पंख फ़ड़फ़ड़ाते हुए गुज़रा तेरा नाम सामने से।
मौसम की पुकार पे गुज़र रही है शाम सामने से।।
अभी चार पल पहले ही तो मैं रिमझिम की
बस एक आवाज़ के लिये तरस रहा था,
दो पल ही गुज़रे होंगे, की ये देखता हूँ,
तेरा एहसास मानो आसमाँ से बरस रहा था,
देख सिर से पाँव तक भींगने लगे लोग सारे,
और मैं,मेरी तो आँखें तक भींग गयी थी,
शायद यही तेरी याद का वो कामयाब आँसू था,
जिसको पाके आज मैं खिलखिलाके हँस रहा था,
तेरा एहसास मानो आसमाँ से बरस रहा था...
पेड़ सारे पहले से कुछ ज़्यादा ही हरे हो गये थे,
कुछ घोंसले शायद मुझे देखकर हाथ हिला रहे थे,
आकाश मे कुछ अधबरसे बादल थे,जो बीत रहे थे,
इशारों इशारों मे मुझे भी अपने पास बुला रहे थे,
खुश और आश्वस्त सा मैं टेरेस पे टहल रहा था,
कुछ भी नही कर रहा था पर मन बहल रहा था,
एक अकेली ज़िंदगी ऐसी कितनी शामें दे जाती है,
जीवन कितना प्यारा है,सब एहसास दिला रहे थे,
कुछ घोंसले शायद मुझे देखकर हाथ हिला रहे थे...
17 comments:
pyara ehasaas sirf aasman se nahi BHAIYA.....jamin se khushboo ke rup me nikalte hai ......kaynat ke ek ek chij se jhumata huaa nikalata hai .........bahut sundar ........
badhia likha hai bhai , sajal, likhte raho.
आकाश मे कुछ अधबरसे बादल थे
bahut sunder ehsaas aur bayan.
क्या बात है आप की लेखनी दिन पर दिन निखरती जा रही है,
धन्यवाद
gud work again dude....
abe tu to sahi me boss ek no hai...bas bol diya ki khusi par likh aur tune likh diya..yeh hui na champion wali baat...
ehsaas sahi me bahut suhana hota hai..haseen hota hai...bas ek pyar karne wala/wali chahiye...jindagi madmast nao ki tarah ho jati hai...
kahin jane ka thikana na rahe par jindagi wahin tahar si jati hai..kehti hai ...abhi nahi abhi to jindagi kafi bachi hai...aaj rehne do mujhe...aaj jee lene do mujhe...
uttam bhao prastut kiya aapne sajal ji...ek no...
keep writn
बहुत ही ख़ूबसूरत एहसास के साथ आपने ये शानदार कविता लिखा है! बेहद पसंद आया!
मेरे सभी ब्लॉग पर आपका स्वागत है! एक नया ब्लॉग बनाया है आपका सुझाव चाहिए!
http://amazing-shot.blogspot.com
बहुत सुन्दर रचा है.
Thank u all...
बहुत अच्छी रचना है...लिखते रहें...
नीरज
बहौत गहरी और सुन्दर अनुभूति!
अकेलेपन के अहसास की अच्छी एनाटोमी कर डाली है आपने -बीते दिन याद आ गये !
shukriya aap sab ka
कुछ भी नही कर रहा था पर मन बहल रहा था,
एक अकेली ज़िंदगी ऐसी कितनी शामें दे जाती है,
जीवन कितना प्यारा है,सब एहसास दिला रहे थे,
कुछ घोंसले शायद मुझे देखकर हाथ हिला रहे थे...
क्या बात है ....बहुत ख़ूब......!!
कुछ अलग है आपके लेखन में. दिल के करीब लगा.
"शायद यही तेरी याद का वो कामयाब आँसू था,
जिसको पाके आज मैं खिलखिलाके हँस रहा था,"
sunder.........
bahut badhiya sajal ji !
isi tarah likhte raho apke collage drame ke liye ABHIVYAKTI nam baht achchha hai .
shukriya aap logo ka
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