आज सुबह रोशनी
जब पहली बार मेरे,
कमरे मे आई,
थोड़ा छेड़ा मुझको,
ज़रा सा मुस्कुराई,
बोली,रोज़ आती हूँ मैं,
तेरा अंधेरा फ़िर,
मेरा हो जाता है,
मुझमे खो जाता है,
मैं छू लेती हूँ तुमको,
तुम्हारे इस कमरे को,
इस कमरे मे मौजूद,
हरेक चीज़ को,
कुछ भी तो अछूता
नही मुझसे,सिवाय,
तेरी आँखों के...
छू नही सकी इनको,
आज तक,अब तलक,
दर्द की जाने कौन सी
दीवार से इनको घेरा है,
जाने क्यों आज तक,
यहाँ इतना अंधेरा है !!!
30 comments:
सजल जी ......जीवन के उजले और काले पक्ष को एक साथ देखा और दिखाया आपने.....कविता सुन्दर लगी...
एक बेहतरीन कविता सुंदर भाव लिये.
धन्यवाद.
मुझे शिकायत है
पराया देश
छोटी छोटी बातें
नन्हे मुन्हे
बहुत सुन्दर रचना है।बधाई।
कुछ भी तो अछूता
नही मुझसे,सिवाय,
तेरी आँखों के...
इतना सोना अच्छा नही जागिये और रोशन हो जाइये ।
गहन अभिव्यक्ति!!
kavita bahut achchhi lagi.
अरे वाह ,अच्छी रचना लिखने लगे हैं आप .
यह संसार अद्भुत है,
अंधेरे हैं उजाले भी।
कहीं पर धूप खिलती है,
कहीं बादल हैं काले भी।
Shukriya aap sab guru logo kaa...
Manoj Sir...zara mixed compliment tha wo to :)
kya likhun.......dil ko choo gayi .........dard ko roshni ke madhyam se bakhubi prastut kiya hai.kuch jagah aisi hi hoti hain jahan jane ki kisi ko bhi ijajat nhi hoti.
aapki ye rachna bahut hi pasand aayi.
दर्द की जाने कौन सी
दीवार से इनको घेरा है,
जाने क्यों आज तक,
यहाँ इतना अंधेरा है !!!
" इन पंक्तियों ने मन मोह लिया.."
regards
man ke andhere shayad baahri hansi ke ujaas se bhi kabhi kabhi nahi khil paate...
behad shaandar likha hai!
शब्द और भावः का अद्भुत संगम है आपकी रचना में...बधाई...
नीरज
Shukriya utsaahvardhan ke liye :)
Reetika Ji..bahut samy baad aap blog pe dikhi,acha laga
behatareen rachna. sajal, badhai.
भाई सजल जी,
सुन्दर भाव, गहरे भाव
बधाई,
पर एक बात समझ न आई कि दुनिया जिससे रौशन दिखे उस आँख को कैसे अँधेरे न घेरा है. एक अंधी भी अनुभूति की आंख से जो नहीं भी दिख रहा उसे महसूस कर लेता है...............
चन्द्र मोहन गुप्त
सुन्दर है.
छू नही सकी इनको,
आज तक,अब तलक,
दर्द की जाने कौन सी
दीवार से इनको घेरा है,
जाने क्यों आज तक,
यहाँ इतना अंधेरा है !!!
वाह ....! ये टिप्पणियाँ करने वाले क्या जाने कमबख्त इस दर्द में क्या मज़ा है ....इन्हीं अंधेरों से to ये कमाल की नज्में पैदा होती हैं .....!
Wah Roshni ka kamre mein aana... sabkuch choolena par aankhon tak na pahuch pana....Rahasywaad ki taraf rukh leti ye krati man ko choo gai
छू नही सकी इनको,
आज तक,अब तलक,
दर्द की जाने कौन सी
दीवार से इनको घेरा है,
जाने क्यों आज तक,
यहाँ इतना अंधेरा है !!!
गहरी भाव सरिता मे बहती सुन्दर रचना के लिये बधाई
Mumuksh Sir...zamaane me roshni to dikh rahee hai,par in aankhon me chhipe sapne aur armaan andhere me dafan se hai...yehi to irony hai...yehi to dukh hai,peeda hai...
Harkirat Mam..in encouraging words ke liye shukriya...par sach kahoon to dard pe likhe adhiktar poems bhi mere bahut achhe mood me likhe gaye hote hai,mera matlab jab main bada khush rehta hoon :)
sabhi log jo is kavita ke safar me meer saathi bane,unka tah edil se shukriya...
मैं छू लेती हूँ तुमको,
तुम्हारे इस कमरे को,
इस कमरे मे मौजूद,
हरेक चीज़ को,
कुछ भी तो अछूता
नही मुझसे,सिवाय,
तेरी आँखों के...
sundar bhavon ke liye badhai.
good one dude....
u rock.....
sometimes write on happiness too....
its pretty easier to write on pain as compared to happiness thats wat i fell....u may differ....
continue ur good work...
Dude..the way you take notice of even the really really small , easily overlooked things in life and describe them in such detail giving them the significance they truly deserve is highly commendable..
....great work champ..!!.
..
Thank You thank you :)
Saurabh...I agree with you...well i will take ur suggestion seriously
Aapki harek rachna tippanee kee haqdaar hai..bohot khoob!
Aur kya kahun?
http://kavitasbyshama.blogspot.com
http://shamasansmaran.blogspot.com
http://aajtakyahantak-thelightbyalonelypath.blogspot.com
bahut bahtu sunder........
कुछ भी तो अछूता
नही मुझसे,सिवाय,
तेरी आँखों के...
......dard ki bahut sunder abhivyakti ki hai aapne...dil ko chhu liya in shabdo ne...!!
shukriya aap sab kaa
Post a Comment