Saturday, August 29, 2009
Dream or Vision ??
What exactly is the answer to the above mentioned question.Like any abstract theme,the beauty lies in the very fact that it has no exact answer,it has interpretations,and opinions.Well my opinion,about the distinguishing feauture between the two,is that,Dream is anything we see for the future,Vision,apart from being a dream,has certain additional properties.Vision is also something we envisage,but it also consists of a belief that we will make that happen,or play our due role in it.Vision includes the belief that things will work out,because we will make them work.
Why did this seemingly apparent idea suddenly aquire so much of importance in my eyes.I guess all of us have dreams,even I had many.Now I have realised that average people have dreams,and the men who made it big,had visions.Its time I minimised dreaming(not end) things, and started envisioning things.
Whats your take...Dream or Vision??
Wednesday, July 8, 2009
रेलवे स्टेशन: एक ज़िंदगी
आपके सुझाव और प्रतिक्रिया का इंतज़ार रहेगा।
रेलवे स्टेशन...शख्सियत कुछ ऐसी,
ज़माने वाले जिसे पहचान नही पाते,
हज़ार हज़ार बार यहाँ आने जाने वाले
मुसाफ़िर भी सही अर्थ जान नही पाते,
खुद मे छिपाए हुए एक नायाब फ़लसफ़ा,
जिसे फ़्रूट स्टौल का रामू,बुक स्टौल का शंभू,
ही समझ सकता है,और समझा सकता है,
क्योंकि साथ इतना वक्त जो बिताया है,
या फ़िर बता सकता है,शायद एक कवि,
एक मामूली से स्टेशन मे भी जिसको,
ज़िंदगी का संपूर्ण सार नज़र आता है।
ज़िंदगी और स्टेशन...एक जैसे,कैसे,
स्टेशन एक मंज़िल भी है,एक सफ़र भी,
कोई बस चलता रहता है दिन भर कभी,
कभी कोई बैठा रह जाता है रात भर भी,
शायद किसी ने इसपे गौर ना किया हो,
यहाँ हर इंसान आता है,चले जाने के लिये,
और हर आने वाले को किसी ना किसी
का इंतज़ार होता है,ज़िंदगी भी तो बस,
बस,एक मुकम्मल इंतज़ार ही होती है,
और भला कैसा होता है इंतज़ार वहाँ,
हमे किसी के आने का इंतज़ार रहता है,
या अपने चले जाने का इंतज़ार रहता है,
मोहब्बत हो जाये,तो ज़िंदगी भी यही है।
जीवन मे लोग कितनी प्लानिंग किया करते है,
इसका,उसका,सबका,वक्त निर्धारित किया करते है,
पर तय नही होता कुछ,एक अंदाज़ा भर होता है,
हमारी ज़िंदगी की टाईमिंग हो,या रेलवे मे
ट्रेनों के आने जाने की,कुछ खास अलग नही,
एक दूजे के प्रारूप ही लगते है ये दोनो,ज़िंदगी,
और ज़िंदगी का एक छोटा सा पहलू।
इतना कुछ समान है,तो फ़र्क भी होगा,
फ़िर अपना कवि ही काम आता है,
और सूक्ष्मरूपी कुछ अंतर बतलाता है,
स्टेशन पे कौन कब आएगा,जाएगा,
इसकी घोषणा पहले ही हो जाती है,
ज़िंदगी मे अक्सर ऐसा नही होता,
कौन कहाँ से जाएगा,कहाँ पे आएगा,
ये भी बस स्टेशन पे ही तय रहता है,
तो अंत मे कवि बस इतना कहता है...
अगली बार प्लेटफ़ौर्म पे बैठे,आते जाते,
जाते आते, इसको उसको,उसको इसको,
देखो तो एक बार सोचना,रेलवे स्टेशन,
और ज़िंदगी,ने मिलके साजिश की है,
और भगाए जा रहे है...हर शख्श को बेतहाशा ।।
Saturday, July 4, 2009
कभी कभी गुज़रा वक्त गुज़रता नही
Wednesday, July 1, 2009
जागृति
बीता एक और दिन,
बीती एक और शाम,
और,कुछ और नाम,
जुड़े ज़िंदगी से मेरे,
हज़ार जतन के बाद,
कुछ को मना लिया,
कुछ रूठे बिन बात,
मेरे सामने खड़ी है,
देखो,एक और रात,
हर दिन,शाम,और रात
की तरह,बीत जाने को,
सोने जा रहा हूँ मैं,
अपने भीतर,फ़िर एक,
सुबह को जगाने को ...
Tuesday, June 30, 2009
ज़िंदगी गुज़ारी अपनी शर्तों पे हमने ...
हमने आज एक और मुकाम पा लिया ।
ज़िम्मेदारियों के प्रति ये आँखें खुली भी,
और नींद मे भी एक सपना सजा लिया।
मोहब्बत तो सिर्फ़ कमज़ोर करती आई थी,
सब भुला इस मकसद से दिल लगा लिया।
जोश और जज़्बे मे तो अब कमी नही होगी,
मेरे मुकद्दर ने भी देखो ऐसा फ़ैसला लिया ।
ज़िंदगी तमाम गुज़ारी अपनी शर्तों पे हमने,
मौत को अपनी मर्ज़ी का गुलाम बना लिया।
Sunday, June 28, 2009
इश्क ने गालिब निकम्मा कर दिया,वर्ना हम भी आदमी थे काम के!!
Saturday, June 27, 2009
इंटर कौलेज आयोजन का नामकरण
Wednesday, June 24, 2009
तेरा एहसास मानो आसमाँ से बरस रहा था...
मौसम की पुकार पे गुज़र रही है शाम सामने से।।
अभी चार पल पहले ही तो मैं रिमझिम की
बस एक आवाज़ के लिये तरस रहा था,
दो पल ही गुज़रे होंगे, की ये देखता हूँ,
तेरा एहसास मानो आसमाँ से बरस रहा था,
देख सिर से पाँव तक भींगने लगे लोग सारे,
और मैं,मेरी तो आँखें तक भींग गयी थी,
शायद यही तेरी याद का वो कामयाब आँसू था,
जिसको पाके आज मैं खिलखिलाके हँस रहा था,
तेरा एहसास मानो आसमाँ से बरस रहा था...
पेड़ सारे पहले से कुछ ज़्यादा ही हरे हो गये थे,
कुछ घोंसले शायद मुझे देखकर हाथ हिला रहे थे,
आकाश मे कुछ अधबरसे बादल थे,जो बीत रहे थे,
इशारों इशारों मे मुझे भी अपने पास बुला रहे थे,
खुश और आश्वस्त सा मैं टेरेस पे टहल रहा था,
कुछ भी नही कर रहा था पर मन बहल रहा था,
एक अकेली ज़िंदगी ऐसी कितनी शामें दे जाती है,
जीवन कितना प्यारा है,सब एहसास दिला रहे थे,
कुछ घोंसले शायद मुझे देखकर हाथ हिला रहे थे...
Monday, June 22, 2009
आँखों मे जल रहा है क्यों...
जब पहली बार मेरे,
कमरे मे आई,
थोड़ा छेड़ा मुझको,
ज़रा सा मुस्कुराई,
बोली,रोज़ आती हूँ मैं,
तेरा अंधेरा फ़िर,
मेरा हो जाता है,
मुझमे खो जाता है,
मैं छू लेती हूँ तुमको,
तुम्हारे इस कमरे को,
इस कमरे मे मौजूद,
हरेक चीज़ को,
कुछ भी तो अछूता
नही मुझसे,सिवाय,
तेरी आँखों के...
छू नही सकी इनको,
आज तक,अब तलक,
दर्द की जाने कौन सी
दीवार से इनको घेरा है,
जाने क्यों आज तक,
यहाँ इतना अंधेरा है !!!
Saturday, June 20, 2009
एक सवाल ज़िंदगी से
Thursday, June 18, 2009
बी.आई.टी की रानी - बलिदान दिवस पे विशेष
बलिदान दिवस के मौके पर एक रचना आप लोगो से बाँटना चाहूँगा। सही मायने मे ये मेरी रचना नही है,सुभद्रा कुमारी जी की कविता झाँसी की रानी की एक छोटी सी पैरोडी मैने अपने कौलेज मे आयोजित एक छोटे से हास्य कवि सम्मेलन मे सुनाई थी,वो ही पेश कर रहा हूँ। हमारे कौलेज बी.आई.टी मेसरा मे एक इन-टाईम का फ़ंडा है,ये वो समय है जब तक कौलेज कि लड़कियों को अपने हौस्टल मे प्रवेश कर जाना होता है,और इसके बाद उनके बाहर जाने पर मनाही है।लड़को के लिये ऐसी कोई रोक-टोक नही है!! सबसे हास्यप्रद बात ये है की ये इन-टाईम कभी कभी 5.30 बजे भी होता है,जो की बहुत ही ज़्यादा जल्दी है। मुझे हमेशा से ऐसा लगा है की यहाँ इस प्रथा का विरोध होना चाहिये,और इसी विचार को मैने अपने कौलेज-फ़ेस्ट मे सुनाई इस रचना मे सामने रखा था,आज आप लोगो के सामने पेश कर रहा हूँ।
ये कविता समर्पित है एक ऐसी लड़की को जो बी.आई.टी मे पढ़ती है,और इन-टाईम हटवाने के लिये लड़ती है।
कविता की पंक्तियाँ :
सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,
बूढ़े भारत में आई फिर से नयी जवानी थी,
गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी,
चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वह स्वयं वीरता की अवतार,
देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार,
नकली युद्ध-व्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार,
सैन्य घेरना, दुर्ग तोड़ना ये थे उसके प्रिय खिलवार,
महाराष्टर-कुल-देवी उसकी भी आराध्य भवानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
पैरोडी की पंक्तियाँ :
ऐडमिनिस्ट्रेशन हिल उठा,रुकी उनकी मनमानी थी,
बूढ़े बी.आई.टी मे आयी फ़िर से नयी जवानी थी,
छिनी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,
दूर इन-टाईम को करने की सबने मन मे ठानी थी,
चमक उठी सन 2k9 मे, वो तलवार पुरानी थी,
प्रोफ़ेसर और मैडम के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वो तो बी.आई.टी वाली रानी थी।
लक्ष्मी थी,या दुर्गा थी,वो स्वयं वीरता की अवतार,
देख लड़के भी पुलकित होते,उसकी बातों के वार,
प्रोजेक्ट करना,असाईनमेंट बनाना,थे उसके प्रिय शिकार,
राँची जाना,इन-टाईम तोड़ना,ये थे उसके प्रिय खिलवार,
ये इन-टाईम की प्रथा तो,उसको बस हटानी थी,
प्रोफ़ेसर और मैडम के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वो तो बी.आई.टी वाली रानी थी।
Tuesday, June 16, 2009
काश मेरा पहला प्यार होता आखिरी भी
इसे एक कविता के रूप मे देखे,इसे गज़ल ना कहा जाये,क्योंकि उस हिसाब से पूरा काफ़िया ही गलत हो जायेगा और ये गज़ल विधा का अपमान ही होगा(वैसे भी बहर मे मैं लिखता नही)। तो बताये कैसी लगी मेरी ये "कविता" :)
Monday, June 15, 2009
मैं एक बेरोज़गार हूँ
कल देखा एक आदमी को सड़क पर,
गाड़ी के नीचे आते आते बच गया,
आदतन वो ही शब्द निकल गये मुझसे,
देखकर नही चल सकते,अंधे हो क्या?
जवाब ने पर इस बार चौंका दिया,
जनाब, आँखों से अंधा तो नही हूँ,
पर बेरोज़गार हूँ,बस अंधेरा है मेरी
आँखों के आगे,हमेशा...हर वक्त,
हाँ दोस्त...मैं एक बेरोज़गार हूँ!!
उसकी बातों का ही असर था शायद,
जो उस बेरोज़गार से पूछ पड़ा मैं,
इस अंधेपन का कुछ करते क्यों नही,
उसका बोलना,मेरा चौंकना,जारी रहा,
इलाज तो करवाना चाहता हूँ मगर,
मरीज़ इतने बढ़े की दवा कम हो गयी,
अब ज़िंदगी मे रोशनी लाने के लिये,
अंधेरे मे बस भागे चला जा रहा हूँ,
हाँ दोस्त...मैं एक बेरोज़गार हूँ !!
इसके आगे मैने कुछ नही पूछा उससे,
पर वो बोलता ही चला गया, शायद,
मेरी आँखें अब भी सवाल कर रही थी,
कहने लगा की बेरोज़गारी की ये बीमारी,
गरीबी की गंदी गलियों मे बड़ी फ़ैलती है,
ऐसे ही संक्रमण का असर हुआ है मुझपे,
अब जैसे कुछ नही दिखता,सपने भी नही,
हार नही मानी है अब तक,पर लाचार हूँ,
हाँ... हाँ दोस्त... मैं, एक बेरोज़गार हूँ !!
Sunday, June 14, 2009
हम खुश है तेरी तस्वीर से मोहब्बत करके
दिल ने कहा कि आई है एक परी आसमां से उतरके,
एक बार पड़ी निगाह,तो नज़र फ़िर हटाई ना गयी,
लगता है अब तो तू मानेगी मुझको दीवाना करके।
देखो आधे चेहरे पे तुम्हारे धूप पड़ रही है ऐसे,
जैसे रोशनी भी बिखर रही हो ज़रा ठहर ठहरके।
मेरी जानिब तो देख नही रही हो तुम लेकिन,
तुम्हारी नज़र तो निकली है मेरे दिल से गुज़रके।
अपने हाथों से छू रही हो तुम रुख्सारों को अपने,
इन हाथों को रख दो एक बार मेरे हाथों मे धरके।
हुस्नो-निखार ज़माने भर मे देखा तो बहुत है,
पर तुम तो आयी हो शायद चांदनी से निखरके।
दिल मे हसरत है हो जाये एक मुलाकात तुमसे,
वैसे तो हम खुश है तेरी तस्वीर से मोहब्बत करके।
Thursday, June 11, 2009
चांद को क्या मालूम की तारीफ़ किसी और की होती है :)
पास एक बच्चा प्यारी सी एक ज़िद
किये जा रहा था,किये जा रहा था,
कहता, चंदा मेरा मामा है तो चलो,
एक बार मिलवाओ मुझे उनसे,एक बार,
और साथ मे जो थे,उसके पिता होंगे,
इस मासूम पर जटिल ज़िद के आगे लाचार,
बगल वाली बेंच पे ये भोला सा तमाशा,
चले जा रहा था,चले जा रहा था...
और....ऐसे मे मेरे अंदर का कवि जागा,
सोचता हूँ कभी जब अपना भी बच्चा होगा,
और अपने चंदा मामा से मिलना चाहेगा,
इसी तरह कभी ज़िद करने लगेगा पार्क मे,
तो कह दूँगा,मुन्ने साब बात ऐसी है,
आपके मामा अब हमसे नाराज़ हो गये है,
क्योंकि आज तक उनका नाम लेकर हम,
आपकी मम्मी को बुलाते आये है,और,
जाने कितनी ही कवितायें बनाते आये है...
अगर अब भी नही समझे की ये कवि,
क्या कह रहा है,तो जान लो ये कविता,
एक बहाना था,एक बार फ़िर तुमको,
चुपके से चांद कहके बुलाना था !!!
Monday, June 8, 2009
Fake Bollywood Actor
So what are the options for a fake bollywood actor.After all, the players do get a chance to spend a lot of time together,outside the grounds,but same is not true for actors outside the studios(read foreign locales)..the exceptions are there,but in general,movie stars arent spending days and nights with each
Sunday, June 7, 2009
मुकम्मल दर्द
लेकिन वो सच था
Friday, June 5, 2009
शायरी ये तेरी गुलाम ना बनी रहे इसका डर है....
Monday, June 1, 2009
ज़िंदगी को बहुत प्यार हमने किया (एक लघु नाटक) - भाग 2
यमराज- ये कहाँ आ गये हम,यूँ ही साथ साथ चलते?
चित्रिगुप्ता - हे महाराज! सुन रहे है ये रोने की आवाज़। कल एक मनुष्य यमलोक आया था,बहुत आँसू बहाया था।किसी लाचार सा दिखायी देता था वो,अपनी जवान बीवी की दुहाई देता था वो। ये उसी की बीवी है,अब आगे देखिये।
(एक लड़के का प्रवेश,जो उस रोती महिला के इर्द गिर्द चक्कर लगाने लगता है)
लड़का - हाय डार्लिंग! फ़ोन तेरा औफ़ था,गूगल टौक पे तू औफ़लाईन थी,इसलिये मिलने चला आया। पर यहाँ आके देखता हूँ तेरे रोने का नज़ारा,अब क्या गम है जब मिल गया पति से छुटकारा।
लड़की - हाय,हाय,हाय,यमराज आये,मेरी भी जान लेके जाये। दौलत क्या खाक छोड़ी,उल्टा सर पे कर्ज़ आ गया है,खुद तो डूबा,मुझे भी डूबा गया है,मेरे पति ने तो समाज कल्याण मे अपना जीवन बिताया,इसलिये कभी माल नही कमाया,अब तो तू ही बचा ले,मेरी ज़िम्मेदारी उठा ले।
लड़का - मुन्नाभाई के शब्दों मे कहूँ तो मेरा हृदय परिवर्तन हो गया है,धर्म जाग गया है,अधर्मी सो गया है, अगर इतना नेक,इतना महान था तेरा पति,तो हे नारी,हो तू भी उसके साथ मे सती।
(यमराज और चित्रिगुप्ता ये सारा नज़ारा देखते है,और )
यमराज - हाय रे इंसान के बेशरमी,हर रूप मे मौजूद है अधर्मी।
चित्रिगुप्ता - हे यमराज,ऐसा नही है महाराज। आपको ले चलती हूँ वहाँ,जहाँ सुबह खूबसूरत,शाम हसीन है,जहाँ ज़िंदगी बेहद रंगीन है। वो है पास के बी आई टी मेसरा का पी एम सी एरीया !!
(पाठको को बता दूँ, हमारे कौलेज मे पी एम सी वो जगह है जहाँ से नो-एंट्री ज़ोन शुरु होता है,इसके पार एक दूसरी दुनिया बसी है,जहाँ हमारे कौलेज कि कन्यायें वास करती है)
(चौथा दृश्य - एक लड़का पी एम सी पर लड़कियाँ ताड़ रहा है,और रह रहके आपत्तिजनक टिप्पणियाँ भी कर रहा है,ऐसे मे यमराज और चित्रिगुप्ता {अदृश्य रूप मे} वहाँ आते है,तभी लड़के का फ़ोन बजता है)
लड़का - हाँ माँ! हाँ प्रणाम! पढ़ाई लिखाई,पढ़ाई लिखाई मे तो डूबा रहता है इस कदर मन मेरा, कि अब तो समर्पित है इसी को जीवन मेरा। आजकल ईंस्टीचियूट के चक्कर लगा रहा हूँ,डिस्पले ऐंड इन्टरफ़ेसिंग पे एक प्रोजेक्ट बना रहा हूँ।
यमराज - कहीं धर्म के नाम पर लूट है तो कोई माँ को कहता झूठ है। क्या सोचा था और क्या पाया,इंसान का असल रूप आज सामने आया।
(तभी एक फ़टे चिथड़े कपड़े पहनी औरत लड़खड़ाती हुई प्रवेश करती है,वो गिरती है और ये लड़का दौड़के उनके पास जाता है और सहारा देता है)
औरत - मैं तो जन्म जनमांतर की भोगी हूँ,मेरे करीब ना आओ मैं एक कुष्ठ रोगी हूँ।
लड़का - गरीबो लाचारों से दूर जाना तो एक नादानी है,मैं आपकी मदद करूँगा,कयोंकि यही फ़ितरते इंसानी है।
यमराज - अरे ये तो लेटेस्ट news है,अब तो यमराज भी confuse है।
चित्रिगुप्ता - हे यमराज,अगर आप ना हो नारज़,तो एक बात बताती हूँ,इन सबका सार समझाती हूँ।
(अभिनय के द्वारा ये ज़ाहिर होता है कि चित्रिगुप्ता यमराज को कुछ समझाती है)
यमराज - समझ गया। कुछ झूठे है,कुछ बे ईमान है,पर इंसान का इंसान से प्रेम इन सबसे महान है। हर इंसान मे कुछ बुराई है,कुछ अच्छाई है,पर यही जीवन की सच्चाई है। काश इस सुंदर दुनिया को हम और सँवार सकते,इंसानो को मारने के बजाय इनके अंदर की बुराई को मार सकते।
चित्रिगुप्ता - मुझे तो यकीन है कि एक रोज़,ये अपने अंदर की बुराई को ज़रूर मारेंगे।
यमराज - तो मेरा भी वादा है चित्रिगुप्ता,उस रोज़ हम धरती पे स्वर्ग को उतारेंगे,स्वर्ग को उतारेंगे ...
- - - समाप्त - - -
Sunday, May 31, 2009
ज़िंदगी को बहुत प्यार हमने किया (एक लघु नाटक)- भाग 1
प्रस्तुत है एक नाटक,जो मैने अपने कौलेज की एक प्रतियोगिता के लियी लिखी थी। स्टेज पर इसे पेश करना एक बेहद सुखद अनुभव रहा था, और हमारी टीम इस प्रतियोगिता मे प्रथम आयी थी।उम्मीद है आप लोगो को पसंद आयेगी :)
पहला दृश्य - यमलोक का नज़ारा! यमराज विचारशील मुद्रा मे,साथ है उनकी सहायिका चित्रिगुप्ता
यमराज - कभी कभी मेरे दिल मे ख्याल आता है,इंसान कयों रोता है जब वो मर जाता है,जब धरती पे स्वर्ग जैसी जगह नही कोई,फ़िर यमलोक आने से वो कयों घबराता है।
चित्रिगुप्ता - हे यमराज, कह देती हूँ आज।हर युग मे,हर लोक मे,सुख मे,शोक मे,इंसान बस अपनी ज़िंदगी चाहता है।अब तो यमलोकवासी भी अपनी मर्यादा लाँघ रहे है,हमारे कुछ कर्मचारी धरती पे तबादला माँग रहे है।
यमराज - हाय,कहाँ कमी रह गयी।इन्हे हमने मौत दी,अपने हाथों से परवरिश की,मनुष्य आखिर धरती लोक में ऐसा क्या पाता है,जो उसको यमलोक से अधिक भाता है। आज हम अपने विमान मे उत्थान भरेंगे,और नीचे जाके धरती लोक का दौरा करेंगे।कह दो देवताओं से की अपने दरबार मे हमारे पृथ्वी टूर का बिल पास करवा दे।
(दूसरा दृश्य। दोनो का धरती पे आगमन हो चुका है,एक लड़की खाई मे कूदकर अपनी जान देने जा रही है,यमराज कि नज़र उसपे पड़ती है। )
यमराज - चित्रिगुप्ता,ये अप्सरा सी कौन है?
चित्रिगुप्ता - जीवन की ठुकराई एक बेचारी है,जो आज मौत से भी हारी है,आत्महत्या कर यमलोक जाने की तैयारी है।
यमराज - जहाँ एक इंसान ना मरने के लिये गिड़गिड़ाता है,रोता है,वहाँ पर ऐसा भी होता है।आज ऐसा अनिष्ट देख यमराज भी रो गया,कोई आओ,बचाओ इसे,ये तो नादान है,जीवन के मोह से अंजान है,तुम लोगो को क्या हो गया!
(एक पंडित का प्रवेश )
पंडित - ओम शांति ओम,जय जय शिव शंकर,हरे रामा हरे कृष्णा!! क्या हुआ बालिका?
लड़की - नगर पालिका! नगर पालिका मे काम करता था वो,मुझपे बेहद मरता था वो।एक रोज़ उसके बनाये पुल की तरह उसका वादा भी टूट गया।
पंडित - और तेरे जीने का आस छूट गया? कर दे मुश्किल जीना,हाय रे इश्क कमीना। जीना मरना तो ऊपर वाले का खेल है,मत उसका अपमान कर,पर उससे तेरी बात करा दूँ,गर तू मेरा कल्याण कर,दान कर,दक्षिणा कर,फ़िर चाहे जहाँ मर्ज़ी मर। पूजा पाठ जाप कर दूँगा,तेरे पाप को निष्पाप कर दूँगा।
यमराज - बस ये धर्म मे अधर्म की गंदी मिलावट अब और ना सह सकूँगा,चलो चित्रिगुप्ता,अब मैं यहाँ एक पल ना रह सकूँगा।
(नाटक अभी बाकी है मेरे दोस्त।दूसरे और अंतिम भाग को लेके जल्द मिलता हूँ,तब तक अपनी राय और सुझाव देते रहे,और इस नयी कोशिश मे मेरा हौसला बढ़ाये )
Saturday, May 30, 2009
50 First Posts !!!
The previous 49 posts saw a total of 516 comments(and counting),with 23 English(dominated) posts receiving 182 comments(and counting) and 26 Hindi(dominated) ones with 334(again counting!).53.06% share of Hindi posts only indicate that I havent been biased towards any language,and such a proportion,in all modesty, is quite rare.Though an average of 12.84 comments for Hindi posts,in comparison to 7.91 for English ones do indicate which one of these has been more of my comfort zone! I know its too much of mathematics,maybe "freakonomics" has got into my head a little too much.Well I have always been someone really obsessed with numbers,the effect of which has been visible in my blog for the first time...not to be taken seriously folks :)
Picking my favourite 11 posts in this blog...the ones which are closest to one...readers,specially d regular ones(whatever few I do possess)...Do check it out if u missed out on any of these...
एक अधूरी कविता की कुछ यादें :
1. एक अधूरी कविता - इस ब्लौग पर मेरी ये पहली कविता थी,जो आज भी मेरे दिल के बहुत करीब है।। और मेरे बलौग का नाम भी तो इसी कविता पर है :)
2. लफ़्ज़ों की एक इमारत है - अपने एक दोस्त की एक पंक्ति पे एक कविता लिखी थी मैने,और मेरे हिसाब से ये मेरी लिखी अब तक की सबसे अच्छी कविता है
3. Kya Hindi aise bolaa jaati hai!! - I guess the funniest post on this blog(at least for me),about the weird Hindi that my friend MK used.Its a part of our daily routine,but it was when I decided to quote his "sayings" during our IIT KGP trip,that the blueprint for this post was made.
4. A Visit to paradise - My experience when I visited my school,its been a long time since I could make such a plan again,but i sure miss my school a lot.It may not be the best one,nonetheless,its pradise for me.
5. Ek Adhoori kavita(ek baras baad) - The post celebrating the first anniversary of my blog,mentioning the names of several people who made this journey such an amazing one.As the 2ndanniversary approaches,I guess there are quite a few people more who deserve a place in that list....
6. Mera Pehla Pehla Pyaar - Another one which holds a special significance,it talked about all the lovely things for which I fell in my childhood,and how most of them gradually developed into a passion.Hindi will always be my love...and Rani enters her 11th year as my favourite actress :)
7. थोड़ा सा व्यंगात्मक हो जाये - हास्य व्यंग मे की गयी मेरी पहली कोशिश,इस विधा मे लिखी गयी पहली कविता
8. जब वी मेट - एक निजी अनुभव से प्रेरित ये लघु कहानी मुझे आज भी भावुक कर देती है,कहानी लिखने का ये शायद मेरा पहला गंभीर प्रयास था
9. Experience Spring Fest(part 2) - Almost an year after the visit to KGP campus(where our dear friend bowled us all with his hindi),I represented my Drama Society team from our college in the Spring Fest.I know this is one experience I can always look back for inspiration.
10. Ek non-ajnabee haseena se yun mulaakat ho gayee - After the train journey,time for a romantic bus trip.After discovering my seeming expertise in romantic hindi poetry,took a shot in a romantic narration in the other language.At least I enjoyed it :)
11. अगर तुम ना होती तो चांद की तारीफ़ कैसे करता - मुझे इस कविता की प्रेरणा अपने मित्र गौरव(गाज़िआबाद वाला) से मिली,जब उसने अचानक ही चांद पर एक बड़ी खूबसूरत पंक्ति बना डाली। एक बार फ़िर उसके कारण एक अच्छी खासी कविता बन गयी।उम्मीद है भविषया में कभी मुझपे उसके ख्याल चुराने का आरोप ना लगे :)
गर कोई बात यकीनी है,कोई बात गर ज़रूरी है, फ़कत ये की मेरी कविता अब भी अधूरी है।
सच कहूँ तो यही अधूरापन है जो मेरी सबसे बड़ी प्रेरणा है!!!
Wednesday, May 27, 2009
प्रकृति की गोद मे कभी सोये नही.. तो क्या किया तुमने !!!
Tuesday, May 26, 2009
CELEBRATING LIFE...
Sunday, May 24, 2009
एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा
यूँ तो बेवजह तारीफ़ मैं करता नही,
पर आज ये शायर दिल मजबूर है,
आज तक नही किया नशा जिसने,
आज तेरे हुस्न के नशे में चूर है।
चंचल सी,मद्धम सी ये धूप जैसे,
फ़िसल रही हो तेरे खुले बाहों से,
तेरा स्पर्श करने को आतुर हूँ,
पर हाथों से नही,निगाहों से।
दबी हुई हसरत है की मेरी नज़र,
तेरा आँचल बन तुझसे लिपट जाये,
या तेरे दीदार की प्यासी निगाहें,
तेरा अरमान बन तेरे दिल में सिमट जाये।
मेरे होंठ तेरे लबो पे सज जाये,
पर तेरी ही कविता के बोल बनके,
और समाये तेरी साँसे मेरी साँसो में,
फ़कत एक एहसास अनमोल बनके।
तेरे चेहरे की चमक ये जैसे,
मेरी रातों को रोशन करती है,
ख्वाबों के तहखाने में आने को,
जो तू यादों की सीढ़ियाँ उतरती है।
मुझमे तू है और तुझमे मैं हूँ,
इस हकीकत से अब मैं अंजान नही,
खूबसूरती की इस ज्योत के बिना,
इस सजल अस्तित्व की पूर्ण पहचान नही।
Saturday, May 9, 2009
अगर तुम ना होती तो चांद की तारीफ़ कैसे करता :)
इतनी हसीन कविता लिखने का जज़्बात कहाँ उभरता।।।
मेरा सारा काव्य सौंदर्य तेरे सौंदर्य की लीला गाता है,
मेरे लेखन का नशा तमाम,तेरे नशे में चूर हुआ जाता है,
मेरी कल्पना की उड़ान तुझे चांद पर,कभी सितारों पर पाती है,
और विचारशीलता की ऊँचाई तुमको आसमाँ पे बिठाये जाती है,
सच मानो तो ये सारा रस तेरे रूप के रस का बखान करते है,
देखो तो अलंकार ये,तुझसे अलंकृत होकर ही संवरते है,
अनुप्रास के नाम पर बस तेरा नाम बार बार दोहराता हूँ,
श्लेश के बहाने तेरे एक एहसास के अनेक अर्थ बतलाता हूँ
ज़माना लाख सोचे की मैं कैसा प्यारा,कितना खूबसूरत लिखता हूँ,
लेकिन मेरा दिल जानता है,मैं सिर्फ़ और सिर्फ़ तुमको लिखता हूँ,
ना होती तुम तो किसके दम पे कवि होने का दंभ भरता,
अगर तुम ना होती तो चांद की तारीफ़ कैसे करता !!!
Tuesday, May 5, 2009
ज़िंदगी शिकायतों में एक इज़ाफ़ा और कर गयी ....
अपनी शायरी उस रोज़ कुछ और निखर गयी।
उनकी मजबूरी को देखो मिलन का नाम देते है लोग,
कभी किनारा नदी में समाया,कभी नदी किनारे पे उतर गयी।
हवा यूँ कानों के पास से गुज़री,मानो पूछा हो हाल मेरा,
जाने क्या था सवाल जिसको सुन मेरी तबीयत ही डर गयी।
तुझको बता ना सका,वो हाल-ए-दिल तन्हाई को सुनाया मैने,
हुआ ये माहौल,मेरी हर महफ़िल मे मेरी तन्हाई घर कर गयी।
फ़िर शाम ढ़लने तक तेरी नज़र को सुनता रहा मैं,
और फ़िर तेरी आवाज़ मेरे दिल को छूके गुज़र गयी
कभी चांद को नये मतलब,मायने,नाम देता चला गया,
तो कभी चांदनी टूटकर मेरी हर शायरी पे बिखर गयी।
एक एक ख्वाईश जब बेआबरू हो आँखों से टपक पड़ी,
मेरी कलम शब्दो के अदृश्य दायरे में उसको कैद कर गयी।
दर्द का वो आलम जब जज़्बात अपाहिज से लगने लगे,
क्यों मजबूर रहूँ,कि,मेरी चाहत कल्पना के उड़ान भर गयी।
ज़माना मुझसे बोला,देख आज तेरी उम्र बढ़ गयी,
मैने सोचा ज़िंदगी शिकायतों में एक इज़ाफ़ा और कर गयी।
थोड़ा और शायराना हो जाये :)
वर्ना सीमा तो कुछ भी नही!!
सपना और कुछ नही,तेरे ना होने पे भी तेरा होना है,
और ये सपना सपना है सच नही,बस इस बात का रोना है।
काश एक ज़िंदगी ऐसी भी मिलती,
जो गुज़र जाती बस तुमको देखते हुए!!
मज़ा क्या रहे गर मेरे प्यार को वजह मिल जाये,
मुझे तो हसरत है तेरे लिये बेवजह बर्बाद होने की : )
एक आलम ऐसा भी आयेगा,
जब दस्तखत की जगह भी तेरा नाम लिख आऊँगा ।
ऐ ज़िंदगी चार पल फ़ुर्सत के दे दे,
या वो पल दे दे जब फ़ुर्सत कि ख्वाईश नही थी ।
मेरे लिये मैं बनना ही मुश्किल था ज़िंदगी में,
तुम मुझे तुम बनने को कह रहे हो ।
Monday, May 4, 2009
मुमकिन है मेरा प्रेमकवि बन जाना...
हम कहाँ थे समझे दिल का ये लगाना,
फ़िर भी लगा लिया दिल,नासमझी का कर बहाना।
यूँ तो मुमकिन नही की मोहब्बत की बाज़ी हार जाऊँ,
लेकिन मेरी फ़ितरत में है शामिल,तुमसे मात खाना।
तुमको भूले भी तो और कुछ खयाल ना रहा,
और याद रखा,तो भूल गये तमाम ज़माना।
मरना भी हमे कब कहाँ नागवार गुज़रा था,
लेकिन मुश्किल लगता है अब तुमको भुलाना।
फ़िर मुझे चांद मे तेरा चेहरा नज़र आया,
फ़िर आसां हो गया तुमपे कविता बनाना।
हवा भी जैसे हौले से कान में कुछ कहके गुज़री,
तुम्हारी तरह आ रहा है इसको भी बातें बनाना।
फ़िर हाथ उठाया मैने,फ़िर आसमां को छू लिया,
तेरे खयालों में डूबा रहूँ,तो मुमकिन है हर ऊँचाई को पाना।
तुम कहती हो हमारी मुलाकात एक इत्तफ़ाक है,
मैं कहता हूँ मेरी तकदीर है तेरा यूँ मिल जाना।
अपनी तो उम्र गुज़र गयी तुमको याद करते करते,
अब तो चाहता हूँ बस एक बार तुमको याद आना।
आज तक फ़कत दर्द के वाक्ये सुनाता रहा मैं,
अब तेरी मेहरबानी से मुमकिन है मेरा प्रेमकवि बन जाना।
कशमकश
बना बिगड़ा, बिगड़ा बना,और बनता बिगड़ता रह गया,
प्यार का बुखार,तापमान की तरह उतरता चढता रह गया।
मुनासिब ना था मोहब्बत की जंग हार जाना,
इसलिये हार जाने के बाद भी मैं लड़ता रह गया।
मज़ा देखो की बस उसकी नज़र में गिरता चला गया,
वरना ज़िंदगी के बाकी हर पहलू में तो चढ़ता रह रह गया।
मेरी चाहत की शमा को तेरी एक फ़ूँक ने बुझाया था,
और मैं नादान था जो हवा से झगड़ता रह गया।
अपनी ही नासमझी में देखो अपनी जान गँवायी मैने,
उनको इलाज की अदा ना आयी,और मैं बीमार पड़ता रह गया।
तू मुझे किसी अंतरे की तरह भूल गयी !!!
Monday, April 6, 2009
थोड़ा सा शायराना हो जाये
कभी आये यूँ ही कोई मेरी भी ज़िंदगी में नया सवेरा लेकर !!
2. दीवानगी की एक हद ये की लैब में
तेरे चहरे को डेस्कटौप वॉलपेपर बना लिया,
और एक दीवनगी का आलम ये भी,
कि जो भी वॉलपेपर लगाया,
टेरा ही चेहरा नज़र आया !!
3. तेरे ख्वाबों का तोहफ़ा ही देने आयी हो जैसे,
आज नींद भी आयी कुछ ऐसे तकल्लुफ़ से...
4. आज लिखना चाहता हूँ तुझपे,
पर लिख नही पाता कुछ,
कोई मिसाल ही नही दे पाता,
कोई कहता है तुम हज़ारों में एक हो,
कोई कहे है,लाखों में एक हो...
मैं क्या कहूँ, मुझे तो लगता है...
तुम बस एक हो!!
5. अल्जेबरा के इस जोड़ घटाव में जब तेरा ख्याल आया,
तो लगा,तू मेरी ज़िंदगी से जुड़ जाये बस,सारे गम घट जायेंगे ...
6. काला लिबास है या काला जादू कोई,
जो तुमपे लिपटा हुआ,मुझपे छाया हुआ है !
7. तेरे पास आने से डरता हूँ,
कि एक झटके से झकझोर न दे तू मुझको,
पर जानता हूँ,कि छू लूँ तो
तेरा एहसास बह जायेगा मुझमे..
हाँ बिजली ही तो हो तुम !! (composed when sb asked me 2 write a sher on 'electricity' )
8 कल चांद मुझसे बोला,
तू भी मेरे साथ रह सकता है,
अब तो तुझे भी आदत पड़ने लगी है,
अंधेरे में रहने की...
9. बादल की ऊँचाई देखकर क्यों जलते हो
वो तो टपकेगा एक रोज़, बूँद बूँद बनकर ....
10. फ़िर तेरा ज़िक्र आया,फ़िर तेरी कमी महसूस हुई,
आज फ़िर तड़प उठा इस बात पे दिल,
कि क्यों तेरा ज़िंदगी में लौट आना मुमकिन नही,
ऎ मेरे बचपन,कहाँ खो गये तुम??
11. फ़िर आज चांद बना रह है शक्ले अजीब सी,
फ़िर आज किसी की खूबसूरती मेरे
डरने की वजह बन गयी है...
Tuesday, March 31, 2009
Ek non-ajnabee haseena se yun mulakat ho gayi
Saturday, March 28, 2009
क्या है मेरी ये ज़िंदगी ??
जिससे पल पल की रोशनी के बदले
एक कीमत अदा करनी पड़ती है...
या वो खाली बालटी,
जो सिर्फ़ ज़रूरत के वक़्त भरी जाती है,
वर्ना खाली ही रह जाती है ...
दरवाज़े पे पड़ा डोर मैट,
जिसे जिसने भी देखा,
नज़र झुका के ही देखा...
मेरी खिड़की पे लगा ये पर्दा
जो मौसम के मद्धम होने पर
परे हटता आया है,
मगर धूप झेलता आया है ....
या शायद ये अलार्म घड़ी
जिसकी आवाज़ नींद से जगा तो देती है
पर ये नही बताती की
इस जागॄति का क्या करूँ ....
क्या है मेरी ये ज़िंदगी??!!!
This post is interesting..no funny..no interesting...no slightly complicated !!
It is very funny,no intersting...no funny
It is very slightly complicated..very complicated
You make a pant,give a shirt,give a shirt,make a pant..it is the same
Obviously I dont have any intention of writing all these equations
Is it making logical sense or not?..why? (WTF??)
Ok anyhow I will explain now listen!!
In this thing,it is only for this thing
It is very IMPORTANT BUT I will try to explain it
Your book I have not put the mark,it is in the photocopy!!
I will explain,I have not completed according to my satisfaction
Are you appreciating my point..no..ok!!
I will finish today's class in one statement..no two statements!! (surprisingly the 2 statements took around 12 minutes)
Sunday, March 22, 2009
मेरी तन्हाई की अमानत...
उसने कहा, बस बहुत हुआ,
क्यों ज़माने की महफ़िल में
आखिर ले जाते हो मुझको,
किसलिये सबसे मिलवाते हो मुझको,
अब तंग आ चुकी हूँ मैं,
वो गलत नज़र से देखते है
इसलिये नही,बल्कि इसलिये
की कोई देखता ही नही,
किसी को कोई फ़र्क ही नही पड़ता...
सजल,तुम्हारे अलावा मुझे
कोई समझ ही नही पाता,
सच कहूँ तो मेरी मौजूदगी
का एहसास तक नही करवा पाता,
जानती हूँ मेरे अपमान पे
तुमको भी तकलीफ़ होती है,
तभी तो कहती हूँ...
मुझे अपनी संगिनि बनाओ लेकिन
किसी और का साथ निभाने को ना कहना,
मैं तुम्हारी थी,तुम्हारी ही रह जाऊँगी
प्लीज़ किसी और को अपनाने को ना कहना,
है इसी में अब खुशी मेरी तमाम
की बनके रह जाऊँ,
तेरी तन्हाई की अमानत मैं.....
ऐसा जब मेरी 'कविता' ने मुझसे कहा,
मैं चुपचाप,बस देखता रह गया उसको!!!
P.S : This post is a result of a realisation,and the importance of giving the required importance,and love,to ones own compositions...because at the end of the day,the world will never understand them,as well as we do,if my 'kavita'is special for me,am sure she expects me to be the same for her :)