कल देखा एक आदमी को सड़क पर,
गाड़ी के नीचे आते आते बच गया,
आदतन वो ही शब्द निकल गये मुझसे,
देखकर नही चल सकते,अंधे हो क्या?
जवाब ने पर इस बार चौंका दिया,
जनाब, आँखों से अंधा तो नही हूँ,
पर बेरोज़गार हूँ,बस अंधेरा है मेरी
आँखों के आगे,हमेशा...हर वक्त,
हाँ दोस्त...मैं एक बेरोज़गार हूँ!!
उसकी बातों का ही असर था शायद,
जो उस बेरोज़गार से पूछ पड़ा मैं,
इस अंधेपन का कुछ करते क्यों नही,
उसका बोलना,मेरा चौंकना,जारी रहा,
इलाज तो करवाना चाहता हूँ मगर,
मरीज़ इतने बढ़े की दवा कम हो गयी,
अब ज़िंदगी मे रोशनी लाने के लिये,
अंधेरे मे बस भागे चला जा रहा हूँ,
हाँ दोस्त...मैं एक बेरोज़गार हूँ !!
इसके आगे मैने कुछ नही पूछा उससे,
पर वो बोलता ही चला गया, शायद,
मेरी आँखें अब भी सवाल कर रही थी,
कहने लगा की बेरोज़गारी की ये बीमारी,
गरीबी की गंदी गलियों मे बड़ी फ़ैलती है,
ऐसे ही संक्रमण का असर हुआ है मुझपे,
अब जैसे कुछ नही दिखता,सपने भी नही,
हार नही मानी है अब तक,पर लाचार हूँ,
हाँ... हाँ दोस्त... मैं, एक बेरोज़गार हूँ !!
18 comments:
वाकई, इसके बीमार को बस अंधेरा ही नजर आ रहा है आज के दौर में.
आप ने अपनी कविता मै बेरोज़गार ओर गरीब का बहुत अच्छा चित्ररण किया, काश कोई दुखी ना हो, सब के पास कम से कम खाने लायक तो हो
umda rachna, berojgari par sunder vyangta. badhai.
Hey ! it's a good poem or I must say it is a reality. You have a good point of view...
मरीज़ इतने बढ़े की दवा कम हो गयी
bahut achchhi samvedana se bhari hui rachna
जब बीमार अधिक हो जाएँ तो दवा भी और ज्यादा होनी चाहिए, और यहाँ तो ऐसा कुछ भी नहीं दिखाई देता...
बेरोजगारी के बहाने आपने वर्तमान समाज की विद्रूपताओं पर अच्छी रोशनी डाली है।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
सच लिखा है सजल जी.....बेरोजगारी अपने आप में एक अभिशाप है, एक बीमारी है ............. इंसान अंधा हो जाता है, लाचार हो जाता है.......... पर उसके बस में इसका इलाज नहीं होता
in shabdo ke liye aap sabka tahe dil se shukriyaa
सजल ,
"मैं एक बेरोज़गार हूँ" एक सुन्दर रचना है जो भावपूर्ण भी है.
Thanks for being the "FIRST" commenter on a 25 year old creation. "सच में" पर आते रहें.
आपने वाक़ई बख़ूबी ताज़ा हालात बयाँ किये हैं
berojgari ke dard ko bakhobi vyakt kiya hai aapne .,,.bahut aacchi lagi ye post ...
shukriya dosto...is kavita pe jaisa response mila hai usse mujhe bahut khushi huyee hai :)
ek behtreen post hai ye
wahhhhhhhhhh
kya shabdo mai dhala hai aapne vaqt or haalaat se majboor insan ki vyatha ko
uniqe ni:sandeh kabil-e daad
aaj ki samasya ko kavy roop mai chitran kiya hai aapne
kya likha hain! ek sajeev chitran
:)
amazingly beautiful... sach mein bahut bahut acchi rachnaa... adhik kuch kehnaa vyarth hoga...
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