,सिवाय,
तेरी आँखों के...
छू नही सकी इनको,
आज तक,अब तलक,
दर्द की जाने कौन सी
दीवार से इनको घेरा है,
जाने क्यों आज तक,
यहाँ इतना अंधेरा है !!!
Saturday, June 20, 2009
एक सवाल ज़िंदगी से
Thursday, June 18, 2009
बी.आई.टी की रानी - बलिदान दिवस पे विशेष
बलिदान दिवस के मौके पर एक रचना आप लोगो से बाँटना चाहूँगा। सही मायने मे ये मेरी रचना नही है,सुभद्रा कुमारी जी की कविता झाँसी की रानी की एक छोटी सी पैरोडी मैने अपने कौलेज मे आयोजित एक छोटे से हास्य कवि सम्मेलन मे सुनाई थी,वो ही पेश कर रहा हूँ। हमारे कौलेज बी.आई.टी मेसरा मे एक इन-टाईम का फ़ंडा है,ये वो समय है जब तक कौलेज कि लड़कियों को अपने हौस्टल मे प्रवेश कर जाना होता है,और इसके बाद उनके बाहर जाने पर मनाही है।लड़को के लिये ऐसी कोई रोक-टोक नही है!! सबसे हास्यप्रद बात ये है की ये इन-टाईम कभी कभी 5.30 बजे भी होता है,जो की बहुत ही ज़्यादा जल्दी है। मुझे हमेशा से ऐसा लगा है की यहाँ इस प्रथा का विरोध होना चाहिये,और इसी विचार को मैने अपने कौलेज-फ़ेस्ट मे सुनाई इस रचना मे सामने रखा था,आज आप लोगो के सामने पेश कर रहा हूँ।
ये कविता समर्पित है एक ऐसी लड़की को जो बी.आई.टी मे पढ़ती है,और इन-टाईम हटवाने के लिये लड़ती है।
कविता की पंक्तियाँ :
सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,
बूढ़े भारत में आई फिर से नयी जवानी थी,
गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी,
चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वह स्वयं वीरता की अवतार,
देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार,
नकली युद्ध-व्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार,
सैन्य घेरना, दुर्ग तोड़ना ये थे उसके प्रिय खिलवार,
महाराष्टर-कुल-देवी उसकी भी आराध्य भवानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
पैरोडी की पंक्तियाँ :
ऐडमिनिस्ट्रेशन हिल उठा,रुकी उनकी मनमानी थी,
बूढ़े बी.आई.टी मे आयी फ़िर से नयी जवानी थी,
छिनी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,
दूर इन-टाईम को करने की सबने मन मे ठानी थी,
चमक उठी सन 2k9 मे, वो तलवार पुरानी थी,
प्रोफ़ेसर और मैडम के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वो तो बी.आई.टी वाली रानी थी।
लक्ष्मी थी,या दुर्गा थी,वो स्वयं वीरता की अवतार,
देख लड़के भी पुलकित होते,उसकी बातों के वार,
प्रोजेक्ट करना,असाईनमेंट बनाना,थे उसके प्रिय शिकार,
राँची जाना,इन-टाईम तोड़ना,ये थे उसके प्रिय खिलवार,
ये इन-टाईम की प्रथा तो,उसको बस हटानी थी,
प्रोफ़ेसर और मैडम के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वो तो बी.आई.टी वाली रानी थी।
Tuesday, June 16, 2009
काश मेरा पहला प्यार होता आखिरी भी
इसे एक कविता के रूप मे देखे,इसे गज़ल ना कहा जाये,क्योंकि उस हिसाब से पूरा काफ़िया ही गलत हो जायेगा और ये गज़ल विधा का अपमान ही होगा(वैसे भी बहर मे मैं लिखता नही)। तो बताये कैसी लगी मेरी ये "कविता" :)
Monday, June 15, 2009
मैं एक बेरोज़गार हूँ
कल देखा एक आदमी को सड़क पर,
गाड़ी के नीचे आते आते बच गया,
आदतन वो ही शब्द निकल गये मुझसे,
देखकर नही चल सकते,अंधे हो क्या?
जवाब ने पर इस बार चौंका दिया,
जनाब, आँखों से अंधा तो नही हूँ,
पर बेरोज़गार हूँ,बस अंधेरा है मेरी
आँखों के आगे,हमेशा...हर वक्त,
हाँ दोस्त...मैं एक बेरोज़गार हूँ!!
उसकी बातों का ही असर था शायद,
जो उस बेरोज़गार से पूछ पड़ा मैं,
इस अंधेपन का कुछ करते क्यों नही,
उसका बोलना,मेरा चौंकना,जारी रहा,
इलाज तो करवाना चाहता हूँ मगर,
मरीज़ इतने बढ़े की दवा कम हो गयी,
अब ज़िंदगी मे रोशनी लाने के लिये,
अंधेरे मे बस भागे चला जा रहा हूँ,
हाँ दोस्त...मैं एक बेरोज़गार हूँ !!
इसके आगे मैने कुछ नही पूछा उससे,
पर वो बोलता ही चला गया, शायद,
मेरी आँखें अब भी सवाल कर रही थी,
कहने लगा की बेरोज़गारी की ये बीमारी,
गरीबी की गंदी गलियों मे बड़ी फ़ैलती है,
ऐसे ही संक्रमण का असर हुआ है मुझपे,
अब जैसे कुछ नही दिखता,सपने भी नही,
हार नही मानी है अब तक,पर लाचार हूँ,
हाँ... हाँ दोस्त... मैं, एक बेरोज़गार हूँ !!
Sunday, June 14, 2009
हम खुश है तेरी तस्वीर से मोहब्बत करके
दिल ने कहा कि आई है एक परी आसमां से उतरके,
एक बार पड़ी निगाह,तो नज़र फ़िर हटाई ना गयी,
लगता है अब तो तू मानेगी मुझको दीवाना करके।
देखो आधे चेहरे पे तुम्हारे धूप पड़ रही है ऐसे,
जैसे रोशनी भी बिखर रही हो ज़रा ठहर ठहरके।
मेरी जानिब तो देख नही रही हो तुम लेकिन,
तुम्हारी नज़र तो निकली है मेरे दिल से गुज़रके।
अपने हाथों से छू रही हो तुम रुख्सारों को अपने,
इन हाथों को रख दो एक बार मेरे हाथों मे धरके।
हुस्नो-निखार ज़माने भर मे देखा तो बहुत है,
पर तुम तो आयी हो शायद चांदनी से निखरके।
दिल मे हसरत है हो जाये एक मुलाकात तुमसे,
वैसे तो हम खुश है तेरी तस्वीर से मोहब्बत करके।
Thursday, June 11, 2009
चांद को क्या मालूम की तारीफ़ किसी और की होती है :)
पास एक बच्चा प्यारी सी एक ज़िद
किये जा रहा था,किये जा रहा था,
कहता, चंदा मेरा मामा है तो चलो,
एक बार मिलवाओ मुझे उनसे,एक बार,
और साथ मे जो थे,उसके पिता होंगे,
इस मासूम पर जटिल ज़िद के आगे लाचार,
बगल वाली बेंच पे ये भोला सा तमाशा,
चले जा रहा था,चले जा रहा था...
और....ऐसे मे मेरे अंदर का कवि जागा,
सोचता हूँ कभी जब अपना भी बच्चा होगा,
और अपने चंदा मामा से मिलना चाहेगा,
इसी तरह कभी ज़िद करने लगेगा पार्क मे,
तो कह दूँगा,मुन्ने साब बात ऐसी है,
आपके मामा अब हमसे नाराज़ हो गये है,
क्योंकि आज तक उनका नाम लेकर हम,
आपकी मम्मी को बुलाते आये है,और,
जाने कितनी ही कवितायें बनाते आये है...
अगर अब भी नही समझे की ये कवि,
क्या कह रहा है,तो जान लो ये कविता,
एक बहाना था,एक बार फ़िर तुमको,
चुपके से चांद कहके बुलाना था !!!
Monday, June 8, 2009
Fake Bollywood Actor
So what are the options for a fake bollywood actor.After all, the players do get a chance to spend a lot of time together,outside the grounds,but same is not true for actors outside the studios(read foreign locales)..the exceptions are there,but in general,movie stars arent spending days and nights with each
Sunday, June 7, 2009
मुकम्मल दर्द
लेकिन वो सच था
Friday, June 5, 2009
शायरी ये तेरी गुलाम ना बनी रहे इसका डर है....
Monday, June 1, 2009
ज़िंदगी को बहुत प्यार हमने किया (एक लघु नाटक) - भाग 2
यमराज- ये कहाँ आ गये हम,यूँ ही साथ साथ चलते?
चित्रिगुप्ता - हे महाराज! सुन रहे है ये रोने की आवाज़। कल एक मनुष्य यमलोक आया था,बहुत आँसू बहाया था।किसी लाचार सा दिखायी देता था वो,अपनी जवान बीवी की दुहाई देता था वो। ये उसी की बीवी है,अब आगे देखिये।
(एक लड़के का प्रवेश,जो उस रोती महिला के इर्द गिर्द चक्कर लगाने लगता है)
लड़का - हाय डार्लिंग! फ़ोन तेरा औफ़ था,गूगल टौक पे तू औफ़लाईन थी,इसलिये मिलने चला आया। पर यहाँ आके देखता हूँ तेरे रोने का नज़ारा,अब क्या गम है जब मिल गया पति से छुटकारा।
लड़की - हाय,हाय,हाय,यमराज आये,मेरी भी जान लेके जाये। दौलत क्या खाक छोड़ी,उल्टा सर पे कर्ज़ आ गया है,खुद तो डूबा,मुझे भी डूबा गया है,मेरे पति ने तो समाज कल्याण मे अपना जीवन बिताया,इसलिये कभी माल नही कमाया,अब तो तू ही बचा ले,मेरी ज़िम्मेदारी उठा ले।
लड़का - मुन्नाभाई के शब्दों मे कहूँ तो मेरा हृदय परिवर्तन हो गया है,धर्म जाग गया है,अधर्मी सो गया है, अगर इतना नेक,इतना महान था तेरा पति,तो हे नारी,हो तू भी उसके साथ मे सती।
(यमराज और चित्रिगुप्ता ये सारा नज़ारा देखते है,और )
यमराज - हाय रे इंसान के बेशरमी,हर रूप मे मौजूद है अधर्मी।
चित्रिगुप्ता - हे यमराज,ऐसा नही है महाराज। आपको ले चलती हूँ वहाँ,जहाँ सुबह खूबसूरत,शाम हसीन है,जहाँ ज़िंदगी बेहद रंगीन है। वो है पास के बी आई टी मेसरा का पी एम सी एरीया !!
(पाठको को बता दूँ, हमारे कौलेज मे पी एम सी वो जगह है जहाँ से नो-एंट्री ज़ोन शुरु होता है,इसके पार एक दूसरी दुनिया बसी है,जहाँ हमारे कौलेज कि कन्यायें वास करती है)
(चौथा दृश्य - एक लड़का पी एम सी पर लड़कियाँ ताड़ रहा है,और रह रहके आपत्तिजनक टिप्पणियाँ भी कर रहा है,ऐसे मे यमराज और चित्रिगुप्ता {अदृश्य रूप मे} वहाँ आते है,तभी लड़के का फ़ोन बजता है)
लड़का - हाँ माँ! हाँ प्रणाम! पढ़ाई लिखाई,पढ़ाई लिखाई मे तो डूबा रहता है इस कदर मन मेरा, कि अब तो समर्पित है इसी को जीवन मेरा। आजकल ईंस्टीचियूट के चक्कर लगा रहा हूँ,डिस्पले ऐंड इन्टरफ़ेसिंग पे एक प्रोजेक्ट बना रहा हूँ।
यमराज - कहीं धर्म के नाम पर लूट है तो कोई माँ को कहता झूठ है। क्या सोचा था और क्या पाया,इंसान का असल रूप आज सामने आया।
(तभी एक फ़टे चिथड़े कपड़े पहनी औरत लड़खड़ाती हुई प्रवेश करती है,वो गिरती है और ये लड़का दौड़के उनके पास जाता है और सहारा देता है)
औरत - मैं तो जन्म जनमांतर की भोगी हूँ,मेरे करीब ना आओ मैं एक कुष्ठ रोगी हूँ।
लड़का - गरीबो लाचारों से दूर जाना तो एक नादानी है,मैं आपकी मदद करूँगा,कयोंकि यही फ़ितरते इंसानी है।
यमराज - अरे ये तो लेटेस्ट news है,अब तो यमराज भी confuse है।
चित्रिगुप्ता - हे यमराज,अगर आप ना हो नारज़,तो एक बात बताती हूँ,इन सबका सार समझाती हूँ।
(अभिनय के द्वारा ये ज़ाहिर होता है कि चित्रिगुप्ता यमराज को कुछ समझाती है)
यमराज - समझ गया। कुछ झूठे है,कुछ बे ईमान है,पर इंसान का इंसान से प्रेम इन सबसे महान है। हर इंसान मे कुछ बुराई है,कुछ अच्छाई है,पर यही जीवन की सच्चाई है। काश इस सुंदर दुनिया को हम और सँवार सकते,इंसानो को मारने के बजाय इनके अंदर की बुराई को मार सकते।
चित्रिगुप्ता - मुझे तो यकीन है कि एक रोज़,ये अपने अंदर की बुराई को ज़रूर मारेंगे।
यमराज - तो मेरा भी वादा है चित्रिगुप्ता,उस रोज़ हम धरती पे स्वर्ग को उतारेंगे,स्वर्ग को उतारेंगे ...
- - - समाप्त - - -