Sunday, June 7, 2009

लेकिन वो सच था

बात साढ़े इक्कीसवीं शताब्दी की है, 
एक टीचर क्लास में पहुँचे, 
बच्चों को सिखाने बातें भाषा की, 
सबसे पहले बारी आयी परिभाषा की।  

पूछा-सच की परिभाषा बताओ, 
टीचर ने बच्चो को देखा, 
बच्चों ने एक दूजे को,  
सबका क्लास मे यही था हाल, 
यार कुछ समझ नही आया सवाल।  

बोले टीचर-बच्चो कितने नादान हो, 
इस शब्द से भी अंजान हो, 
गर जवाब नही दे पाये तुम, 
फ़िर सबको कड़ी सज़ा दूँगा, 
सारी क्लास को मुर्गा बना दूँगा।  

बच्चे लगे फ़िर मुस्काने, 
अपने टीचर को समझाने, 
मुर्गा बनना अब सज़ा नही, 
इसमे तो कुछ भी बुरा नही,
इंसानो की हालत तो 
मुर्गों से भी बदतर है, 
आज के ज़माने में तो, 
मुर्गा बनना ही बेहतर है।  

टीचर ऊँची आवाज़ करके बोले, 
बच्चो को नाराज़ करके बोले,  
गर नही आता है जवाब, 
मान लो अपनी हार तुम, 
पर अपने टीचर से ऐसी बहस, 
मत करो बेकार तुम।

बच्चों ने मामले को संभालने की ठानी, 
सबने टीचर की बात मानी, 
बोले जवाब हमको आता है पर, 
लगता है इतना सा डर, 
शायद उत्तर इतना सटीक ना हो, 
कहीं आप इससे खफ़ा ना हो आये, 
होगा सबसे बेहतर यही शायद 
की आप ही इसका जवाब बतलाये।  

टीचर महोदय घबराये, 
शब्द ये उन्होने सुना हे कहाँ था, 
जो इसका मतलब वो बतलाये, 
एक मित्र ने उनसे लगायी थी शर्त, 
की इसका अर्थ वो खोजकर दिखाये, 
छान मारी कयी किताबें उन्होने,
मगर 'सच' का मतलब ना ढ़ूँढ़ पाये।  

बच्चों ने तो झूठा बहाना कर, 
उस सवाल को आसानी से टाल दिया, 
टीचर ने भी ऐसा ही कोई झूठ बोल, 
बच्चों को दूसरा सवाल दिया, 
'सच' तो असल मे ये था, 
बच्चे इस शब्द से अंजान थे, 
टीचर भी इससे परेशान थे,
उनकी तरह उस दौर मे, 
झूठ का सहारा ले रहे थे सभी, इसलिये जिन्होने ये शब्द सुना, वो इसी तरह हैरान थे।




11 comments:

Alpana Verma said...

उनकी तरह उस दौर मे,
झूठ का सहारा ले रहे थे सभी,
इसलिये जिन्होने ये शब्द सुना,
वो इसी तरह हैरान थे।

सच की परिभाषा बताना आज के समय में कितनी कठीन हो गयी है यह आप की इस सामायिक कविता में छुपे कटाक्ष आसानी से बयां कर रहे हैं.

M VERMA said...

सजल जी
सच तो खुद आज के समय मे खुद की परिभाषा नही जानता. पर वह भी यह बात नही मानता.
बहुत सशक्त रचना की है आपने.
बधाई.

vandana gupta said...

sach ki paribhasha agar itni aasan hoti to jhooth ka kahin bobala hi na hota.
bahut hi badhiya likha hai jo aaj ke halat par bhi sahi baithta hai.

परमजीत सिहँ बाली said...

सटीक रचना लिखी है। आज सच नजर कहाँ आता है जो इस की परिभाषा जानने का दावा करें।बढिया रचना है।

Vinay said...

सचमुच किसी सुगम मार्ग की तरह है

---
तख़लीक़-ए-नज़र

Vandana Singh said...

bahut hi khoob rachna hui hai ye to ...sach ki paribhasha sachmuch kathin hoti ja rahi hai

Prem Farukhabadi said...

rachna bahut achchhi likhi hai aapne.

isme ki ko dekhen
होगा सबसे बेहतर यही शायद की आप ही इसका जवाब बतलाये।

डॉ. मनोज मिश्र said...

बहुत बढ़िया बन्धु .

Sajal Ehsaas said...

shukriya dosto...sachmuch sach ki ye haalat hoti ja rahi hai

Prem Sir shukriya batane ke liye :)

राज भाटिय़ा said...

बहुत सुंदर लगी आप की यह परिभाषा सच पर, ओर आज सब ओर(भारत मे )यही हाल है, सच्चे आदमी को लोग बेबकुफ़ कहते है.
धन्यवाद

Dr. Tripat Mehta said...

bahut achi likhi hai...